दिल्ली हाईकोर्ट ने शत्रु संपत्ति अधिनियम को बरकरार रखा, भारत रक्षा नियम-1962 और 1971 की संवैधानिक वैधता कायम
दिल्ली हाईकोर्ट ने शत्रु संपत्ति अधिनियम को बरकरार रखते हुए भारत रक्षा नियम-1962 और 1971 की संवैधानिक वैधता को कायम रखा। अदालत ने इस अधिनियम की आवश्यक ...और पढ़ें
-1765744220777.webp)
फाइल फोटो।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। शत्रु संपत्ति अधिनियम के संबंध में सितंबर 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने भारत रक्षा नियम-1962 और भारत रक्षा नियम-1971 के कई प्रविधानों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने 1962 और 1971 के विभिन्न नियमों के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया दी।
नियम 133 (आर) को चुनौती देना बेमतलब
मुख्य पीठ ने कहा कि अदालत की राय में भारत रक्षा नियम-1962 के नियम 133 (आर) को चुनौती देना पूरी तरह से बेमतलब लगता है, क्योंकि मामले के तथ्य में ऐसा कोई एलान नहीं किया गया है कि उस संपत्ति के संबंध में हुआ कोई भी स्थानांतरण नियम 133 (आर) के तहत अमान्य था।
अदालत ने उक्त टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता आशान उर-रब व अन्य की याचिका को ठुकरा दिया। इसमें 2010 में दिल्ली की एक संपत्ति को शत्रु संपत्ति के तौर पर क्लासिफिकेशन देने को सही ठहराया गया था, जो भारत के लिए शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन के पास है।
सरकार ने अधिसूचना पर गलत तरीके से भरोसा किया
याचिका में तर्क दिया गया था कि मूल मालिक हाजी मोहम्मद मुस्लिम, 1968 में संपत्ति बेचते समय एक भारतीय नागरिक थे और सरकार ने 1965 की अधिसूचना पर गलत तरीके से भरोसा किया, जिसने सभी पाकिस्तानी नागरिकों की संपत्ति शत्रु संपत्ति के संरक्षक को सौंप दी थी।
अदालत ने तर्कों को ठुकरा दिया और संरक्षक के इस निष्कर्ष को स्वीकार कर लिया कि मालिक 1964 में पाकिस्तान चले गए थे। नतीजतन, 1965 की अधिसूचना पूरी तरह से लागू होती है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।