गर्मी का कहर और जनता का डर, 70 प्रतिशत भारतीयों ने माना- ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही हीटवेव
येल क्लाइमेट फोरम के नए मैप्स दिखाते हैं कि भारतीय जलवायु परिवर्तन को महसूस कर रहे हैं। 71% भारतीय हीटवेव से प्रभावित हुए। ज्यादातर लोग मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग से लू, सूखा और चक्रवात बढ़ रहे हैं। ओडिशा में सूखे की स्थिति गंभीर है। रिपोर्ट नीति निर्माताओं को बेहतर योजना बनाने में मदद कर सकती है।
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सांकेतिक तस्वीर
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। येल क्लाइमेट फोरम द्वारा जारी नए क्लाइमेट ओपिनियन मैप्स भारत के 634 जिलों और 34 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में फैली जलवायु समझ, व्यक्तिगत अनुभव और जोखिम-बोध की सबसे सूक्ष्म तस्वीर पेश करते हैं। यह मैप्स दिखाते हैं कि भारतीय मौसम को केवल आंकड़ों में नहीं, अपनी त्वचा पर भी महसूस कर रहे हैं।
इन मैप्स की रिपोर्ट कहती है कि पिछले बारह महीनों में तेज और लंबी हीटवेव ने 71 प्रतिशत भारतीयों को प्रभावित किया। कृषि कीटों और बीमारियों का असर 59 प्रतिशत तक फैला। लगातार बिजली कटौती का अनुभव भी 59 प्रतिशत भारतीयों ने किया। आधा देश पानी की कमी और सूखे से जूझा। हर दो में से एक भारतीय ने खतरनाक स्तर का वायु प्रदूषण महसूस किया।
35 प्रतिशत लोगों ने किया चक्रवात का अनुभव
उत्तर प्रदेश में 78 प्रतिशत लोग कहते हैं कि उन्होंने गंभीर हीटवेव झेली है। राजस्थान, हरियाणा और ओडिशा भी इसी श्रेणी में आते हैं, जहां जवाब लगभग 80 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। इसके विपरीत तमिलनाडु और केरल में यह संख्या क्रमशः 52 और 55 प्रतिशत है।
जहां देश में औसतन 35 प्रतिशत लोग कहते हैं कि उन्होंने चक्रवात का अनुभव किया, वहीं ओडिशा में यह संख्या 64 प्रतिशत है। कारण साफ दिखाई देता है। 2024 में आया चक्रवात डाना अभी भी लोगों की याद में ताजा है। सूखे और जल-संकट की बात करें तो ओडिशा में दो तिहाई से ज्यादा लोग कहते हैं कि उन्होंने पानी की कमी को अपनी आंखों से देखा है। यह वही राज्य है जो लगभग हर साल चरम मौसम की परीक्षा से गुजरता है।
ग्लोबल वॉर्मिंग का क्या असर पड़ रहा?
रिपोर्ट का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि भारतीय चरम मौसम और जलवायु परिवर्तन के संबंध को बहुत स्पष्ट रूप से समझते हैं। 78 प्रतिशत लोग मानते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग तेज गर्म हवाओं, लू और असहनीय गर्मी को प्रभावित कर रही है। 77 प्रतिशत लोग इसे सूखे और पानी की कमी से जोड़ते हैं।
73 प्रतिशत लोग कहते हैं कि यह खतरनाक चक्रवातों को और मजबूत बना रही है। 70 प्रतिशत लोग मानते हैं कि भारी बाढ़ें इसी वजह से बढ़ रही हैं। तमिलनाडु में सिर्फ 21 प्रतिशत लोग कहते हैं कि उन्होंने चक्रवात का हालिया अनुभव किया, पर 74 प्रतिशत लोग फिर भी मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग चक्रवातों को तीव्र बना रही है।
जलवायु परिवर्तन को कैसे समझते हैं लोग?
भारत ने 2024 में 322 दिन चरम मौसम देखे, लगभग पूरा साल। जब मौसम इतना अनिश्चित हो जाए तो यह समझना बहुत जरूरी हो जाता है कि लोग इसे कैसे देख रहे हैं। यह जानना कि कौन से जिले सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं, कौन से समुदाय जोखिम को समझ रहे हैं और किन जगहों पर जलवायु संचार अभी भी कमजोर है। येल का यह नया डेटा नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य योजनाकारों, जल प्रबंधन विशेषज्ञों और मौसम विभाग के लिए दिशा तय कर सकता है।
रिपोर्ट के सह-लेखक डॉ. जगदीश ठाकुर कहते हैं “राज्यों और जिलों में लोग जलवायु परिवर्तन को कैसे समझते और महसूस करते हैं, यह जानना बहुत जरूरी है। यही समझ उस नीति की रीढ़ बनेगी जो लोगों की वास्तविक जरूरतों को पहचान सके।”

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