दिल्ली के भूजल में ‘यूरेनियम पर संकट’, दिमाग, किडनी और मानसिक स्वास्थ्य के लिए साइलेंट हेल्थ इमरजेंसी
दिल्ली के भूजल में यूरेनियम की मात्रा बढ़ने से स्वास्थ्य संकट गहरा गया है। यह दिमाग, किडनी और मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। विशेषज्ञों ने इसे साइलेंट हेल्थ इमरजेंसी बताया है, क्योंकि इसके लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं, जिससे लोगों को खतरे का पता चलने में देरी हो सकती है।

अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। सुरक्षित मानकों से अधिक यूरेनियम दिल्ली वालों का दिमाग बीमार कर रहा है। इसके साथ ही लाखों लोगों किडनी, हड्डी और मानसिक स्वास्थ्य भी गंभीर खतरे में हैं। यह सब दिल्ली के भूजल में यूरेनियम के सुरक्षित मात्रा से अधिक होने के कारण हो रहा है।
नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर रहा
विशेषज्ञों का कहना है कि यह दिल्ली के लिए गंभीर खतरा है क्योंकि यह सिर्फ किडनी या हड्डियों को ही नहीं, बल्कि पूरे नर्वस सिस्टम, मानसिक स्वास्थ्य और दिमाग को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। लंबे समय तक ऐसे पानी का सेवन दिमागी कार्यक्षमता, याददाश्त और नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर रहा है।
यूरेनियम की मात्रा सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक
केंद्रीय भूजल बोर्ड-2025 की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के 103 भूजल नमूनों में से 12.63 प्रतिशत में यूरेनियम की मात्रा सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है। यानी हर आठ में से लगभग एक भूजल नमूना सुरक्षित सीमा से ज्यादा दूषित मिला।
उत्तरी दिल्ली, उत्तर-पश्चिमी, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिण पश्चिम दिल्ली, रोहिणी, भलस्वा झील क्षेत्र, नांगली राजपुरा की स्थिति ज्यादा गंभीर है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि स्थिति में सुधार को तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो दिल्ली निवासियों के मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक परिणाम बेहद भयावह हो सकते हैं। यह स्थिति दिल्ली में एक ‘साइलेंट हेल्थ इमरजेंसी’ का रूप लेती जा रही है।
मूड डिसऑर्डर का प्रमुख कारण
एम्स इंटरनल मेडिसिन विभाग के डाॅ. हर्षल आर साल्वे ने इस स्थिति को चिंताजनक बताते हुए चेताया कि इससे होने वाली न्यूरो-टाॅक्सिसिटी (तंत्रिका-ऊतक को नुकसान) दिमाग को बीमार करने के साथ ही याददाश्त कमजोर करने, सीखने की क्षमता घटाने और मूड डिसऑर्डर का प्रमुख कारण है।
वह कहते हैं कि शरीर में लगातार जमा यूरेनियम नर्व सिग्नलिंग को बाधित करता है, जिससे तनाव, एंग्जाइटी, अवसाद होने का खतरा हमेशा बना रहता है।डा. हर्षल आर साल्वे के अनुसार पहले से प्रदूषण की गंभीर मार झेल रहे दिल्ली वालों के लिए यह समस्या मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ा रही है।
नींद में गड़बड़ी और मानसिक थकान में बढ़त
एम्स पलमोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डाॅ. अनंत मोहन बताते हैं कि यूरेनियम का शरीर में प्रवेश सबसे पहले किडनी को प्रभावित करता है, लेकिन इसका बड़ा असर दिमागी कार्यप्रणाली पर पड़ता है।
वे बताते हैं कि लंबे समय तक यूरेनियम युक्त पानी का सेवन ब्रेन सेल्स की कार्यक्षमता को धीमा कर देता है, जिससे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, चिड़चिड़ापन, नींद में गड़बड़ी और मानसिक थकान बढ़ जाती है। यह असर विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों के लिए बेहद गंभीर खतरा है।
आरओ का प्रयोग करने की दी सलाह
दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 1,000 करोड़ लीटर पेयजल की खपत है, जबकि दिल्ली जल बोर्ड करीब 900 करोड़ लीटर पेयजल आपूर्ति कर पाता है। इसमें 10 से 13 प्रतिशत हिस्सा भूजल का है। जिन क्षेत्रों के भूजल में यूरेनियम अधिक है, वहां यह अनदेखा जोखिम लोगों के स्वास्थ्य को गहरे से प्रभावित कर रहा है।
सलाह दी कि ऐसे इलाकों में हैंडपंप-बोरवेल का पानी सीधे न पिएं, आरओ आधारित फिल्टर का उपयोग करें और बच्चों को विशेष रूप से इस पानी से दूर रखें। सलाह दी कि भूजल गुणवत्ता की नियमित निगरानी हो, प्रदूषण के स्रोतों की पहचान कर प्रभावित क्षेत्रों में वैकल्पिक जल स्रोत उपलब्ध कराए जाएं।
धीमा जहर, साइलेंट किलर
यूरेनियम को ‘धीमा ज़हर’ और साइलेंट किलर भी कहा जाता है। क्योंकि यह शरीर में बिना किसी तात्कालिक लक्षण के जमा होता रहता है और धीरे-धीरे गुर्दे, हड्डियां, लीवर और दिमाग सबको अपने प्रभाव में लेकर निष्क्रिय कर देता है।
भूजल में यूरेनियम का मानक
भारत के पेयजल मानकों के अनुसार यूरेनियम की सुरक्षित सीमा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर (30पीपीबी, पार्टस पर बिलियन) मानी जाती है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की कुछ जगह यह 59 पीपीबी के करीब तक पहुंच गया था। कुल 103 नमूनों में से लगभग 12.63 प्रतिशत नमूनों में यूरेनियम 30 पीपीबी से ऊपर दर्ज किया गया।

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