पति के बेदखल होने पर भी बहू का साझा घर पर हक कायम, दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पति के बेदखल होने के बाद भी बहू का साझा घर पर अधिकार बना रहता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि बहू को साझा घर में रहने का अधिकार है, भले ही पति का उस घर पर मालिकाना हक न हो। अदालत ने निचली अदालत के बहू को घर खाली करने के आदेश को रद्द कर दिया।
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दिल्ली हाइकोर्ट का बड़ा फैसला। जागरण
डिजीटल डेस्क, नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि विवाह के बाद घर में रहने वाली पत्नी उस परिवार की सदस्य मानी जाती है, और यदि उसके पति को उसके माता-पिता ने संपत्ति से बेदखल भी कर दिया हो, तब भी पत्नी को उस घर में रहने का अधिकार प्राप्त है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने यह टिप्पणी बहू को घर से निकालने की मांग करने वाली उसकी सास और दिवंगत ससुर की याचिका को खारिज करते हुए की। 16 अक्टूबर को दिए गए आदेश में अदालत ने कहा कि बिना वैध कानूनी प्रक्रिया के बहू को घर से जबरन नहीं निकाला जा सकता।
लंबे समय से चल रहा था पारिवारिक विवाद
इस मामले में बहू की ओर से अधिवक्ता संवेदना वर्मा ने पक्ष रखा, जबकि सास-ससुर की ओर से अधिवक्ता काजल चंद्रा ने पैरवी की। दस्तावेजों के अनुसार, यह विवाद वर्ष 2010 में महिला की शादी के बाद शुरू हुआ, जब वह अपने पति के साथ उसके माता-पिता के घर में रहने लगी।
रिश्तों में दरार और कानूनी लड़ाई
साल 2011 में पति-पत्नी के संबंधों में खटास आ गई, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच कई दीवानी और आपराधिक मुकदमे दायर किए गए। याचिका में सास-ससुर ने तर्क दिया कि जिस मकान में महिला रह रही है, वह स्वर्गीय दलजीत सिंह द्वारा अर्जित निजी संपत्ति है, इसलिए इसे घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत "साझा घर" नहीं माना जा सकता।
हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि जिस तरह से सास ऊपर की मंजिल पर और बहू नीचे की मंजिल पर रह रही है, वह दोनों के अधिकारों और जरूरतों के बीच अच्छा संतुलन बनाए रखता है।
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