Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दिल्ली-NCR में कोयला, लकड़ी और उपले से बढ़ता प्रदूषण, घोंट रहा लोगों का दम; नियमों का हो रहा उल्लंघन

    Updated: Mon, 15 Dec 2025 11:56 PM (IST)

    दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर है, जिसका मुख्य कारण कोयला, लकड़ी और उपले का ईंधन के रूप में उपयोग है। ग्रेप के नियम लागू होने के बावजूद, ...और पढ़ें

    Hero Image

    भट्टी में कोयला डालकर सीक कबाब, चिकन टिक्का सेंका जा रहा।

    स्वदेश कुमार, नई दिल्ली। शाम का समय है। गोकलपुरी के पास लोनी रोड पर ढाबे में तंदूर को तैयार करने के क्रम में लकड़ी का कोयला डाला गया और फिर आग लगा दी गई। इसके साथ धुआं ही धुआं। कुछ ऐसा ही नजारा पुरानी दिल्ली में जामा मस्जिद के सामने उर्दू बाजार में सड़क किनारे नान-वेज की दुकानें हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यहां भट्टी में कोयला डालकर सीक कबाब, चिकन टिक्का सेंका जा रहा था। सुल्तानपुरी के पी-3 ब्लाक में लकड़ी के कोयले की टाल है। हर तरफ कोयला बिखरा हुआ है। खरीदार बोरियों में भरकर ले जा रहे हैं। कई जगहों पर डिलीवरी भी कराई जा रही है।

    मंगोलपुरी के महर्षि वाल्मिकी रोड पर पार्क में पेड़ों की सूखी और टूट चुकी टहनियां जल रही हैं। पास में ग्रामीण इलाका है, यहां गली में अलाव जल रही है जिसमें लकड़ी और कोयला दोनों जल रहे हैं। ये स्थिति तब है, जब दिल्ली समेत एनसीआर में हवा दमघोंटू हो चुकी है। ग्रेप चार के नियम लागू हो चुके हैं।

    पर्यावरण थिंक टैंक आइ फारेस्ट (इंटरनेशनल फोरम फार एन्वायरमेंट एंड सस्टेनेबिलेटी) के एक अध्ययन में सामने आया है कि देश में 80 प्रतिशत प्रदूषण की वजह धूल और धुआं हैं। एनसीआर में भी लगभग यही औसत है। सड़कों से धूल हटाने, निर्माण कार्यों पर रोक लगाने और वाहनों को प्रतिबंधित करने जैसे उपाय तो सामने आते रहते हैं लेकिन लकड़ी से बने कोयले, लकड़ी और उपलों का धड़ल्ले से ईंधन के रूप में इस्तेमाल पर रोक नहीं लग पा रही है।

    राष्ट्रीय राजधानी में लगभग वर्ष भर हवा खराब रहती है। इस वजह से ग्रेप एक हमेशा लागू रहता है। इसमें तंदूर में कोयला जलाने पर रोक है। इसके बाद भी चांदनी चौक, जामा मस्जिद, पहाड़गंज, करोल बाग, शाहीनबाग, नेहरू प्लेस, बदरपुर, कालकाजी, साकेत, महरौली आदि इलाकों में ढाबों और रेस्तरां में तंदूर का उपयोग आम है। तंदूरी रोटी हो या चिकन या फिर पनीर, कोयले की दहकती आंच पर इसे तैयार होते देखा जा सकता है।

    शाम ढलते ही तंदूर में कोयले की आग तैयार होने लगती है। इसके चलते इन इलाकों में धुआं भी खूब होता है। इसके अतिरिक्त, लोहे के औजार बनाने वाले छोटे कारीगर भी भट्टी की आवश्यक ऊष्मा के लिए इसी कोयले का उपयोग करते हैं। घरेलू स्तर पर, हुक्का पीने वाले लोग भी इसकी मांग करते हैं। बैंक्वेट हाल भी इसके ग्राहक हैं। इसके साथ इस कोयले की खुलेआम बिक्री भी होती है।

    पश्चिमी दिल्ली में नांगलोई, उत्तम नगर, पश्चिम विहार, जनकपुरी और कीर्ति नगर जैसे क्षेत्र कोयले की आपूर्ति के प्रमुख केंद्र हैं। यमुनापार के चौहान बांगर, घोंडा, करावल नगर, गाजीपुर, गाजीपुर डेरी फार्म समेत कई स्थानों पर कोयले की दुकान है। इसके साथ सुल्तानपुरी के पी-3, मंगोलपुरी में आई-ब्लाक और राजपार्क क्षेत्र में कोयला बिकता है। विक्रेताओं ने बताया कि यहां ज्यादातर लकड़ी के कोयले उप्र के संभल से ट्रक के जरिये मंगाए जाते हैं। प्रतिदिन एक विक्रेता कम से कम एक टन कोयला बेचता है।

    विशेषज्ञ बताते हैं कि दिल्ली में एक तिहाई वन क्षेत्र हैं। यहां पेड़ काटने पर तो प्रतिबंध हैं लेकिन टूट कर गिरी शाखाओं के उठाने पर पाबंदी नहीं है। इन सूखी शाखाओं का दो तरह से ही इस्तेमाल होता है या तो उन्हें जलाकर गर्माहट ली जाती है या फिर रसोई के चूल्हे में इन्हें जलाया जाता है। इसी तरह से उपलों का प्रयोग ग्रामीण इलाकों में लोग रसोई में करते हैं। दिल्ली में कई स्थानों पर उपलों का बाजार भी है। हालांकि उपलों पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है। लेकिन जब हवा दम घोंटने लगे तो इस पर स्वत: ही रोक लग जानी चाहिए।

    फरीदाबाद और गुरुग्राम में कोयले की खपत अधिक

    दिल्ली से सटे फरीदाबाद में हर महीने करीब 200 टन कोयले की खपत तंदूर, अंगीठी और चूल्हे में होती है। यहां एक हजार से अधिक तंदूर भी हाेटलों और ढाबों में चल रहे हैं। इसी तरह गुरुग्राम में तंदूरों की संख्या आंकलन के मुताबिक करीब दो हजार हैं। यहां फरीदाबाद से दोगुनी खपत है।

    लापरवाही व मनमानी के कारण देश के सबसे प्रदूषित जिलों में रहा हापुड़

    हापुड़: जिले के ग्रामीण व देहात क्षेत्रों में चूल्हे का इस्तेमाल होता है। वहीं दूसरी ओर जिले के गली मोहल्लों समेत हाईवे पर करीब एक हजार होटल, ढाबे व छोटी रसोई बनी हुई हैं। जहां पर कोयले का इस्तेमाल होता है। एनजीटी के आदेशों के बाद भी इनमें गैस का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

    ग़ाज़ियाबाद में कोयला बिक्री की 500 के करीब दुकानें

    गाजियाबाद में करीब 500 दुकानें हैं जहां से कोयले की बिक्री की जाती है। एक दुकान से एक साल में 600 क्विंटल कोयले की बिक्री अनुमानित है। जिले में तीन लाख क्विंटल से अधिक कोयले की बिक्री होती है। यहां 15 प्रतिशत घरों में लकड़ी और उपले का इस्तेमाल भोजन बनाने में किया जाता है।

    दिल्ली-एनसीआर के लिए आइ फारेस्ट की प्रमुख सुझाव

    -गांव-देहात और शहरों से बाहर आज भी सर्दियों में गर्मी के लिए उपले, कोयला और लकड़ी को जलाया जाता है। इससे दिसंबर-जनवरी में प्रदूषण बढ़ता है। इस पर रोक लगाई जाए।

    -चीन की सबसे प्रभावी नीतियों में एक क्लीन हीटिंग फ्यूल पालिसी थी। अल्पकाल में दिल्ली भी यह कर सकती है। बायोमास की जगह हीटर के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए।
    -लधु एवं कुटीर उद्योगों के लिए के लिए इलेक्ट्रिक बायलर और भट्टी को बढ़ावा दिया जाए।

    क्या कहते हैं विशेषज्ञ

    लकड़ी और कोयला जलाने से हानिकारक गैसों के साथ पर्टिकुलेट मैटर निकलते हैं जो प्रदूषण को बढ़ाते हैं। एनसीआर पर इनकी बिक्री पर ही प्रतिबंध लगना चाहिए। इसके साथ इसके इस्तेमाल को हत्तोसाहित करने के लिए अभियान भी चलाना चाहिए। रेस्टोरेंट, ढाबों पर इसका इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि कमर्शियल गैस उन्हें काफी महंगी मिल रही है। इसकी तुलना में कोयला और लकड़ी सस्ती मिल रही है। सरकार को कमर्शियल गैस को इनकी कीमतों के आसपास लाना होगा। - डॉ. अनिल गुप्ता, सदस्य, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड