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    दिल्ली में सरकार बदली पर नहीं सुधरे अस्पतालों के हालात, दैनिक जागरण की पड़ताल में खोखले निकले दावे

    Updated: Thu, 06 Nov 2025 08:26 AM (IST)

    दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाएं मिलने का दावा झूठा साबित हो रहा है। मरीजों को ओपीडी और भर्ती के दौरान भी बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। दवा की कमी, टेंडर में देरी और सप्लाई चेन की गड़बड़ियों के कारण स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। मरीजों को सर्दी, खांसी जैसी सामान्य दवाएं भी बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं, जिससे अस्पतालों के आसपास दवा का कारोबार बढ़ रहा है।

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    अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। दिल्ली सरकार का दावा है कि राजधानी के सभी सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवाएं व उपचार उपलब्ध है पर, धरातल पर सच्चाई इसके उलट है। बढ़े बजट के बावजूद मरीजों को अस्पतालों में सभी दवा नहीं मिल रही।

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    ओपीडी की बात छोड़िए भर्ती मरीजों के तीमारदारों तक को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है। दवा की कमी, टेंडर में देरी और सप्लाई चेन की गड़बड़ियों ने दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं को बीमार बना दिया है। सुबह से दोपहर तक राजधानी के पांच प्रमुख सरकारी अस्पतालों में की गई दैनिक जागरण की पड़ताल में यही सच्चाई निकल कर सामने आई कि सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क दवा का दावा ही है जमीनी हकीकत जबकि उलट है।

    वहीं, इस मामले में दिल्ली स्वास्थ्य सेवा निदेशालय की महानिदेशक डा. वत्सला अग्रवाल से लेकर स्वास्थ्य मंत्री डा. पंकज सिंह तक ने चुप्पी साध रखी है। दोनों से फोन व वाटट्सएप के जरिये इस पर प्रतिक्रिया मांगी गई लेकिन कोई उत्तर नहीं आया।

    आलम यह है कि मरीजों को हर चार में से दो दवा बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। कई बार तो मरीजों को साधारण सर्दी, खांसी और बुखार तक की दवा बाहर से खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है। यही कारण है कि दिल्ली के हर सरकारी अस्पताल के आसपास दवा करोड़ों का दवा कारोबार खूब फल-फूल रहा है, चमक रहा है।

    बताया गया कि लोक नायक, जीबी पंत, जीटीबी, लाल बहादुर शास्त्री और दीपचंद बंधु अस्पताल का यही हाल है। सिस्टम बीमार है और मरीज परेशान हैं पर, अस्पताल प्रबंधन व सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं। यह सिर्फ मरीजों, उनके स्वजनों के आरोप नहीं, बल्कि पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर एंड मैनेजमेंट आफ हेल्थ सर्विसेज -2025 कैग रिपोर्ट की भी सच्चाई है।

    लोकनायक (एलएनजेपी) अस्पताल – सुबह 9 बजे

    दवा लेने के लिए काउंटर पर मरीज और उनके तीमारदार पर्चियां लिए खड़े। भीतर से ये दो दवा हैं बाकी बाहर से लो, की आवाज उनके चेहरों पर मायूसी ला देती है। क्योंकि महंगी वाली दवा उन्हें बाहर से खरीदनी है, यह उन्हें कभी अस्पताल से नहीं मिलती। विमला शर्मा, जो मधुमेह की मरीज हैं, बताती हैं डाक्टर ने शुगर कंट्रोल की दो दवाएं लिखीं, लेकिन एक भी नहीं मिली।

    काउंटर वाले बोले हैं बाहर से ले लिजिए, यहां नहीं है। कान में दर्द की शिकायत के साथ आए शाहीद कहते हैं ड्राप तो मिला, पर टैबलेट नहीं। बोले हैं, स्टाक खत्म है। काउंटर पर मौजूद स्टाफ ने बताया कि सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी से दवाओं की आपूर्ति में देरी हो रही है। हम क्या करें।

    जीबी पंत अस्पताल, सुबह साढ़े 9 बजे

    यह अस्पताल हृदय रोगियों के लिए प्रमुख है, यहां भी हालात चिंताजनक हैं। यहां हृदय रोगियों के लिए ‘दिल तो है पर दवा नहीं।’ मोहम्मद फखरूद्दीन, जिनका हृदय रोग का इलाज चल रहा है, कहते हैं तीन दवा लिखीं गईं, एक मिली। बाकी दो बाहर से 900 रुपये में खरीदीं।’ कहते हैं, नि:शुल्क दवा की व्यवस्था अब सिर्फ कागजों पर रह गई? जीबी पंत अस्पताल के एक किमी दायरे में दवा की 150 से अधिक दुकानें मौजूद हैं।

    गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल : 11 बज

    उत्तर-पूर्वी दिल्ली का बड़ा अस्पताल जीटीबी का हाल भी ठीक नहीं है। यहां उपचार कराने यहां आए दिनेश मंडल का दोहरा दर्द है। पहले तो उन्हें सात में से चार दवा बाहर से खरीदनी पड़ी। तीन दिन से पेंडिंग अल्ट्रासाउंड भी अब बाहर से कराना पड़ रहा है।

    पेट दर्द के इलाज को आए मांगेराम ने बताया, पर्चे पर डॉक्टर ने चार दवा लिखीं, दो के लिए कह दिया गया कि खुद खरीद लो। क्या करें। इमरजेंसी के बाहर खड़ी प्रिया, सड़क हादसे की पीड़िता हैं। उनके भाई बताते हैं, आपरेशन से पहले इंजेक्शन खुद खरीदने पड़े, 1500 रुपये खर्च हुए। यहां भी आसपास में दवा की सौ से अधिक दुकानें हैं।

    लाल बहादुर शास्त्री (एलबीएस) अस्पताल दोपहर 12 बजे फार्मेसी पर सन्नाटा

    वहां खड़ी 70 वर्षीय कल्याणी देवी कहती हैं, डाक्टर साहब ने तीन दवा लिखी थी। ब्लड प्रेशर की दवा ‘एम्लोडिपाइन’ नहीं मिली, बाहर से 300 रुपये की खरीदी। अब बाकी के लिए यहां खड़ी हूं। वहां मौजूद अस्पताल स्टाफ स्वीकार करता है कि दवा के साथ-साथ ग्लव्स, सिरिंज और बैंडेज की कमी है, रोजाना मांग आपूर्ति से दोगुनी है। कई बार कहा गया है पर, कोई सुधार नहीं।

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    दीपचंद बंधु अस्पताल, अशोक विहार, दोपहर एक बजे

    कभी बेहतर प्रबंधन के लिए चर्चित यह अस्पताल अब दवा संकट से जूझ रहा है। रुखसार बताती हैं, अब्बू को बीपी और शुगर की शिकायत है। यहां दिखाया तो डाक्ट ने पर्चे पर चार दवा लिख दी, 15 दिन के लिए। मिली एक भी नहीं। 1900 रुपये खर्च हो गए। अस्पताल प्रबंधन से जुड़े स्टाफ का कहना है कि अस्पताल को दवा का सिर्फ 40 प्रतिशत स्टाक मिला है। क्या करें, जैसे-तैसे काम चला रहे हैं।

    बजट बढ़ा, व्यवस्था फिर भी बीमार

    • 2025-26 में दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 12,893 करोड़ रुपये का बजट तय किया है, यह पिछले वर्ष से अधिक है।
    • इनमें दवा और जांच के लिए लगभग 4,000 करोड़ रुपये आवंटित हैं, जबकि विशेषज्ञों के अनुसार आवश्यकता करीब 8,000 करोड़ रुपये की है।
    • हर वर्ष दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में छह करोड़ से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं, पर बजट का उपयोग अधूरा रहता है।

    कहां है कमी

    • 2023-24 में स्वास्थ्य बजट का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा खर्च ही नहीं हुआ।
    • बजट का बड़ा भाग भवन निर्माण और प्रशासनिक खर्च पर चला गया, दवा-जांच पर आवंटन सीमित।
    • सप्लाई चेन और खरीद व्यवस्था कमजोर, सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी (सीपीए) की प्रक्रिया में देरी।
    • अस्पतालों की संख्या और भीड़ का अनुपात असंतुलित, जिससे मांग और आपूर्ति में भारी अंतर।