दिल्ली का सेकेंड हैंड कार बाजार बना सुरक्षा जोखिम, फर्जी कागजात और ढीली निगरानी से बढ़ रहा खतरा
दिल्ली का सेकेंड हैंड कार बाजार सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। फर्जी कागजात और कमजोर निगरानी के कारण अवैध गतिविधियां बढ़ रही हैं। इससे कारों की अवैध ख ...और पढ़ें

दिल्ली में पुरानी कारों के बाजार में विक्री को खड़ी पुरानी कारें। जागरण
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। निगरानी व दस्तावेजी मानकीकरण में कमी से दिल्ली में सैकेंड हैंड कारों का बाजार सार्वजनिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसकी पुष्टि लाल किला विस्फोट मामले में हो चुकी है। इस घटना में सामने आया था कि धमाके के लिए प्रयुक्त आई-20 कार दिल्ली के सेकेंड लैंड कार बाजार से एक नहीं कई बार खरीदी और बेची गई थी।
घटना का मुख्य आरोपित डा. उमर घटना को अंजाम देने के लिए उसी कार का इस्तेमाल कर एप था, जबकि कार उसके नाम पर नहीं थी। इसी पैटर्न पर पहले भी आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। परिवहन विभाग का कहना है कि पुराने वाहनों के बाजार पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है। दिल्ली पुलिस कहती है कि यह उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
इस कारण ही सेकेंड हँड कारों का बाजार करीब एक लाख करोड़ से अधिक का संगठित उद्योग बन गया है। दिल्ली में ये बाजार करोल बाग, चावड़ी बाजार, कश्मीरी गेट, प्रीत विहार, पीतमपुरा, लक्ष्मीनगर, शाहदरा समेत कई क्षेत्रों में फैला है।
बाजार की वर्तमान स्थितिः कार्स 24 की रिपोर्ट बताती है कि भारत का पुराने वाहनों का बाजार करीब 3.15 लाख करोड़ का हो चुका है। इसके 2032 तक 7.8 लाख करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। इसमें एनसीआर का हिस्सा करीब 32 प्रतिशत यानी एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का है पर बिना डिजिटल ट्रैकिंग व सत्यापन के इस पर संदेह भी बरकरार है।
इस कारण और एंड-आफ-लाइफ व्हीकल (ईओएलवी) नियमों के अभाव में पुरानी कारों की कीमतों में 40 से 50 प्रतिशत तक की गिरावट की आशंका है। इस वर्ष दिल्ली में 47,585 से अधिक पुरानी कारों की बिक्री हुई है। जनवरी से जून तक तो इसमें तेजी देखी गई।
फर्जी कागजात का धंधा
सेकेंड हैंड कार के बाजार की आड़ में फर्जी कागजात बनाने का भी धंधा चल रहा है। क्लोनिंग टूल्स का उपयोग कर चोरी की गाड़ी का चेसिस और इंजन नंबर की क्लीनिंग कर फर्जी आरसी व बीमा करके आनलाइन या आफलाइन बेची जा रही है। दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने हाल ही में हाई-सिक्योरिटी नंबर प्लेट बेचने वाली फर्जी साइटों का रैकेट पकड़ था, जो बिना असली रजिस्ट्रेशन के गाड़ी चलाने की व्यवस्था बनाते थे।
ये है व्यवस्था में कमी
- परिवहन विभागः आरसी ट्रांसफर में दो से छह महीने की देरी होती है। एनओसी प्रक्रिया जटिल है।
- 60 प्रतिशत से ज्यादा चालान का अनुपालन नहीं होता है।
- एएनपीआर कैमरों में बार-बार तकनीकी खराबी रहती है।
- सितंबर तक सिर्फ 150 वाहन ही स्क्रैप तक पहुंचे।
- अनौपचारिक डीलर द्वारा खरीदार का कोई सत्यापन नहीं होता और फर्जी दस्तावेज आसानी से बनते हैं।
- हरियाणा-यूपी से पुरानी गाड़ियां आसानी से दिल्ली आ जाती हैं।
- 62 लाख से ज्यादा EOLV गायब या अनट्रेस्ड हैं।
- 3500 से अधिक हैं अनधिकृत सेकंड हैंड कार डीलर।
सुझाव
- पुराने वाहनों की बिक्री पर अश्वार वेरिफिकेशन, स्व-प्रमाणन और वाहन इंटीग्रेशन अनिवार्य हो।
- इन वाहनों के वैलर्स का रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग अनिवार्य कर तय समय पर इनका ऑडिट हो।
- पुलिस, आरटीओ और डीलर्स के बीच ऐप-आधारित रियल-टाइम लिंक से वाहनों की बिक्री पर नज़र रखी जाए।
- आरसी ट्रांसफर को ऑनलाइन और अनिवार्य किया जाए।
- फास्ट-ट्रैक और बैंक हाइपोथेकेशन का इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण अनिवार्य हो।
- पुलिस और डीलर के बीच संवाद और प्रशिक्षण होना चाहिए।

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