जहरीली हवा ने बढ़ाया संकट, प्रदूषण से बढ़ रही सांस की बीमारी; दिल्ली के अस्पतालों में उमड़ रहे खांसी-दमा के मरीज
दिल्ली में जहरीली हवा के चलते संकट बढ़ गया है। प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियों के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। खांसी और दमा के मरीज ...और पढ़ें

साउथ दिल्ली के पूर्णिमा सेठी अस्पताल में लगी मरीजों की कतार। जागरण
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। 'दवा लेने के बाद भी खांसी रुक नहीं रही है। सांस लेने में दिक्कत होती है। जल्दी हांफने लगता हूं। इसलिए तीसरी बार अस्पताल आना पड़ा। चार साल का बेटा भी परेशान है, उसकी खांसी है कि रुक ही नहीं रही है। कई बार तो डर लगने लगता है।'
लोकनायक अस्पताल की इमरजेंसी के बाहर खड़े निजामुद्दीन की आवाज में थकान और निराशा साफ झलक रही थी। तीन सप्ताह में खांसी और गले में जलन के चलते दो बार अस्पताल आ चुके हैं। कहते हैं कि डाक्टरों ने बताया कि उनकी परेशानी सीधे तौर पर बढ़े वायु प्रदूषण से जुड़ी है।
कई दिनों तक रहता है प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण का असर तुरंत खत्म नहीं होता और इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव कई दिनों तक बना रहता है। राष्ट्रीय राजधानी के बढ़ते वायु प्रदूषण के बीच यह किसी एक मरीज की कहानी नहीं है। दिसंबर 2025 में दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) लगातार 'बहुत खराब' से 'गंभीर' श्रेणी में बना हुआ है और इसका असर सरकारी अस्पतालों में साफ दिख रहा है।
लोकनायक, गुरु तेग बहादुर, जीबी पंत और पूर्णिमा सेठी अस्पताल कालकाजी की ओपीडी में सांस, खांसी, जुकाम और गले में खराश के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। कई मरीजों में लगातार खांसी, सीने में जकड़न और सांस फूलने की शिकायत बनी हुई है।
पहले जहां 350 से 400 मरीज पहुंचते थे, वहीं अब यह संख्या 450 से 500 तक है। डाक्टरों के अनुसार, मौजूदा हालात में सांस से जुड़ी बीमारियों के मामलों में 20 से 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।
सर्दी में आम बात हो जाती है सांस की समस्या
पूर्णिमा सेठी अस्पताल कालकाजी में तीन सप्ताह से जुकाम से पीड़ित उपचार को पहुंची स्थानीय निवासी लता और खांसी, जुकाम के साथ सांस की दिक्कत से परेशान अपनी पोती को लेकर पहुंचे गोविंदपुरी निवासी दिलबहादुर की भी यही कहानी है।
उनका कहना है कि हर सर्दी में इस तरह की समस्या आम बात है। पर, इस बार मामला कुछ अलग है क्योंकि उपचार के बाद भी बीमारी खत्म नहीं हो रही। बताते हैं कि डाक्टर इसे प्रदूषण जनित बीमारी बताकर पल्ला झाड़ ले रहे हैं। हम कहां जाएं, क्या करें, समझ ही नहीं आ रहा। अब तो डर लगने गया है। दरियागंज निवासी शोएब व वसीम की भी यही शिकायत है।
कब स्थिति आपात मानी जाए
- सांस बहुत तेज या बहुत धीमी हो
- ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 प्रतिशत से कम हो
- बोलने में दिक्कत हो
- बच्चा, बुजुर्ग या गर्भवती महिला प्रभावित हो
आपात स्थिति में ऐसे बचें
- तुरंत साफ हवा में जाएं। धुएं, धूल, प्रदूषण या बंद कमरे से बाहर निकलें और खिड़की-दरवाजे खोलें।
- सीधा बैठें, लेटें नहीं। आधा बैठने की स्थिति में रहें, इससे फेफड़ों पर दबाव कम होता है।
- धीमी और नियंत्रित सांस लें। नाक से सांस लें और होंठ सिकोड़कर मुंह से सांस छोड़ें।
- गले, छाती या पेट पर दबाव डालने वाले कपड़े तुरंत ढीले करें।
- पहले से लिखी दवाएं या इनहेलर तुरंत लें। दमा, COPD या एलर्जी के मरीज रेस्क्यू इनहेलर का उपयोग करें।
- धुआं, इत्र, अगरबत्ती और धूप से दूर रहें, ये श्वसन नलिकाओं को और संकुचित कर सकते हैं।
- पानी का छोटा-छोटा घूंट लें। गला सूखने से खांसी बढ़ सकती है। बेहोशी या उलटी की स्थिति में पानी न दें।
- तेज दर्द, सांस की तकलीफ या घबराहट होने पर तुरंत चिकित्सक की सहायता लें।

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