नाबालिग लड़कियों की दोबारा तस्करी मामले में लापरवाही बरतने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस से मांगा जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़कियों की दोबारा तस्करी के लिए दिल्ली पुलिस की लापरवाही पर सवाल उठाते हुए जवाब मांगा। कोर्ट ने पूछा कि क्या बचाई गई लड़कियों की उचित देखभाल न होने से वे फिर तस्करी का शिकार हुईं। यह आदेश दो एनजीओ की याचिका पर न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा ने दिया। अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस को भेजा नोटिस।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। नाबालिग लड़कियों की दोबारा तस्करी के लिए दिल्ली पुलिस की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस से जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि क्या बचाई गई लड़कियों की उचित देखभाल न होने से वे दोबारा मानव तस्करी का शिकार बनीं।
न्यायमूर्ति रविंदर डूडेजा ने ये आदेश जस्ट राइट्स फार चिल्ड्रन एलायंस और एसोसिएशन फार वालंटरी एक्शन नामक दो गैर सरकारी संगठनों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। इस मामले की अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी।याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि उन्होंने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर बुराड़ी और वजीराबाद में वेश्यावृत्ति रैकेट के खिलाफ छापेमारी की थी।
बुराड़ी में पहली रेड में आठ लड़कियों को छुड़ाया गया
बुराड़ी में हुई पहली रेड में आठ लड़कियों को छुड़ाया गया था, जिनमें तीन नाबालिग थीं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पुलिस ने नाबालिग लड़कियों को किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के तहत बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया और बिना मेडिकल जांच के उन्हें उनके परिजनों को सौंप दिया।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि बुराड़ी रेड में बचाई गई एक नाबालिग लड़की को बाद में वजीराबाद की रेड में फिर से तस्करी से बचाया गया।याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यदि पुलिस समय रहते आरोपितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करती और लड़कियों को उचित पुनर्वास मिलता, तो दोबारा तस्करी की यह स्थिति नहीं आती।
याचिकाकर्ता ने इसके दो कारण बताए
याचिकाकर्ता के मुताबिक यह दो कारणों से संभव हुआ, पहला कि आरोपितों पर मामला दर्ज न करना और उन्हें छोड़ देना। दूसरा, बचाई गई लड़कियों को सही तरीके से पुनर्वासित करने के बजाय फिर से तस्करों के हवाले कर देना।
एनजीओ ने इस मामले में लापरवाही की जांच कराने और एनएचआरसी (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग) द्वारा तय किए गए मानकों के आधार पर एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) बनाने की मांग की है, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में पुलिस और अन्य एजेंसियां स्पष्ट रूप से कार्य करें।
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