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    अंग प्रत्यारोपण में पिछड़ रहे दिल्ली के सरकारी अस्पताल, NOTTO ने कारण तो बताए ही, हालात सुधारने के लिए दिए ये सुझाव

    Updated: Wed, 25 Jun 2025 03:56 PM (IST)

    दिल्ली-एनसीआर अंग प्रत्यारोपण सर्जरी का एक प्रमुख केंद्र है, लेकिन यह उपलब्धि मुख्य रूप से निजी अस्पतालों के कारण है। एम्स, सफदरजंग और आरएमएल जैसे दिल्ली के सरकारी अस्पताल अंग प्रत्यारोपण में काफी पीछे हैं, यहां तक कि पीजीआई चंडीगढ़ से भी कम सर्जरी करते हैं। राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) की रिपोर्ट के अनुसार, इसका कारण समर्पित ट्रांसप्लांट टीम, ऑपरेशन थिएटर और आईसीयू की कमी के साथ-साथ मरीजों का अत्यधिक दबाव है। नोटो ने सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण सुविधाओं को बढ़ाने के लिए नए केंद्र शुरू करने और कर्मचारियों को प्रोत्साहन देने की सिफारिश की है।

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    रणविजय सिंह, नई दिल्ली: देश में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी के मामले में दिल्ली एनसीआर एक बड़ा केंद्र है। लेकिन यह उपलब्धि निजी क्षेत्र के बड़े अस्पतालों के भरोसे ही है।

    दिल्ली के सरकारी अस्पताल किडनी, लिवर व हृदय की खराबी से जूझ रहे मरीजों को प्रत्यारोपण की सुविधा उपलब्ध कराने में पिछड़ रहे हैं। एम्स, सफदरजंग व आरएमएल जैसे तीन बड़े अस्पताल मिलकर भी पीजीआइ चंडीगढ़ के बराबर प्रत्यारोपण सर्जरी नहीं कर पाते।

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    राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) की एक रिपोर्ट इस बात की तरफ इशारा कर रही है। इस रिपोर्ट में सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण सर्जरी कम होने का कारण प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए अलग से समर्पित ट्रांसप्लांट टीम, आपरेशन थियेटर (ओटी) व आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) की कमी बताया गया है।

    अंग प्रत्यारोपण को लेकर अस्पताल नहीं दिखा रहे दिलचस्पी

    इसके अलावा मरीजों के दबाव के कारण सरकारी अस्पताल अंग प्रत्यारोपण में ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं लेते। एक वरिष्ठ डाॅक्टर ने बताया कि जीवित व्यक्ति के किडनी व लिवर दान से प्रत्यारोपण के लिए डोनर व मरीज दोनों को भर्ती करना पड़ता है।

    इससे एक मरीज के इलाज के लिए दो बेड उपयोग होते हैं। प्रत्यारोपण के बाद मरीज को अधिक दिन तक अस्पताल में भर्ती भी रखना पड़ता है। दूसरी ओर अस्पताल में विभिन्न बीमारियों से पीड़ित मरीजों का दबाव ज्यादा है।

    इसलिए नियमित सर्जरी पर फोकस अधिक है लेकिन नोटो सरकारी अस्पतालों में प्रत्यारोपण सुविधा बढ़ाने के प्रयास में जुटा हुआ है।नोटो की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर वर्ष एक लाख मरीजों की किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी की जरूरत होती है।

    सबसे अधिक होता है किडनी प्रत्यारोपण

    पिछले वर्ष 13,476 मरीजों की ही किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी हुई। मौजूदा सरकारी अस्पतालों की क्षमता पर्याप्त नहीं है। सरकारी अस्पतालों में प्रत्यारोपण की स्थिति में असमानता भी है।

    गत वर्ष अहमदाबाद के आइकेडीआर अस्पताल में 508 अंग प्रत्यारोपण सर्जरी हुई। पीजीआई चंडीगढ़ में पिछले वर्ष 55 कैडेवर डोनर प्रत्यारोपण सहित कुल 320 मरीजों की अंग प्रत्यारोपण सर्जरी।

    जिसमें किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी अधिक शामिल है। वहीं दिल्ली सरकार के जीबी पंत अस्पताल में लिवर प्रत्यारोपण के लिए बुनियादी सुविधा व लाइसेंस होने के बावजूद एक भी प्रत्यारोपण नहीं हुआ। नोटो ने इस पर सवाल उठाया है।

    एम्स में लिवर प्रत्यारोपण बेहद कम हुआ

    एम्स में अभी वर्ष भर में करी 130 किडनी प्रत्यारोपण, आठ से दस हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी होती है। लिवर प्रत्यारोपण सर्जन की कमी के कारण अभी लिवर प्रत्यारोपण बहुत कम होता है।

    सफदरजंग अस्पताल में वर्ष भर में 30 से 35 और आरमएल में 35 से 40 मरीजों की किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी होती है। इन दोनों अस्पतालों में लिवर प्रत्यारोपण नहीं होता।

    आरएमएल में अब तक सिर्फ दो हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी हुई है। नोटो की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्यारोपण के बाद दवाओं का खर्च उठाना मरीज के लिए आसान नहीं होता।

    प्रोत्साहन राशि दिए जाने की सिफारिश

    नोटो ने सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण बढ़ाने के लिए नए सेंटर शुरू करने के साथ-साथ डाक्टरों व कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि व पदोन्नति में प्रमुखता देने की सिफारिश की है। आने वाले समय में इसका प्रविधान किया जा सकता है।

    लिवर व हृदय प्रत्यारोपण आयुष्मान भारत में आए

    लिवर व हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी को आयुष्मान भारत व अन्य स्वास्थ्य योजना में शामिल करने की सिफारिश की गई है। वैसे निजी अस्पतालों में लिवर व हृदय प्रत्यारोपण का खर्च 20 लाख रुपये से अधिक है। इसलिए आयुष्मान भारत में इसे शामिल करना आसान नहीं होगा।