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    Air Pollution: दिल्ली-NCR में हर साल विकराल हो रही है प्रदूषण की समस्या, एक्सपर्ट ने बताया क्या है समाधान

    Updated: Tue, 28 Oct 2025 11:22 AM (IST)

    दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जो हर साल बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञ इसके मुख्य कारणों में वाहनों का धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन और पराली जलाना मानते हैं। समाधान के लिए सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना, इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करना और औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करना आवश्यक है। व्यक्तिगत स्तर पर भी प्रयास करके प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

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    नोएडा के सेक्टर-16 में छाई धुंध की चादर। फाइल फोटो सौजन्य- पीटीआई

    रवि पाल, नोएडा। सर्दी आने के साथ ही वायु प्रदूषण पर चिंता जाहिर करने की शुरुआत हो जाती है। दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण की समस्या हर वर्ष और विकराल रूप ले रही है, लेकिन इस पर शार्ट टर्म प्लानिंग पर काम कर इतिश्री कर दी जाती है। जबकि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए लांग टर्म प्लान पर काम करने की जरूरत है। ये कहना है केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अपर निदेशक डॉ. एस. के. त्यागी का।

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    उन्होंने जागरण विमर्श कार्यक्रम में इस बात पर प्रमुखता से जोर दिया कि वायु प्रदूषण के मानकों में भी बदलाव किए जाने चाहिए। वायु प्रदूषण में अब वाष्पशील कार्बनिक रसायन की जांच को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए। हवा में ‘जहर’ कितना है, इसको अब प्रमुखता से खोजने की जरूरत है।

    आखिर क्यों है मानकों में बदलाव की जरूरत?

    डॉ. त्यागी ने आगे बताया कि वायु प्रदूषण में अब वाष्पशील कार्बनिक रसायन (वीओसी) को भी शामिल किया जाना चाहिए। ये कमरे के तापमान पर वाष्पशील हो जाते हैं और हवा में ग्राउंड लेवल पर ही पाए जाते हैं। वीओसी से ओजोन लेयर और सेकेंड्री आर्गेनिक एयरोसोल (एसओए) का निर्माण होता है। पीएम-2.5 में इनका योगदान 30 प्रतिशत तक है।

    कोविड के दौरान जब वायु प्रदूषण बेहद कम हो गया था, उस दौरान भी इसमें कमी नहीं आई थी। अमेरिका जैसे देशों में इनकी मॉनिटरिंग के लिए 90 से ज्यादा सेंटर हैं, जबकि भारत में अब तक इसकी शुरुआत भी नहीं हुई है। देश में अब भी वायु प्रदूषण को मापने के लिए सिर्फ वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) पर बात की जाती है, जबकि दुनिया में अब तीन तरह से वायु प्रदूषण की जांच की जा रही है।

    डॉ. त्यागी ने इस बात पर जोर दिया कि एक्यूआई के मानक वर्ष 2009 और वायु प्रदूषण के मानक 2015 में बनाए गए थे। हर वर्ष वायु प्रदूषण में तेजी से बदलाव हो रहा है। ऐसे में वर्षों पुराने मानकों के आधार पर विश्लेषण से मौजूदा समय में वायु प्रदूषण की स्थिति से निपटा नहीं जा सकता है। वीओसी को वायु गुणवत्ता सूचकांक में भी शामिल किया जाना चाहिए।

    समाधान के लिए इन कारकों पर देना होगा ध्यान

    डॉ. त्यागी ने पराली पर बात करते हुए बताया कि वायु प्रदूषण में पराली के धुएं की मात्रा तीन से पांच प्रतिशत तक ही है, जबकि वाहनों से होने वाले प्रदूषण की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत तक है। इसको कम करने पर ज्यादा जोर देना चाहिए। सर्दी के मौसम में कहीं भी कूड़ा नहीं जलाना चाहिए।

    इससे करीब 15 से 20 प्रतिशत तक प्रदूषण होता है। उद्योग धंधों से 20 प्रतिशत प्रदूषण होता है। इन सभी कारकों को कम करने के लिए व्यापक उपाय किए जाने चाहिए। सर्दी में निर्माण कार्यों को बेहद नियंत्रित किया जाना चाहिए। बड़े निर्माण कार्यों पर रोक भी लगाई जानी चाहिए।

    ये हैं वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक

    • वाहनों का उत्सर्जन
    • औद्योगिक गतिविधियां
    • ईंधन का जलना
    • कृषि पद्धतियां
    • कचरा जलाना
    • निर्माण कार्य

    नागरिकों को प्रदूषण कम करने के लिए करने चाहिए ये उपाय

    1. कार का प्रयोग कम करना चाहिए। इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ावा दें।
    2. घरों में बिजली का प्रयोग कम करें, सोलर एनर्जी को बढ़ावा दें।
    3. क्लीन कुकिंग फ्यूल का प्रयोग करें, चूल्हा जलाने का प्रयोग कम करें।
    4. घरों का निर्माण इस तरह करें, जिसमें प्राकृतिक रोशनी ज्यादा रहे।
    5. किचन में फूड वेस्ट का प्रयोग कम से कम हो, इसका ध्यान रखा जाए।
    6. आसपास जाने के लिए वाहनों का प्रयोग न कर साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा दें।

    वीओसी के दुष्प्रभाव

    • कुछ वीओसी के संपर्क में आने से सिरदर्द, आंखों में जलन और गुर्दे जैसे आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है।
    • अस्थमा से पीड़ित लोग या छोटे बच्चे और बुजुर्ग इसके प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
    • ये वायु प्रदूषण और स्मॉग (धुंध) में योगदान करते हैं।
    • घर के अंदर वीओसी की मात्रा अक्सर बाहर की तुलना में अधिक होती है।