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    दिल्ली का प्रदूषण से फूल रहा दम, स्थायी कारकों पर नियंत्रण नहीं; हर तरफ हो रहा नियमों का उल्लंघन

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 11:19 PM (IST)

    दिल्ली में प्रदूषण के स्थायी कारणों पर नियंत्रण न होने से वायु गुणवत्ता खराब हो रही है। कूड़े के पहाड़, निर्माण कार्य से निकलने वाली धूल, वाहनों का धुआं और खुले में जलता कूड़ा प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। नियमों का उल्लंघन हो रहा है और ठोस कार्रवाई की कमी है। पर्यावरण को सरकारी योजनाओं में शामिल करने और स्थायी समाधान खोजने की आवश्यकता है।

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    देश की राजधानी में इन दिनों प्रदूषण से लोगों का दम फूल रहा।

    स्वदेश कुमार, नई दिल्ली। देश की राजधानी में इन दिनों लोगों का दम फूल रहा है। वायुमंडल में दिन-रात स्माग छाया हुआ है। वायु प्रदूषण ये घिरी दिल्ली पर ये दाग लग चुका है अब ये रहने लायक नहीं रह गई है। ऐसा नहीं है कि ये समस्या आज की है। कई सालों की अनदेखी की वजह से ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है।

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    ये समस्या प्राकृतिक और मनुष्य निर्मित दोनों हैं। मनुष्य निर्मित कारकों को दूर किया जा सकता है। लेकिन ये कारक स्थायी हो चुके हैं। सरकारी प्रयास नियमों को तय करने तक ही सीमित रहते हैं। इच्छाशक्ति का अभाव हर स्तर पर देखने को मिलता है।

    कूड़े के पहाड़: गाजीपुर, ओखला और भलस्वा में लैंडफिल साइट हैं। इन तीनों साइट पर लाखों टन कूड़ा पड़ा है। यहां से उड़ने वाली धूल वायुमंडल में तैरती रहती है। कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने का प्रयास कई सालों से चल रहा है। पहले वर्ष 2024 तक कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया था जो अब वर्ष 2028 तक पहुंच गया है। अभी इन साइटों पर 147 लाख टन कूड़ा पड़ा हुआ है।

    निर्माण कार्य से निकलने वाली धूल: पूरे साल दिल्ली में निर्माण कार्य चलते रहे हैं। कुछ अधिकृत होते हैं लेकिन उससे ज्यादा अनाधिकृत निर्माण कार्य होते हैं। इनमें धूल प्रबंधन के नियम ध्वस्त नजर आते हैं। जब वायु प्रदूषण बढ़ जाता है तो ग्रेप के नियम लागू होते हैं जब धूल प्रबंधन की याद भी आती है।

    गाड़ियों से निकलता धुआं : एक आंकलन के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन एक करोड़ दोपहिया से लेकर भारी वाहन सड़कों पर उतरते हैं। इनसे निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण को बढ़ावा देता है। धुएं से ज्यादा इनके टायरों से निकलने वाला मिनी पार्टिकल हवा को प्रदूषित करता है जो स्वास्थ्य के लिए ज्यादा नुकसानदेह होता है।

    सड़कों और फुटपाथ पर धूल : सड़कों पर उड़ती धूल भी वायु प्रदूषण में अहम रोल अदा कर रही है। कुछ सड़कों पर मशीन से सफाई होती भी है तो फुटपाथ पर धूल जमी रहती है। फुटपाथ पर मशीनें नहीं चल पाती हैं। अनाधिकृत कालोनियों में कई सड़कों के साथ कच्चे फुटपाथ हैं जहां से धूल उड़ती रहती है। इन पर रोकथाम के लिए कोई व्यवस्था मजबूत नहीं हो पा रही है।

    निर्माण व विध्वंस का मलबा : निर्माण कार्य व विध्वंस (सीएंडडी) से निकलने वाला मलबा सड़कों के किनारे पड़ा रहता है। दिल्ली में सीएंडडी वेस्ट से दूसरे उत्पाद तैयार करने के लिए चार प्लांट हैं। जब ये पूरी क्षमता से काम करें तो भी पांच हजार टन मलबा प्रतिदिन खपाया जा सकता है। लेकिन प्रतिदिन छह हजार टन मलबा निकलता है। इसे देखते हुए निगम ने सड़कों के किनारे 106 स्थान चिन्हित किए हैं जहां मलबा डाला जाता है। ये खुले में ही पड़ा रहता है। लोग इसके साथ अन्य स्थानों पर भी मलबा डाल देते हैं।

    खुले में जलता कूड़ा : राजधानी में जगह-जगह खुले में कूड़ा जलाया जा रहा है। इस पर पूरे साल रोक होती है। लेकिन निगम इस पर पूरी तरह से नियंत्रण करने में नाकाम है। ग्रेप के दूसरे चरण के बाद भी लोग चेते नहीं हैं और जगह-जगह कूड़ा जलाया जा रहा है।

    औद्योगिक उत्सर्जन : औद्योगिक गतिविधियों से निकलने वाले प्रदूषक वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। दिल्ली और इसके आसपास कई उद्योग हैं जो वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं।

    पर्यावरण को सरकारी योजनाओं के केंद्र बिंदु में लाना होगा

    सीपीसीबी व डीपीसीसी के सदस्य डा. अनिल गुप्ता कहते हैं कि अभी तक सरकारों की पंचवर्षीय योजनाओं में पर्यावरण शामिल नहीं रहा है। दिल्ली-एनसीआर में जो हालात हैं उसमें पर्यावरण को इन योजनाओं में शामिल करना होगा। स्थायी कारकों को खत्म करने के लिए निगरानी और कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।

    किसी भी शहर में आबादी के बीच लैंडफिल साइट नहीं होने चाहिए। लेकिन दिल्ली में तीनों साइट आबादी के बीच हैं। इन्हें तुरंत समाप्त करना होगा। इसके साथ सीएंडडी वेस्ट के सौ प्रतिशत निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। निर्माण स्थलों को लेकर अभी नियम 500 मीटर से बड़े प्लाट पर ही लागू होते हैं। धूल प्रबंधन के नियम हर निर्माण कार्य पर लागू होना चाहिए। दिल्ली में करीब 28,508 किलोमीटर का सड़क नेटवर्क है। सभी सड़कों पर सफाई होनी चाहिए।

    गाड़ियों से निकलने वाले धुआं और टायरों के घिसने से निकलने वाले पार्टिकल से बचाने के लिए यातायात व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि जाम न लगे। खुले में कूड़ा फेंकने और जलाने पर अधिक जुर्माना लगाने सहित कड़ी कार्रवाई का प्रविधान होना चाहिए। जागरूकता अभियान का भी सहारा लिया जा सकता है। जिन उद्योगों से वायु प्रदूषण हो रहा है उन्हें तत्काल बंद कर देना चाहिए।