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    दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, बैंकों को बेबुनियाद आरोपों से बचाया; PIL खारिज

    Updated: Tue, 04 Nov 2025 12:51 AM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने बैंकों के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के सामान्य आरोपों पर विचार न करने की बात कही है। अदालत ने एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा कि बैंकिंग क्षेत्र अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और बिना ठोस सबूतों के बैंकों को जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता। याचिका में एशियन होटल्स और दो बैंकों के बीच एकमुश्त निपटान सौदे में अनियमितता का आरोप लगाया गया था, जिसे अदालत ने अटकलों पर आधारित बताया।

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    दिल्ली उच्च न्यायालय ने बैंकों के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के सामान्य आरोपों पर विचार न करने की बात कही है।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। बैंकों में अनियमितताओं का आरोप लगाने वाली एक याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि बैंकिंग क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अदालतों को बैंकों के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं के सामान्य आरोपों पर विचार नहीं करना चाहिए।

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    न्यायालय ने कहा कि आरोपों के समर्थन में ठोस सबूतों के बिना ईमानदार बैंकों को भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता। न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर और न्यायमूर्ति अजय दिगपाल की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, जांच शुरू करने से पहले बैंकों और अन्य संबंधित या संलिप्त संस्थाओं से आरोपों पर जवाब मांगकर तथ्यों का पता लगाना अदालत का कर्तव्य है।

    न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन इंफ्रास्ट्रक्चर वॉचडॉग द्वारा दायर एक जनहित याचिका को खारिज करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की।
    याचिका में एशियन होटल्स (नॉर्थ) प्राइवेट लिमिटेड और दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) और बैंक ऑफ महाराष्ट्र (बीओएम) के बीच एकमुश्त निपटान (ओटीएस) सौदे में हयात रीजेंसी होटल के कम मूल्यांकन की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) से जांच की मांग की गई थी।

    याचिका में आरोप लगाया गया था कि ओटीएस लागू करते समय होटल का मूल्यांकन अनुचित रूप से कम करके आंका गया था, जिसके परिणामस्वरूप बैंकों को भारी नुकसान हुआ।

    हालांकि, अदालत ने कहा कि जनहित याचिका पूरी तरह से अनुमानों, अटकलों और मान्यताओं पर आधारित थी। मामले के गुण-दोष के आधार पर, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता एनजीओ ने होटल के संबंध में प्रस्तुत मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर यह मान लिया था कि संपत्ति का मूल्यांकन कम करके आंका गया था और बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पीएनबी इसमें शामिल थे।

    हालांकि, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ओटीएस लागू करने से पहले आवश्यक वित्तीय विवेक का प्रयोग किया गया था, और बैंकों द्वारा अर्जित राशि अनुमानित बही मूल्य से काफी अधिक थी।