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महिला सुरक्षा के दावे हवा-हवाई

दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा दिल्ली पुलिस ही नहीं केंद्र व राज्य सरकार के लिए भी हमेशा से गंभीर चुनौती रही है। सरकार हो अथवा पुलिस महिलाओं की सुरक्षा को वे अपनी पहली प्राथमिकता बताने से नहीं चूकती है। सुधार लाने की दिशा में बड़े से बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन दावे कभी परवान नहीं चढ़ पाता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 Apr 2019 06:05 PM (IST)Updated: Mon, 01 Apr 2019 06:05 PM (IST)
महिला सुरक्षा के दावे हवा-हवाई
महिला सुरक्षा के दावे हवा-हवाई

राकेश कुमार सिंह, नई दिल्ली

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दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा दिल्ली पुलिस ही नहीं केंद्र व राज्य सरकार के लिए भी हमेशा से गंभीर चुनौती रही है। वे महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता बताने से नहीं चूकती हैं। सुधार लाने की दिशा में किए जाने वाले बड़े-बड़े दावे हवा-हवाई साबित होकर रह जाते हैं। इसलिए दिल्ली में महिला सुरक्षा सबसे गंभीर समस्या बनी हुई है। न तो केंद्र व राज्य सरकार अपने दावों पर खरी उतर पा रही हैं और न ही दिल्ली पुलिस। चुनाव में या किसी बड़ी घटना में यह मुद्दा फिर मुखर हो जाता है।

सड़क पर, सार्वजनिक वाहनों व निजी कंपनियों की कैब में महिलाओं के साथ अक्सर छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती हैं। कार्यालयों में भी ऐसे मामले सामने आ जाते हैं। इसके पीछे की वजह गिरते सामाजिक मूल्य तो हैं ही सरकारी व्यवस्था व पुलिसिया सिस्टम भी जिम्मेदार है। दोषियों को सजा देने की प्रक्रिया काफी जटिल है। इसलिए पीड़िताओं को जल्द न्याय नहीं मिल पाता है। दोषियों को सख्त सजा न मिलने की वजह से अपराधियों में कानून का डर भी नहीं होता है।

दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी को मानें तो दिल्ली के विभिन्न थानों में महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित रोजाना 40 केस दर्ज होते हैं, जिनमें छह से अधिक दुष्कर्म के मामले होते हैं। वर्ष 2012 में वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद सरकार द्वारा किए गए सर्वे की रिपोर्ट में यह सामने आया था कि दिल्ली में 41 फीसद छेड़खानी की वारदात सार्वजनिक परिवहन के उपयोग करने मे व बस स्टैंडों पर होती है। 40 फीसद वारदात सड़कों पर होती है। 17 फीसद बाजार, मॉल व भीड़ वाली जगहों पर व दो फीसद पार्को में होती है।

वसंत विहार की घटना के बाद सरकार व पुलिस के स्तर पर बड़े-बड़े दावे किए गए थे, लेकिन वे धरातल पर नहीं उतर पा रहे हैं। दोनों के बीच सामंजस्य की कमी की वजह से महिला सुरक्षा को लेकर मजबूत रणनीति तय नहीं हो पा रही है। वसंत विहार की घटना के बाद यातायात पुलिस ने दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग को ऑटो-रिक्शा को छह वर्गो में बांटने का अनुरोध किया था। ऑटो-रिक्शा के रंग भी अलग-अलग करने को कहा गया, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया। दिल्ली की कानून-व्यवस्था को लेकर गत वर्ष अक्टूबर में उपराज्यपाल अनिल बैजल के साथ पुलिस के आला अधिकारियों की बैठक में पुलिस आयुक्त ने दावा किया था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। रात में घर लौटने वाली महिलाओं की सुरक्षा के लिए 800 पीसीआर वैन, गश्त करने वाली मोटरसाइकिल, इमरजेंसी रिस्पांस व्हीकल की व्यवस्था की गई है, लेकिन इस तरह के दावे व जमीनी हकीकत में काफी अंतर है।

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बॉक्स

ऑटो में लगता है डर, कैब भी असुरक्षित महसूस होने लगी है

कोई वारदात न हो जाए, इसलिए रात में महिलाएं ऑटो में अकेले जाने से डरती हैं। मजबूरी में एप आधारित कैब बुक कराती हैं। हाल की घटनाओं को देखें तो कैब भी महिलाओं को असुरक्षित महसूस होने लगी हैं। कैब चालकों की अश्लील हरकतों के कई मामले सामने आए हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाली एक महिला ने कुछ महीने पूर्व आइजीआइ एयरपोर्ट से बाराखंभा जाने के लिए देर रात उबर कैब बुक कराई थी। धौलाकुआं के पास पहुंचने पर कैब चालक शौकीन खान पीछे बैठी महिला को शीशे से बार-बार देखते हुए अश्लील हरकत करने लगा। इंडिया गेट के पास पहुंचने पर महिला ने कैब रुकवाई और उतरकर पुलिस को कॉल किया। चालक को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने जब जांच की तो चौंकाने वाली बात सामने आई। आरोपित अपने भाई के नाम फर्जी लाइसेंस बनवाकर कैब चला रहा था। उसकी जालसाजी को न तो कैब कंपनी पकड़ पाई थी और न ही यातायात पुलिस। यह हालिया घटना एक उदाहरण है। बॉक्स

सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था नहीं है दुरुस्त

हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा पेश किए गए बजट में भी महिला सुरक्षा को लेकर कोई नई योजना लाने की बात नहीं कही गई। दिल्ली में लचर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के कारण ही महिलाओं को मजबूरी में ऑटो व एप आधारित कैब का सहारा लेना पड़ता है। देर रात मेट्रो से उतरने पर घर तक जाने के लिए फीडर बसों की प्रर्याप्त व्यवस्था नहीं है। सार्वजनिक वाहनों में महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं के रोकथाम के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) नहीं लगे हैं। कई साल से दिल्ली सरकार बसों में मार्शल की तैनाती करने की बात कह रही है, लेकिन बसों में होमगार्ड या मार्शलों की तैनाती नहीं हो पाई है। बॉक्स

दिल्ली पुलिस में कर्मचारियों की कमी

दिल्ली पुलिस में कर्मचारियों का भी भारी टोटा है। दिल्ली पुलिस में 91,964 पद स्वीकृत हैं और 81,220 कर्मचारियों की ही तैनाती है, जबकि दिल्ली की जनसंख्या करीब 2 करोड़ हो गई है। जितने कर्मचारी हैं, उनमें से करीब 60 फीसद का शहर की कानून-व्यवस्था संभालने से कोई वास्ता नहीं होता है। महिला पुलिस अधिकारियों व कर्मियों की संख्या 8765 है, जिनमें से अधिकतर डेस्क ड्यूटी पर रहती हैं। इनका काम थाने का रिकार्ड या अधिकारियों की फाइलें ही इधर से उधर करना होता है। बॉक्स

क्या कहती है जस्टिस उषा मेहरा कमेटी की रिपोर्ट

वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद जस्टिस उषा मेहरा की कमेटी ने पूरे हालात का जायजा लेने के बाद केंद्र व राज्य सरकार के कई मंत्रालयों, पुलिस व अन्य विभागों को दिए सुझाव में कहा था कि दिल्ली के हर थाने में एक तिहाई महिला कर्मी होनी चाहिए। छह साल बाद भी यह सुझाव अमल में नहीं लाया जा सका, जबकि इसको लेकर समय-समय पर दावे किए गए कि दो साल के अंदर सभी थानों में 15-15 महिलाकर्मियों की संख्या हो जाएगी। आधी आबादी के लिए 33 फीसद आरक्षण के भी दावे किए गए थे, लेकिन वे सिफर साबित हुए। वर्तमान में थानों में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 6-9 तक हो पाई है। इनमें भी आधी मातृत्व व अन्य घरेलू कारणों से अवकाश पर रहती हैं। इससे थानों के संचालन में भी दिक्कत आती है। दिल्ली पुलिस के ही अधिकारियों को मानें तो एक स्याह पक्ष यह भी है कि दिल्ली के सभी थानों में रात में महिला पुलिसकर्मियों के ठहरने के लिए अनुकूल व्यवस्था भी नहीं है। सबसे पहले इसे ठीक करने की जरूरत है।

---------------- गत वर्ष दिल्ली में महिलाओं के साथ अपराध

अपराध-केस

दुष्कर्म-2146

छेड़खानी-3314

आपत्तिजनक हरकत- 599

अपहरण-3482

बहला-फुसला कर ले जाना- 262

दहेज प्रताड़ना- 3416

दहेज हत्या-147

शादी के समय दहेज मांगना- 15

(नोट: ये आंकड़े दिल्ली पुलिस के हैं।) फोटो-510

दिल्ली में महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। मुख्यमंत्री अरविद केजरीवाल ने महिलाओं की सुरक्षा के बड़े-बड़े वादे किए थे, जो पूरे नहीं किए गए। न तो पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगे और न ही बसों में मार्शलों की तैनाती की गई। आम आदमी पार्टी के विधायक व नेता खुद महिलाओं को प्रताड़ित कर रहे हैं। ऐसे में इस तरह की सरकार से महिलाओं की सुरक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती है।

प्रवीण शंकर कपूर, दिल्ली प्रदेश भाजपा प्रवक्ता

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फोटो-511

वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म की घटना के बाद आम आदमी पार्टी ने सबसे ज्यादा सवाल खड़े किए थे। उसने दिल्ली में महिला सुरक्षा पुख्ता करने के लिए तमाम वादे किए थे, लेकिन सत्ता मिलने के बाद आम आदमी पार्टी सबकुछ भूल गई। दिल्ली में न तो सीसीटीवी कैमरे लग पाए और न ही बसों में पैनिक बटन लगे, बसों में मार्शलों की तैनाती भी कुछ दिन ही रही। अब अपनी नाकामी का ठीकरा दिल्ली पुलिस पर फोड़ कर वह कह रही है कि पुलिस महकमा हमारे अधीन नहीं है।

जितेंद्र कोचर, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता

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फोटो-512

दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध व बिगड़ती कानून-व्यवस्था के पीछे मुख्य कारण दिल्ली पुलिस पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण नहीं होना है। इसलिए हम लोग पूर्ण राज्य की मांग कर रहे हैं। अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाता है तो दिल्ली पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन आ जाएगी और हम राजधानी में ऐसी व्यवस्था करेंगे कि आधी रात में भी महिलाएं दिल्ली में निर्भीक होकर घूम सकेंगी।

गोपाल राय, प्रदेश संयोजक, आम आदमी पार्टी


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