प्रदूषण से त्रस्त दिल्ली-एनसीआर में सांस और इम्यूनिटी के लिए वरदान है नीली-काली हल्दी, जानें क्या है फायदे
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के कारण सांस लेने में तकलीफ और कमजोर इम्यूनिटी एक बड़ी समस्या है। नीली/काली हल्दी एक प्राकृतिक उपाय है जो सांस और इम्यूनिटी ...और पढ़ें

नीली/काली हल्दी। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, बाहरी दिल्ली। नीली/काली हल्दी (ब्लू टर्मरिक) दिल्ली एनसीआर जैसे प्रदूषित इलाकों में रहने वालों के लिए नीली/काली हल्दी उपयोगी मानी जाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने नीली हल्दी को रेस्पिरेटरी और प्रदूषण से जुड़ी समस्याएं; गले की खराश, खांसी, छाती जकड़न, सांस से जुड़ी परेशानियों से राहत में कारगर बताया है।
औषधियों के वाहन के रूप में भी इस्तेमाल
नीली या काली हल्दी, आम पीली हल्दी से अलग मानी जाती है। आल इंडिया डाक्टर्स एसोसिएशन आफ आईएसएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष व आयुर्वेद विशेषज्ञ डा. आरपी पाराशर ने बताया कि दक्षिण भारत में नीली/काली हल्दी का उपयोग सदियों से होता आया है। इसे कई औषधियों के वाहन के रूप में भी प्रयोग किया जाता रहा है।
इसे इम्यूनिटी बूस्टर भी कहा जा सकता है। इसकी खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राज्य में होती है। इसकी जड़ गहरी रंगत वाली, सुगंध तेज़ और औषधीय गुणों में विशेष मानी जाती है। पानी में उबालने पर इसका रंग नीला या गहरा काला हो जाता है।
डा. पाराशर ने बताया कि नीली/काली हल्दी में मौजूद एंटी-आक्सीडेंट गुण इम्युनिटी बढ़ाने, स्किन एलर्जी और इंफ्लेमेशन में राहत देने में सहायक हो सकते हैं। एंटी इनफ्लेमेटरी गुण के कारण इसे शरीर और जोड़ों की सूजन में राहत देने में सहायक भी माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार यह पाचन क्रिया को संतुलित करने में मदद कर सकती है।
इसे यूं किया जा सकता है इस्तेमाल
डा. पाराशर ने बताया कि नीली/काली हल्दी का इस्तेमाल कई प्रकार से किया जा सकता है। इसे पानी/दूध में उबालकर सीमित मात्रा में सेवन किया जा सकता है। इसे सूप या सब्जियों में डालकर उपयोग करें। बारीक काटकर गार्निश के तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि अधिक मात्रा सेहत के लिए हानिकारक हो सकती है। एक समय में 1–2 ग्राम और अधिकतम तीन ग्राम से ज़्यादा सेवन नहीं करना चाहिए।

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