बचपन टूट रहा है चुपके से... बिना दबाव के भी बच्चे डिप्रेशन और सुसाइड की ओर, ICSSR रिसर्च में खुलासा
दक्षिणी दिल्ली से, एक शोध में पता चला है कि स्कूली बच्चों पर बुलीइंग, पारिवारिक झगड़े और डिजिटल दबाव के कारण मानसिक तनाव बढ़ रहा है। 'बचपन बचाओ, बचपन ...और पढ़ें

बच्चों की मानसिक स्वास्थ्य पर ICSSR का शोध। फाइल फोटो
शालिनी देवरानी, दक्षिणी दिल्ली। न उम्र ज्यादा, न शिकायतें और ना कोई दबाव… फिर भी मासूम बच्चे भीतर ही भीतर टूट रहे हैं। स्कूली छात्रों की मानसिक स्थिति को समझने के लिए चल रहे ‘सोशल इमोशनल लर्निंग (एसईएल)’ पर आधारित एक शोध में ये चिंताजनक बातें सामने आई हैं। भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएसएसआर) द्वारा वित्त पोषित प्रोजेक्ट 'बचपन बचाओ, बचपन बनाओ' के तहत जारी रिसर्च के आब्जर्वेशन में पाया गया है कि बुलीइंग, पारिवारिक झगड़े, पीयर प्रेशर और डिजिटल दुनिया का अत्यधिक दबाव बच्चों में तनाव, बेचैनी और अकेलापन बढ़ा रहा है।
बच्चों में सुसाइड, स्ट्रेस, हिंसा और क्राइम के बढ़ते मामलों को देखते हुए, यह रिसर्च ICSSR कर रहा है, जिसके लिए ₹1.4 मिलियन की फंडिंग जारी की गई है। पहले फेज़ में, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के कुल 300 स्कूली स्टूडेंट्स को शामिल किया गया है।
रिसर्च टीम में दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्री अरबिंदो कॉलेज (ईवनिंग) के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट से प्रोफेसर प्रज्नेंदु और रिसर्च असिस्टेंट डॉ. स्वाति शर्मा के साथ जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट से डॉ. मोहम्मद गाज़ी और गुरुग्राम यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की डीन प्रोफेसर गायत्री शामिल हैं। यह दो साल की रिसर्च मार्च 2026 में पूरी हो जाएगी।
प्रोजेक्ट के नतीजों के आधार पर सही सुझाव देंगे
डॉ. स्वाति शर्मा बताती हैं कि प्रोजेक्ट का मकसद बच्चों की मौजूदा मेंटल हालत की पहचान करना और सही डायग्नोसिस ढूंढना है। रिसर्च में साइकोलॉजिकल टेस्ट, ऑनलाइन और ऑफलाइन बातचीत और काउंसलिंग के आधार पर जानकारी इकट्ठा की जा रही है।
अक्सर, हम बच्चों में एंग्जायटी, डिप्रेशन, झगड़े और हिंसा को सिर्फ़ व्यवहार समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, लेकिन ये एक परेशान सोच को दिखाते हैं। प्रोजेक्ट को इवैल्यूएट करने के बाद, हम नतीजों के आधार पर एक डिटेल्ड रिपोर्ट देंगे, जिसमें बच्चों, पेरेंट्स और टीचर्स के लिए गाइडलाइंस दी जाएंगी। सुझावों में यह शामिल होगा कि बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए, मेंटल हेल्थ को कैसे बेहतर बनाया जाए और बदलते व्यवहार और आदतों को कैसे ठीक किया जाए।
ये प्रॉब्लम्स सामने आईं
| समस्या |
|---|
| डिप्रेशन |
| अकेलापन |
| स्ट्रेस |
| सुसाइड के विचार |
| मेंटल परेशानी |
| ड्रग्स का गलत इस्तेमाल |
| सोशल आइसोलेशन |
इन समस्याओं के मुख्य कारण
| मुख्य कारण |
|---|
| बुलीइंग |
| पीयर्स प्रेशर (दोस्तों का दबाव) |
| फैमिली में झगड़े |
| मोबाइल फोन का अधिक इस्तेमाल |
| ड्रग्स का आसानी से मिलना |
टीचर्स और पेरेंट्स के लिए सुझाव
- बच्चों से खुलकर बात करें।
- उन्हें मोबाइल फोन देने के बजाय एक्टिविटीज़ में शामिल करें।
- स्कूल में एक जीरो पीरियड रखें जहाँ बच्चे खुलकर बात कर सकें।
- उन्हें अच्छे रोल मॉडल बनने के लिए बढ़ावा दें।
- अगर आपको कोई भी लक्षण महसूस हो तो काउंसलिंग लें।
हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले
- 27 नवंबर - फरीदाबाद में स्टूडेंट ने सुसाइड किया
- 26 नवंबर - गाजियाबाद के नंदग्राम में स्टूडेंट ने सुसाइड किया
- 25 नवंबर - रेवाड़ी के धारूहेड़ा में 14 साल के लड़के ने सुसाइड किया
- 18 नवंबर - राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन से कूदकर स्टूडेंट ने सुसाइड किया
- 4 नवंबर - DU के स्टूडेंट ने होटल में सुसाइड किया
- 24 सितंबर - गुरुग्राम में 15 साल के लड़के ने सुसाइड किया

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।