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    दिल्ली की इन जीरो वेस्ट कॉलोनियां ने पेश की मिसाल, उत्तम कचरा प्रबंधन से दिखा रहे स्वच्छता की राह

    Updated: Tue, 02 Dec 2025 01:19 AM (IST)

    दिल्ली की कुछ कॉलोनियों ने 'जीरो वेस्ट' का लक्ष्य प्राप्त कर कचरा प्रबंधन में मिसाल कायम की है। इन कॉलोनियों में कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग किया जाता है, जैविक कचरे से खाद बनाई जाती है, और पुनर्चक्रण योग्य सामग्री को पुनर्चक्रण के लिए भेजा जाता है। निवासियों ने स्वच्छता के प्रति गहरी जागरूकता दिखाई है, जिससे अन्य क्षेत्रों को प्रेरणा मिल रही है।

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    आइपी एक्सटेंशन स्थित दिल्ली राजधानी अपार्टमेंट में गीले -सूखे कूड़े,ई वेस्ट व अन्य तरह के कचरे के लिए लगाए गए हैं अलग-अलग रंग के कूड़ेदान। जागरण

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली प्रदूषण की समस्या काफी बड़ी हो चुकी है। इसमें लैंडफिल साइट भी अहम भूमिका निभाते हैं। इनमें लगने वाली आग प्रदूषण को बढ़ावा देती है। साथ ही उड़ती धूल भी सहायक साबित होती है। आबादी के बीचोंबीच होने से भी यह समस्या बड़ी हो जाती है। यही वजह है कि सरकार और निगम लैंडफिल साइटों को खत्म करने पर जोर दे रहे हैं।

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    अगले दो से तीन सालों में इन्हें खत्म करने का लक्ष्य भी रखा गया है। लेकिन इसमें सामूहिक प्रयास की भी जरूरत है। इसके लिए आवश्यक है कि स्रोत पर ही कूड़ा अलग-अलग हो जाए। इसके साथ उसका निस्तारण भी होता रहे ताकि ये लैंडफिल साइट तक न पहुंच पाएं। इस दिशा में दिल्ली में कई कालोनियों ने प्रयास भी किए हैं जिनका अनुसरण अन्य कालोनियों को करना चाहिए। तभी दिल्ली को कूड़ा मुक्त किया जा सकता है।

    इससे प्रदूषण पर भी नियंत्रण हो सकता है। अब तक दिल्ली नगर निगम ने 678 कॉलोनियों को जीरो वेस्ट कॉलोनी घोषित किया है। इनमें एक लाख परिवार जुड़कर शहर को स्वच्छ रखने में मदद कर रहे हैं। आइए ऐसी कुछ कालोनियों के बारे में जानते हैं जो कूड़ा मुक्त शहर की राह दिखा रहे हैं।

    कचरे से ना बिगड़े पर्यावरण

    जब हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे और एकजुट होकर छोटे-छोटे काम करे तो बड़ा बदलाव संभव होता है। दक्षिणी दिल्ली स्थित नवजीवन विहार सोसायटी ने ऐसी ही मिसाल पेश की है। सोसायटी में लोगों ने सामूहिक प्रयासों से कचरा प्रबंधन और निस्तारण का अनूठा माडल पेश किया है।

    इलाके में ना कोई निगम की गाड़ी कूड़ा उठाने आती है और ना ही कचरा बीनने वाला है, बल्कि लोग खुद कचरे का निदान करते हैं। करीब छह सालों से इस काम में जुटी सोसाइटी ने ना समस्या का उचित समाधान किया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश की है।

    शहरों में बढ़ते लैंडफिल पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा हैं। केंद्र व राज्य सरकार की ओर से तमाम नियमों और योजनाओं के बावजूद जहां-तहां फैला कचरा शहरों की सूरत बिगाड़ता है। ऐसे में कई साल पहले सोसायटी में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की ओर से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर हुई एक कार्यशाला से प्रेरणा मिली।

    इसके बाद नवजीवन विहार में कचरा प्रबंधन की पहल शुरू हुई थी। सही सोच, योजना और सहयोग से इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। ये जीरो वेस्ट सोसायटी दूसरों के लिए भी प्रेरणा बन चुकी हैं।

    17 टन प्लास्टिक, 3 हजार किलो ई-वेस्ट का निदान

    मुहिम के तहत हर घर में लोग गीले और सीखे कचरे को अलग-अलग रखते हैं। सोसाइटी में कुल 250 घरों से रोजाना करीब 200 किलो गीला कचरा और 125 से 150 किलो सूखा कचरा निकलता है। गीले कचरे से सोसाइटी में ही खाद बनाई जाती है, जोकि पार्कों में इस्तेमाल होती है। वहीं सूखे कचरे में शामिल कागज, प्लास्टिक, इलेक्ट्रानिक आइटम, गत्ते, धातु, गैर-धातु, लोहे आदि को अलग-अलग कर रिसाइकलिंग के लिए भेजा जाता है। अब तक करीब 17 टन प्लास्टिक और 3000 किलो ई-वेस्ट का निदान किया जा चुका है। इसके अलावा प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकने को बैग बैंक स्थापित हैं, जहां से लोग सामान लाने के लिए बैग ले जाते हैं और इन्हें वापस रख देते हैं।

    आरआरआर सेंटर कचरा निदान और मदद का जरिया

    नवजीवन विहार आरआरआर (रिड्यूस, रीयूज, रिसाइकल) सेंटर कई आरडब्ल्यूए से जुड़ा है और सामुदायिक सहयोग से रिसाइकलिंग के लिए कार्यरत है। वाईवेस्टवेडनस डे एनजीओ की ओर से संचालित ये सेंटर कचरा पिक एंड ड्राप की सुविधा देता है। एकत्रित कचरे को रिसाइकलिंग केंद्रों पर भेजा जाता है।

    यहां जरूरतमंदों की मदद के लिए जरूरी सामान भी लिया जाता है। इसके तहत अभी तक करीब 25 टन से अधिक सूखा राशन, बिस्कुट, पेय पदार्थ, कपड़े, जूते, गद्दे, बिस्तर, खिलौने, किताबें, स्टेशनरी आदि जरूरतमंदों तक पहुंचाए गए हैं।

    पहले थी चुनौती, आब आदत बना

    कचरा देश की बड़ी समस्या है और शुरुआत में सोसायटी के लोगों को इस काम के लिए तैयार करना बड़ी चुनौती थी। घरेलू सहायकों को भी जागरूक करना जरूरी था, जिससे कचरा प्रबंधन सही तरीके से हो सके। इसके लिए लोगों को सर्कुलर और विडियो साझा कर जागरूक करने को काम किया और घरेलू सहायकों के लिए कार्यशालाएं की। धीरे-धीरे बदलाव आना शुरू हुआ और आज कचरा प्रबंधन सभी की आदत में शामिल है।
    डा. रूबी मखीजा, सचिव नवजीवन विहार आरडब्ल्यूए व आरआरआर सेंटर संचालिका

    हाई-टेक नर्सरी में कचरे का निपटान 

    जहां चाह वहां राह इस कहावत को चाणक्यापुरी स्थित डी वन और डी टू फ्लैट के लोगों ने सच कर दिखाया है। यह कालोनी कचरा प्रबंधन में अपनी सामुदायिक जिम्मेदारी और महत्वपूर्ण भूमिका के लिए एक मिसाल पेश कर रही है। जहां एक ओर शहरों में कचरे के पहाड़ पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बन रहे हैं।

    वहीं, इस कालोनी ने इसका एक स्थायी समाधान खोजा है। ऐसे में कालोनी के अंदर ही हर प्रकार के कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निपटान किया जा रहा है। यहां हर परिवार कचरा प्रबंधन में अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभाकर स्वच्छता की मिसाल पेश कर रहा है।

    हर माह 700 से 1000 किलो ई- वेस्ट का निदान

    एनडीएमसी के कर्मचारी अमित कुमार ने बताया कि मुहिम के तहत हर घर में लोग गीले और सूखे कचरे को अलग- अलग रखते हैं। सोसाइटी में डी वन और डी टू में आइएएस अधिकारियों के कुल 368 फ्लैट है जिसमें से 320 फ्लैट में परिवार रहते है। इसके अलावा इलाके में 21 कोठियां और आसपास के दुकानों का गीला और सूखा कचरे का यहीं निपटान किया जाता है।

    हर घर के बाहर गीला और सूखे कचरे के लिए कूड़ेदान रखे गए है। इन घरों से हर रोज करीब 70 से 80 किलो गीला और सूखा कचरा निकलता है। इसके अलावा बाहर सड़को पर लोहे के बड़े- बड़े जाल गोलाकार में लगाए गए है। जिसमें दुकानदार और रोड का कचरा डाला जाता है। इन सभी कचरों को एकत्रित करके एनडीएमसी के कर्मचारी हाइटैक नर्सरी तक पहुंचाते है। जहां खाद बनाई जाती है।

    इन खादों का इस्तेमाल पार्कों से लेकर घरों तक में इस्तेमाल किया जाता है। बचे खाद को एनडीएमसी के बागवानी विभाग द्वारा ले जाकर अन्य पार्कों में इस्तेमाल करता है। यहां घरों और दुकानों से निकलने वाले सूखे कचरे को लगभग ग्यारह कैटेगरी में अलग करके उसका निस्तारण किया जाता है।

    एनडीएमसी कर्मचारियों द्वारा यहां आने वाले कागज, मिक्स प्लास्टिक, इलेक्ट्रानिक आइटम, गत्ते, धातु, गैर-धातु, लोहे, रबड़, कांच, चमड़े से बने कचरे और पत्ते को अलग-अलग कर रिसाइकलिंग किया जाता है। डी वन डी टू निवासी नीरजा ने बताया कि कचरा देश की बड़ी समस्या है और शुरुआत में सोसायटी के लोगों को इस काम के लिए तैयार करना बड़ी चुनौती थी। जिससे कचरा प्रबंधन सही तरीके से हो सके।

    इसके लिए वाट्सएप ग्रुप पर लोगों को जोड़कर हर रोज मीटिंग कर लोगों को गीला और सूखा कचरा अलग अलग करके रखने के लिए जागरूक किया गया। लापरवाही पर लोगों का चालान करने के साथ ही उनके घर का कचरा उठान भी बंद कर दिया गया।

    जिसके बाद से बदलाव आना शुरू हुआ और आज कचरा प्रबंधन और स्वच्छता सभी की आदत में शामिल है। आज सभी अपनी जिम्मेदारी समझ रहे है। आज इस इलाके को अनुपम कालोनी का दर्जा प्राप्त है।

    मेडिकल व ई-वेस्ट का भी हो रहा निदान

    आइपी एक्सटेंशन का दिल्ली राजधानी अपार्टमेंट तीन साल पहले यमुनापार की पहली सोसायटी बनी, जिसमें गीला और सूखा कचरा ही नहीं, मेडिकल और ई-वेस्ट वेस्ट स्रोत पर अलग करके रखने की शुरुआत की गई। इस पहल के सूत्रधार सोसायटी वासी मनोज शर्मा और दिनेश जैन को वर्ष 2022 में पहचान मिली और उन्हें उप राज्यपाल ने सम्मानित करने के साथ इस सोसायटी को जीरो वेस्ट घोषित किया।

    इनके सराहनीय काम की वजह से नगर निगम की तरफ से 7.5 किलोवाट का सौर ऊर्जा संयंत्र सोसायटी में निश्शुल्क लगाया गया।

    मनोज शर्मा पेश से इंजीनियर और दिनेश जैन सीए हैं। इन्होंने बताया कि गाजीपुर के कूड़े के पहाड़ से बदबू उनके यहां तक आती थी। उस वक्त नगर निगम भी स्रोत पर कूड़े को पृथक्करण के लिए प्रेरित कर रहा था। तभी आइडिया आया कि सोसायटी में यह पहल शुरू कर कचरे से खाद बनाई जाए। योजनाबद्ध तरीके से दिल्ली राजधानी अपार्टमेंट सोसायटी से हरे-नीले डिब्बे वाले कूड़ेदान प्रत्येक फ्लैट में बंटवाए गए।

    प्रत्येक फ्लैट ओनर ने इसमें सहयोग किया। प्रारंभ में थोड़ी दिक्कतें आईं, लेकिन उनको दूर किया गया। पहले कबाड़ से सामान लाकर देसी तकनीक से खाद के लिए ड्रम तैयार किए। फिर आइपीसीए से ऐरोबिन लेकर उसमें गीले कचरे से खाद बनाने की प्रक्रिया शुरू की।

    सूखे कचरे को रिसाइकल के लिए दिया जाता है। प्रतिदिन निकलने वाले 70 से 100 किलोग्राम गीले कचरे को 60 दिन तक एरोबिन में रख कर खाद बनाया जाता है। फिर खाद को पैक कर 50 रुपये प्रति पैकेट बेचा जाता है। तरल खाद भी बेची जाती है। इस सोयायटी में सेनेटरी पैड के निस्तारण के लिए इंसीनरेटर तक लगाया हुआ है।

    इस सोसायटी में होने वाले आयोजनों में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होता, इसके लिए इन्होंने बर्तन बैंक बनाया हुआ है। सोसायटी में किसी के भी यहां कोई आयोजन हो, वह उनका ही उपयोग करता है। इसके साथ ही गेट पर 200 थैले रखवाए हुए हैं, ताकि शापिंग पर जा रहे फ्लैट ओर पालीथिन में सामान न लाएं। गाय की रोटी के लिए भी अलग से ड्रम रखा है।