चिकित्सा लापरवाही मामले में दिल्ली हाई कोर्ट सख्त, कहा– क्लिनिक चलाने से रोकना आजीविका का हनन नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मेडिकल अपराध में आरोपी डॉक्टर को अपना क्लिनिक चलाने से रोकना उसका मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(g)) नहीं छीनता। वह किसी अन्य क्लिनिक में काम कर सकता है। जमानत शर्त में ढील की मांग खारिज, लेकिन दिल्ली छोड़ने पर ट्रायल कोर्ट की अनुमति से राहत दी।
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दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला।
विनीत त्रिपाठी, नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले में स्पष्ट किया कि किसी चिकित्सा अपराध में संलिप्त एक डाक्टर को अपना चिकित्सा केंद्र चलाने से रोकने वाली जमानत की शर्त संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत ऐसे डाक्टर के आजीविका के अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि अपनी पसंद के किसी भी अन्य चिकित्सा केंद्र से जुड़कर डाक्टर काम कर सकता है और अपना पेशा जारी रख सकता है। अदालत ने कहा कि मुकदमे की समाप्ति तक केंद्र चलाने से रोकना उसका आजीविका नहीं छीनता है।
अदालत ने उक्त टिप्पणी एक डाक्टर की दो जमानत शर्तों में ढील देने के आवेदन को ठुकराते हुए की। आरोपित डाक्टर ने उसे चिकित्सा केंद्र चलाने व दिल्ली छोड़ने की शर्त में ढ़ील देने की मांग की। डाक्टर पर आरोप है कि उसके चिकित्सा केंद्र में अयोग्य व्यक्ति सर्जरी कर रहे थे। एक महिला की शिकायत पर मामले पर कार्रवाई हुई थी। महिला के पति की मृत्यु अयोग्य चिकित्सक द्वारा की गई सर्जरी के कारण अत्यधिक रक्तस्राव के कारण हुई थी।
मामले में आवेदक को डिफाल्ट जमानत देते हुए पीठ ने अन्य बातों के साथ-साथ उपरोक्त दो शर्तें भी लगाई थी। पीठ ने कहा कि जमानत देते समय लगाई गई शर्तें केवल उचित और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए भी शर्तें लगाई जा सकती हैं कि जिस व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है, वह उस अपराध के समान कोई अपराध न करे।
पीठ ने कहा कि आवेदक को चिकित्सा केंद्र चलाने से प्रतिबंधित करने वाली शर्त उपरोक्त पहलू को ध्यान में रखते हुए लगाई गई थी। हालांकि, दिल्ली न छोड़ने की शर्त के संबंध में पीठ ने कहा कि मामले में जांच पूरी हो चुकी है और मुकदमा शुरू हो चुका है। ऐसे में याचिकाकर्ता संबंधित ट्रायल कोर्ट की अनुमति से ऐसा कर सकता है। अदालत ने उक्त टिप्पणी व निर्देश के साथ याचिका का निपटारा कर दिया।

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