विरासत की खोज अधूरी: लाखों खर्च कर उत्खनन रिपोर्ट न सौंपने पर ASI सख्त; अब एक साल में रिपोर्ट जमा करना अनिवार्य
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्खनन रिपोर्ट जमा न करने वाले संस्थानों पर सख्ती की है। लाखों खर्च के बाद भी रिपोर्ट न सौंपने पर ASI ने एक साल में रिपोर्ट जमा करना अनिवार्य कर दिया है। ऐसा न करने पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। यह कदम देश की विरासत को संरक्षित करने में मदद करेगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
वी के शुक्ला, नई दिल्ली। विरासत ढूंढने को लाखों रुपये खर्च कर उत्खनन कार्य किया जाता है, लेकिन कई अधिकारी इसकी रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नहीं सौंपते हैं। उनकी लापरवाही के कारण उत्खनन का उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।
अधिकारी भी हो गए रिटायर
हरियाणा के बनावली व थानेश्वर के हर्ष का टीला, उत्तर प्रदेश के मथुरा सहित गुजरात व राजस्थान से संबंधित पुरानी कई अन्य खोदाई की रिपाेर्ट एएसआई में तैयार कर जमा नहीं की गई हैं। अब संबंधित अधिकारी भी सेवानिवृत्त हाे गए हैं। करोड़ों रुपये खर्च करले के बाद हुई खोदाई का कोई रिकाॅर्ड एएसआई के पास नहीं है।
अब एक साल में जमा करनी होगी रिपोर्ट
इस लापरवाही को रोकने के लिए अब उत्खनन कार्य के पूरा होने पर एक वर्ष के अंदर पुरातत्वविदों को रिपोर्ट सौंपनी होगी। इसके लिए एएसआई ने उत्खनन कार्य के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। अब देश में कहीं भी उत्खनन कार्य पूर्ण होने पर उसके एक वर्ष के अंदर रिपोर्ट तैयार करनी होगी। उत्खनन कार्य के प्रभारी के साथ एक सहप्रभारी की भी होगी नियुक्ति। इससे उत्खनन कार्य के प्रभारी का स्थानांतरण कहीं अन्य स्थान पर हो जाने पर सहप्रभारी समय पर रिपोर्ट तैयार कराएगा।
क्या है एएसआई का उद्देश्य
एएसआई की प्रमुख पहचान उसकी पुरातात्विक विशेषज्ञता से है, जिसका प्रमुख काम उत्खनन कार्य भी है। एएसआई ने उत्खनन कार्य के माध्यम से अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर से लेकर कई अन्य मामलों में अपनी तथ्यात्मक रिपोर्ट देकर विवादों को हल करने में भी भूमिका निभाने का काम किया है आजादी के बाद से एएसआई लगातार विभिन्न स्थानों पर खोदाई कराता आ रहा है।
इसका लक्ष्य भारत के गौरवशाली प्राचीनतम इतिहास के बारे में जानकारी एकत्रित करना है। तमाम खोदाई सुर्खियों में भी रही हैं। मगर इस सब के बीच एएसआई में आज तक वह रिपोर्ट जमा नहीं हुईं जो उन खोदाई से खुदाई से संबंधित तैयार की जानी थीं। जिसका देश के शोधकर्ताओं से लेकर आने वाली पीढ़ी को मिल सकता था।
रिपोर्ट का नहीं हो सका प्रकाशन
कुछ मामलों में रिपोर्ट तैयार नहीं हुईं, वहीं कुछ ऐसे मामले भी सामने आ रहे हैं कि रिपोर्ट जमा हाेने के बाद भी आज तक प्रकाशित नहीं हो सकी हैं। इसके पीछे का बड़ा कारण अधिकतर खोदाई करने वाले पुरातत्वविदों के पास अतिरिक्त काम का बोझ होना भी माना जाता रहा है। जिसके चलते हुए समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर सके और उसके बाद उसका दूसरे स्थान पर तबादला हो गया, फिर उन्हें संसाधन नहीं मिल पाए और ना ही उन्हें समय मिल पाया। जिसके चलते रिपोर्ट ही तैयार नहीं हो सकी।
रिपोर्ट वेबसाइट से कुछ समय बाद गायब
आपको जानकर हैरानी होगी कि हड़प्पा सभ्यता की खोज से संबंधित सबसे बड़े दस्तावेज के रूप में प्रचलित खोदाई स्थल धोलावीरा की भी रिपोर्ट आज तक एएसआई में प्रकाशित नहीं है। सूत्रों की मानें तो एएसआई की साइट पर कुछ साल पहले लिए इस रिपोर्ट को डाला गया था, फिर करीब तीन माह बाद हटा दिया गया था।
इस खोदाई से संबंधित वरिष्ठ पुरातत्वविद पद्मश्री डाॅ. आर एस बिष्ट की मानें तो उन्होंने सेवानिवृत होने के बाद बचे हुए काम को पूरा करते हुए रिपोर्ट एएसआई को सौंप दी थी। वह खुद इस बात से हैरान हैं कि रिपोर्ट आज तक प्रकाशित क्यों नहीं की गई है।
कई राज्यों में दिखी यही समस्या
उधर, पुरातत्वविद एमसी मिश्र के नेतृत्व में मथुरा में 1915-1920 के आस-पास खोदाई हुई थी। मगर इसकी रिपोर्ट आज तक एएसआई की साइट पर नहीं है। हरियाणा के बनावली, हर्ष की टीला की भी रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं हो सकी है। पुरातत्वविद एके सिन्हा भी विभिन्न स्थानों की अपनी रिपोर्ट एएसआई में जमा नहीं करा सके।
पुरातत्वविद एसबी ओटा की रिर्पोट की रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं हुई और उनके नेतृत्व में हुई खोदाई में मिली धरोहर कहां जमा कराई गई है, इसकी एएसआई में किसी को जानकारी नही है।
इसी तरह मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बि्हार, गुजरात राजस्थान में कई अन्य जगह खोदाई कराई गई और पुरातत्वविद सेवानिवृत्त तक हो गए। मगर रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं हो सकी।
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