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    दिल्ली HC ने कहा-'बर्खास्तगी से परिवार की आजीविका पर पड़ता है असर', सीआरपीएफ कर्मी को किया बहाल

    Updated: Sat, 18 Oct 2025 04:47 PM (IST)

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीआरपीएफ के एक बर्खास्त कर्मी को बहाल करने का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि बर्खास्तगी से परिवार की आजीविका पर असर पड़ता है। न ...और पढ़ें

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    प्रतीकात्मक तस्वीर।

    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के एक कर्मी की बर्खास्तगी को बहाल करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी से कर्मी का परिवार अस्त-व्यस्त हो जाता है ओर उसके आजीविका का स्रोत ठप हो जाता है। न्यायमूर्ति सी हरिशंकर और ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि बर्खास्तगी कोई नियमित कदम नहीं है। एक सीआरपीएफ कर्मचारी की बर्खास्तगी को रद करते हुए पीठ ने उसे तत्काल बहाल करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि सेवा से बर्खास्तगी एक अतिवादी कदम है।

    सीआरपीएफ कर्मी को अधिकारियों ने तीन आरोपों के आधार पर सेवा से बर्खास्त कर दिया था। इसमें अपनी पहली शादी के रहते दूसरी महिला से शादी करना, नियोक्ता को पूर्व सूचना दिए बिना शादी करना और औपचारिक रूप से गोद लेने से पहले ही अपनी दूसरी पत्नी की बेटी की देखभाल के लिए चाइल्ड केयर भत्ता प्राप्त करना।

    हालांकि, पीठ ने कहा कि तथ्यों पर आधारित यह दावा बर्खास्तगी आदेश में दर्ज किया गया है और इसे गलत नहीं माना गया है। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने इस दावे की सत्यता या प्रमाण पर संदेह नहीं किया है।

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    पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का दूसरी पत्नी के साथ विवाह एक सद्भावनापूर्ण विवाह था क्योंकि पहली पत्नी के साथ उसका पिछला विवाह कम से कम याचिकाकर्ता की धारणा में ग्राम पंचायत की उपस्थिति में स्टाम्प पेपर के माध्यम से भंग हो गया था। ऐसी परिस्थितियों में याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त करना अदालत की राय में अनुचित होगा।

    पीठ ने कहा कि लड़की वास्तव में याचिकाकर्ता की दूसरी पत्नी की बेटी थी, ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि उस व्यक्ति ने अवैध रूप से बाल देखभाल भत्ता प्राप्त किया, भले ही उसने लड़की को औपचारिक रूप से बाद में गोद लिया हो। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता सेवा में सभी लाभों का हकदार होगा और सेना न देने की अवधि के दौरान वह किसी भी बकाया वेतन का हकदार नहीं होगा।

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