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    दिल्ली में मल्चिंग तकनीक से प्रदूषण पर नियंत्रण की तैयारी तेज, धूल और पीएम 2.5 की मात्रा होगी कम

    Updated: Sun, 21 Dec 2025 05:30 AM (IST)

    दिल्ली में मल्चिंग तकनीक के द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने की तैयारी तेज़ कर दी गई है। इस तकनीक से धूल और पीएम 2.5 की मात्रा को कम करने में मदद मिलेग ...और पढ़ें

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    कालकाजी वार्ड में पेड़ के किनारे क्यारी बनाकर मिट्टी के ऊपर मल्चिंग डालतीं पार्षद योगिता सिंह। जागरण 

    जागरण संवाददाता, दक्षिणी दिल्ली। राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को बढ़ाता जा रहा है। सड़कों पर धूल-मिट्टी की बड़ी वजह डिवाइडर से लेकर किनारों पर गार्डेनिंग है। क्यारियों की मिट्टी सूखने पर तेज रफ्तार वाहनों के चलने से धूल यहीं से उड़कर सड़कों पर फैलती है।

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    लगातार वाहन चलने पर धूल के बारीक कण (पीएम 2.5 व पीएम 10) हवा और वाहनों के धुएं में घुलकर घातक बनते जा रहे हैं। मल्चिंग तकनीक से हवा में धूल के कणों को फैलने से काफी हद तक रोका जा सकता है।

    इस तकनीक में छंटाई के बाद पेड़ों के अवशेष के बारीक करके मिट्टी की सतह बिछा दिया जाता है। यह नमी को लाक करके मिट्टी को सूखने और धूल बनकर उड़ने से रोकता है। इससे न केवल प्रदूषण का स्तर कम होगा, बल्कि छंटाई के बाद बचे पेड़ों के अवशेष का सुविधाजनक तरीके से निस्तारण भी किया जा सकेगा।

    कालकाजी वार्ड में किया गया ट्रायल

    कालकाजी वार्ड के जी ब्लाक में फिलहाल इसका ट्रायल किया गया है। ग्रेप के प्रतिबंध हटने के बाद वार्ड की अन्य सड़कों के किनारे भी क्यारियों की मरम्मत करते हुए मल्चिंग बिछाई जाएगी। यह धूल को रोकने में बहुत प्रभावी है। मिट्टी की सतह पर एक अवरोध बनकर यह हवा और बारिश के कारण होने वाले मिट्टी के कटाव या धूल उड़ने से रोकता है।

    एमसीडी की ओर से वर्तमान में सड़क किनारे की झाड़ियों और पेड़ों की टहनियों की छंटाई चल रही है। मोटी डाल किसी न किसी रूप में उपयोग में आ जाते हैं, पर पतली टहनियों का निस्तारण बड़ी समस्या है। कालकाजी पार्षद योगिता सिंह ने बताया कि विदेशों में ऐसी टहनियों या पेड़ों के अवशेष के छोटे-छोटे टुकड़े करके मल्चिंग में बदल दिया जाता है।

    इसे सड़क किनारे की क्यारियों में मिट्टी की सतह पर बिछा दिया जाता है। हाल ही न्यूजीलैंड प्रवास के दौरान उन्होंने वहीं के स्थानीय निकाय से इसे समझा। अब अपने वार्ड के जी-ब्लाक में इसका ट्रायल भी शुरू कर दिया है।

    पाबंदियां हटते ही बिछाई जाएगी मल्चिंग

    हालांकि ग्रेप की पाबंदियां लगने से पेड़ों के किनारों पर क्यारियों ठीक करने का काम फिलहाल रुका हुआ है। पाबंदियां हटते ही जी-ब्लाक में काम पूरा करते हुए वार्ड की अन्य सड़कों के किनारे भी क्यारियों की मरम्मत कराते हुए मल्चिंग बिछाई जाएगी।

    योगिता सिंह ने कहा कि कई जगहों पर सेंट्रल वर्ज की मिट्टी पौधों के बढ़ने के साथ ऊपर तक आ चुकी है। कम से कम छह इंच गहराई तक मिट्टी निकालकर मल्चिंग बिछाने से अन्य स्थानों पर भी धूल उड़ने से रोका जा सकता है।

    सड़क किनारे की क्यारियों में मल्चिंग के चार बड़े फायदे

    • धूल न उड़ने से प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
    • मिट्टी ढंकी होने से अंदर नमी बनी रहती है, जिससे पौधों को कम पानी देना पड़ता है।
    • बाद में यह सड़कर खाद बन जाते हैं और पौधों को पोषण देते हैं।
    • छंटाई के बाद पौधों के अवशेषों का सुविधाजनक और सस्ता निस्तारण।