नाटककार दया प्रकाश सिन्हा: अमिताभ पर नाटक बनाना चाहते थे हरिवंशराय बच्चन, सुनते ही कर दिया था इनकार
प्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा ने नाटकों के प्रति अटूट समर्पण दिखाया। उन्होंने 22 साल की उम्र में ही नाटक लिखना शुरू कर दिया था। सिन्हा ने हरिवंश राय बच्चन के अमिताभ बच्चन को लेकर नाटक निर्देशित करने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था। उन्होंने नाटकों को लिखने, निर्देशित करने और उनमें अभिनय करने में दशकों बिताए। उनके नाटकों का स्वरूप विचार प्रधान था।

दया प्रकाश सिन्हा तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से साहित्य अकादमी पुरस्कार लेते हुए। (फाइल फोटो)
डॉ. प्रशांत राजावत, नई दिल्ली। ख्यात नाटककार दया प्रकाश सिन्हा। नाटकों के प्रति ऐसी श्रद्धा और समर्पण कि 1957 में 22 वर्ष की उम्र से ही नाटक लिखने शुरू कर दिए थे, पहला नाटक सांझ सवेरा लिखा था।
जीवटता ऐसी कि हरिवंश राय बच्चन के कहने पर भी अमिताभ बच्चन को लेकर नाटक निर्देशित करने से मना कर दिया था। एक नाटककार, लेखक, निर्देशक, अभिनेता और प्रशासक.. तमाम भूमिकाओं में इस लोक में विचरते रहे सिन्हा के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बताता यह लेख:
लेखक, निर्देशक और अभिनेता तीनों का समिश्रण थे
नाटकों में रुचि ऐसी कि..दया प्रकाश ने 1959 में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के पहले बैच में ही दाखिला लिया। हालांकि उसी समय भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने के कारण वहां पढ़ने का अधूरा सपना लिए वो सरकारी सेवा की ओर मुड़ गए।
यहां भी उनका नाटक के प्रति मोह बना रहा और नाट्य लेखन जारी रहा। सिन्हा समकालीन नाट्य लेखन के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हुए। नाटकों को लेकर उनके जुनून की बानगी के एक नहीं कई उदाहरण देखने को मिलते हैं।
वह खुद नाटक लिखते.. निर्देशित करते और उसमें भूमिका भी निभाते। दिल्ली में 1971 में मेरे भाई मेरे दोस्त नाटक लिखा..निर्देशित किया और उसमें अभिनय भी किया। कथा एक कंस की.. में भी वे तीनों भूमिकाओं में रहे।
कई नाटकों को लिखने में दशकों का समय लिया
सिन्हा के लिखे नाटक बहुत लोकप्रिय हुए। जगह-जगह उनका मंचन हुआ। धारावाहिक बने। हालांकि उनके लिखने की अपनी एक अनूठी शैली थी। वो नाटकों को लिखने में ऐसे रमते कि कई नाटकों को लिखने में तीस साल तक का वक्त लगा देते।
चर्चित नाटक कथा एक कंस की.. लिखने में उन्होंने तीस वर्ष का समय लिया। सीढ़ियां नाटक.. चौदह वर्ष में पूरा किया। थियेटर की घटती लोकप्रियता को लेकर उनके मन में सदैव एक चिंता रहती थी।
वो अपने बेबाक बोल के लिए भी जाने जाते थे। सम्राट अशोक की औरंगजेब से तुलना को लेकर उनके बयान पर देश में खूब सियासी पारा चढ़ा था। उनके नाटकों का स्वरूप विचार प्रधान था।

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