Year Ender 2025: जहरीली हवा और दवा की कमी से जूझती रही दिल्ली, पूरे साल दबाव में रहीं स्वास्थ्य सेवाएं
साल 2025 में दिल्ली जहरीली हवा और दवा की कमी से जूझती रही। पूरे साल स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बना रहा। प्रदूषण के कारण अस्पतालों में मरीजों की संख्या म ...और पढ़ें
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साल 2025 में दिल्ली जहरीली हवा और दवा की कमी से जूझती रही। जागरण
अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए वर्ष 2025 स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से चेतावनी भरा रहा। यह साल उम्मीद और हताशा दोनों का प्रतीक बना। एक ओर लोग निर्मल सांस के लिए स्वच्छ हवा की तलाश में रहे, तो दूसरी ओर सरकारी अस्पताल दवाओं, कर्मचारियों और संसाधनों की कमी से जूझते नजर आए। प्रदूषण, बढ़ते मरीजों का दबाव और अधूरे वादों ने आम दिल्लीवासी की सेहत को पूरे वर्ष चुनौती दी। इतनी कि विशेषज्ञ चिकित्सकों को जिंदा रहने के लिए लोगों को दिल्ली छोड़कर जाने की सलाह तक देनी पड़ी।
साल की शुरुआत और अंत दोनीं ही दौर में वायु प्रदूषण सबसे बड़ा संकट बना रहा। हालात इतने गंभीर हुए कि चिकित्सा विशेषज्ञों ने खुले मंच से दिल्ली की हवा को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बताया। लोगों को दिल्ली छोड़ कर जाने की सलाह तक दी। दमा, एलर्जी, सांस फूलने और लगातार खांसी के मरीजों से सरकारी अस्पतालों की बाह्य रोगी पर्ची कक्ष भर गईं।
चिकित्सकों के अनुसार इस बार बच्चों और युवाओं में भी श्वसन संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ीं। प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई योजनाएं शुरू हुईं, लेकिन उनका असर सीमित ही रहा। कई बार उच्च गुणवत्ता वाले मास्क भी नाकाफी साबित हुए।
मानसिक स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी वर्ष 2025 चिंता बढ़ाने वाला रहा। कामकाजी वर्ग, छात्र और महिलाएं तनाव, अवसाद और नींद संबंधी समस्याओं से जूझते दिखे। कुछ अस्पतालों में परामर्श सेवाएं शुरू हुईं, लेकिन आवश्यकता के हिसाब से यह पहल नाकाफी रही।
दवाओं की कमी ने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया। अलग-अलग महीनों में बीस से पच्चीस प्रतिशत आवश्यक दवाएं अस्पतालों में उपलब्ध नहीं रहीं। मधुमेह, रक्तचाप, क्षय रोग, हृदय, गुर्दा और श्वसन रोगों की दवाओं की कमी से गरीब मरीज सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। स्वास्थ्य मंत्री डा. पंकज कुमार सिंह की ओर से व्यवस्थाएं दुरुस्त होने के दावे किए गए, लेकिन जमीनी हकीकत अलग नजर आई।
कर्मचारियों की कमी ने हालात और कठिन बना दिए। चिकित्सकों के करीब तीस प्रतिशत, नर्सों के पैंतीस प्रतिशत और सहायक स्वास्थ्य कर्मचारियों के चालीस प्रतिशत पद खाली रहे। कई अस्पतालों में चिकित्सकों को तय मानक से दोगुने मरीज देखने पड़े। जीबी पंत अस्पताल में अत्यधिक कार्यभार को लेकर एक चिकित्सक के त्यागपत्र ने व्यवस्था पर दबाव की तस्वीर साफ कर दी।
बढ़ती शिकायतों और जनदबाव के बीच साल के अंत में दिल्ली सरकार के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने सार्वजनिक मंच से माफी मांगते हुए यह स्वीकार किया कि जहां व्यवस्था कमजोर पड़ी, वहां सुधार जरूरी है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2026 में स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करना सरकार की प्राथमिकता होगी। यह स्वीकारोक्ति खुद स्वास्थ्य व्यवस्था की चुनौतियों को उजागर करती है।
प्रदूषण: स्वास्थ्य संकट की स्थायी वजह
वर्ष 2025 के आरंभ से ही दिल्ली की हवा लगातार स्वास्थ्य के लिए खतरनाक बनी रही। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, साल के 200 से अधिक दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 300 से ऊपर दर्ज किया गया, जो ‘बेहद खराब’ और ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।
इसका सीधा असर अस्पतालों में मरीजों की संख्या पर पड़ा। सरकारी अस्पतालों के आंकड़े बताते हैं कि इस दौरान सांस संबंधी रोगों के मरीजों में 25 से 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई। बच्चों में अस्थमा के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़ गए। और बुजुर्गों में सीओपीडी के मामलों में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई।
| श्रेणी | विवरण |
|---|---|
| वायु प्रदूषण | |
| वायु गुणवत्ता | वर्ष के दो सौ से अधिक दिन वायु गुणवत्ता स्तर बेहद खराब रहा |
| श्वसन रोग | श्वसन रोगियों में पच्चीस से तीस प्रतिशत तक वृद्धि |
| प्रभावित वर्ग | बच्चों में दमा और बुजुर्गों में दीर्घकालिक श्वसन रोग के मामले बढ़े |
| सरकारी स्वास्थ्य ढांचा | |
| कुल सरकारी अस्पताल | 102 |
| कुल बिस्तर क्षमता | 26,124 |
| प्रति एक हजार आबादी पर बिस्तर | 1.3 बिस्तर (राष्ट्रीय मानक से कम) |
| दवा और इलाज | |
| दवाओं की अनुपलब्धता | बीस से पच्चीस प्रतिशत आवश्यक दवाएं कई महीनों तक अनुपलब्ध |
| प्रभाव | मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ी; गरीब और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित |
| मानव संसाधन | |
| चिकित्सकों के पद | तीस प्रतिशत पद खाली |
| नर्सों के पद | पैंतीस प्रतिशत पद रिक्त |
| सहायक स्वास्थ्य कर्मचारियों के पद | चालीस प्रतिशत पद खाली |
| दबाव | एक चिकित्सक पर तय मानक से कहीं अधिक मरीजों का दबाव |
| प्रमुख अस्पतालों की भूमिका | |
| अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) | उच्च स्तरीय उपचार और शोध में मजबूती |
| सफदरजंग अस्पताल | आपातकालीन और आघात उपचार का मुख्य केंद्र |
| लोक नायक अस्पताल | प्रदूषण जनित बीमारियों का प्रमुख केंद्र |
| जीबी पंत अस्पताल | सरकारी क्षेत्र में हृदय रोग उपचार की रीढ़ |
| गुरु तेग बहादुर अस्पताल | पूर्वी दिल्ली में आपात और आघात सेवाओं की मजबूत कड़ी |
नगर निगम के अस्पताल
- कर्मचारियों, विशेषज्ञों और जांच सुविधाओं की भारी कमी
- कई केंद्र केवल रेफरल इकाई बनकर रह गए
दिल्ली सरकार ने पीपीपी माडल के तहत जिन 11 अस्पतालों के बारे में फैसला लिया है। उनमें चार नए अस्पताल हैं। इसके अलावा सिरसपुर में 1,164 बेड का अस्पताल बनना है। चार साल पहले आइसीयू बेड वाले जिन सात अस्पतालों का काम शुरू किया गया था, लगभग बनकर तैयार हैं। इसमें गुरु तेग बहादुर अस्पताल में 1,912 बेड, गीता कालोनी में 610 बेड, शालीमार बाग में 1,430 बेड, सुल्तानपुरी में 525 बेड, सरिता विहार में 336 बेड, रघुबीर नगर में 1,565 बेड और किराड़ी 458 बेड का अस्पताल है, जिस पर अभी काम शुरू नहीं हो सका है।
| क्रमांक | अस्पताल का नाम | स्थान | प्रकार |
|---|---|---|---|
| 1 | ज्वालापुरी अस्पताल | ज्वालापुरी | सामान्य |
| 2 | मादीपुर अस्पताल | मादीपुर | सामान्य |
| 3 | सिरसपुर अस्पताल | सिरसपुर | सामान्य |
| 4 | शालीमार बाग अस्पताल | शालीमार बाग | आईसीयू |
| 5 | सुल्तानपुरी अस्पताल | सुल्तानपुरी | आईसीयू |
| 6 | सीएनबीसी अस्पताल | गीता कॉलोनी | आईसीयू |
| 7 | गुरु तेग बहादुर अस्पताल | पूर्वी दिल्ली | आईसीयू |
| 8 | सरिता विहार अस्पताल | सरिता विहार | आईसीयू |
| 9 | राघुबीर नगर अस्पताल | राघुबीर नगर | आईसीयू |
| 10 | किराड़ी अस्पताल | किराड़ी | आईसीयू |
| 11 | हस्तसाल अस्पताल | हस्तसाल | सामान्य |
| कुल बेड | 10,073 | ||
| कुल आईसीयू बेड | 4,314 | ||
| नोट: सात आईसीयू-आधारित अस्पतालों में अधिकांश आईसीयू बेड होंगे | |||
- निर्माण पर कुल खर्च: सात आइसीयू अस्पतालों (कुल 6,836 बेड) के लिए पैकेज 1, 2 और 3 के तहत 1,216.72 करोड़ खर्च किए गए हैं। चार सामान्य अस्पतालों (3,237 बेड) का खर्च अलग से है। औसतन, दिल्ली में प्रति बेड निर्माण लागत 80-95 लाख है, कुल अनुमानित 800-950 करोड़।
- संचालन पर कुल खर्च: पीपीपी माडल के तहत निजी एजेंसियां निर्माण पूरा करेंगी और संचालन करेंगी। राजस्व माडल, लागत अनुमान और वित्तपोषण की फिजिबिलिटी स्टडी चल रही है। सरकारी सब्सिडी के साथ निजी भागीदारी से संचालन लागत कम रखने का लक्ष्य है, संचालन अनुमान 9000 करोड़।
- पद सृजन- इन अस्पतालों के सुचारू संचालन के लिए लगभग 42 हजार पदों के सृजन की आवश्यकता

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