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    प्रदूषण खत्म करने का स्थायी समाधान नहीं है कृत्रिम बारिश, CPCB के बाद IIT कानपुर ने भी माना- यह केवल इमरजेंसी उपाय

    Updated: Fri, 24 Oct 2025 08:43 PM (IST)

    आईआईटी कानपुर के निदेशक डॉ. मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि कृत्रिम वर्षा वायु प्रदूषण का स्थायी समाधान नहीं है, यह केवल आपातकालीन उपाय है। उन्होंने बताया कि पहले भारत में प्रदूषण नियंत्रण के लिए कृत्रिम वर्षा नहीं हुई। दिल्ली में अनुमति न मिलने के कारण परीक्षण उड़ान बाहरी दिल्ली तक ही सीमित रही। क्लाउड सीडिंग के बाद वर्षा की तीव्रता और प्रदूषण में कमी का अनुमान लगाना मुश्किल है। उन्होंने जमीनी स्तर पर प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर जोर दिया।

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    दिल्ली में कृत्रिम बारिश को लेकर असमंजस में विशेषज्ञ।

    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) एवं अनेक पर्यावरण विशेषज्ञों के बाद अब आईआईटी कानपुर ने भी माना है कि कृत्रिम वर्षा वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं है। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में आइआइटी कानपुर के निदेशक डा मणींद्र अग्रवाल ने दो टूक शब्दों में कहा, प्रदूषण नियंत्रण में कृत्रिम वर्षा केवल उस समय के लिए आपातकालीन उपाय है, जब एक्यूआई का स्तर बहुत ज्यादा बना हुआ हो और वो अन्य उपायों से नीचे भी ना आ रहा हो।

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    उन्होंने यह भी कहा कि प्रदूषण से जंग में देश में पहले कभी कृत्रिम वर्षा नहीं हुई है। इसलिए इसके परिणाम को लेकर भी प्रामाणिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। कुछ साल पहले महाराष्ट्र और कनार्टक में क्लाउड सीडिंग हुई थी, लेकिन उसका मकसद सूखा ग्रस्त क्षेत्र में खेतीबाड़ी के लिए सिंचाई की व्यवस्था था। डॉ अग्रवाल ने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए जमीनी स्तर पर कारगर उपाय किए जाने चाहिए ताकि प्रदूषण का स्तर बढ़ ही ना पाए।

    एक सवाल के जवाब में डॉ अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि बृहस्पतिवार को आइआइटी कानपुर की टीम दिल्ली के बुराड़ी में नहीं थी। दिल्ली में एयरक्राफ्ट लैंड ही नहीं हुआ। कानपुर से ही सेसना एयरक्राफ्ट ने उड़ान भरी और बाहरी दिल्ली के कुछ इलाकों को कवर करते हुए लगभग चार घंटे में वापस कानपुर आ गया। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली एयरपोर्ट के लिए हमारे पास अनुमति नहीं है और मेरठ में भी दृश्यता का स्तर अच्छा नहीं था।

    आइआइटी के निदेशक ने यह भी कहा कि डीजीसीए से क्लाउड सीडिंग की अनुमति मुख्यतया बाहरी दिल्ली के लिए ही मिली है। एयरपोर्ट की तरफ इससे हवाई जहानों का परिचालन प्रभावित हो जाएगा जबकि नई दिल्ली में अति विशिष्ट सुरक्षा क्षेत्र होने के अनुमति नहीं मिल सकती है।

    तब दिल्ली के बाकी हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर भला कैसे कम हो पाएगा? पूछने पर डा अग्रवाल ने बताया, जब क्लाउड को सीड किया जाता है तो वह वहां से सरक जाता है। ऐसे में वह कहां कितनी दूर जाकर बरसेगा, यह कहना मुश्किल होता है। संभव है कि कुछ बादल वहां बरस जाएं, जहां हमारी उड़ान के लिए अनुमति नहीं है। इसके अलावा क्लाउड सीडिंग करने पर हवा चलती है। मतलब, जहां पर पानी नहीं बरसेगा, वहां हवा चलने से एक्यूआई कम होगा।

    इतना जरूर है कि प्रदूषण में आने वाली कमी में अलग- अलग क्षेत्रों में थोड़ी भिन्नता देखी जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रयोग के बाद वर्षा कैसी होगी, उसकी तीव्रता कितनी होगी और बादल कितनी देर तक बरसेंगे, इस बारे में अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है। प्रदूषण में कमी किस हद तक आएगी, ये भी क्लाउड सीडिंग के बाद ही पता चल पाएगा।

    डा अग्रवाल के मुताबिक, भले ही 29, 30 और 31 अक्टूबर को बादलों की उपस्थिति रहने की संभावना जताई गई है, लेकिन इस बारे में सटीक तौर पर एक दिन पहले ही पता चल पाएगा कि ट्रायल हो पाएगा या नहीं। जरूरी नहीं कि इन तिथियों पर भी कलाउड सीडिंग हो ही जाए।

    उन्होंने बताया कि डीजीसीए से अनुमति नवंबर माह के अंत तक की मिली हुई है, लेकिन बाद में वह बढ़वाई भी जा सकती है। बकौल अग्रवाल, हमने दिल्ली सरकार के साथ पांच ट्रायल का अनुबंध किया है, लेकिन जरूरत के मुताबिक इसकी संख्या भी बढ़ सकती है। ट्रायल के समय सेसना में दो पायलट होंगे बस। न कोई विज्ञानी, न ही अधिकारी। क्लाउड सीडिंग के लिए आटोमैटिक तरीके से ही फ्लेयर्स फायर किए जाएंगे।

    कृत्रिम से पहले हो जाएगी दिल्ली में सामान्य वर्षा

    मौसम विज्ञान के नवीनतम पूर्वानुमान में सामने आया है कि 29 अक्टूबर को केवल सुबह के समय आंशिक बादल होंगे जबकि 30 और 31 को आसमान साफ रहेगा। इसके विपरीत 26 अक्टूबर को शाम के समय आंशिक बादल छाएंगे और 27 एवं 28 तारीख को दिन भर बादल छाए रहेंगे। इन दोनों ही दिन हल्की वर्षा के भी एक दो दौर हो सकते हैं।

    क्लाउड सीडिंग के लिए चाहिए ऐसे बादल

    डॉ मणींद्र अग्रवाल के अनुसार क्लाउड सीडिंग के लिए लो लाइन यानी कम ऊंचाई पर होने चाहिए। इसके अलावा उनमें कम से कम 50 प्रतिशत की नमी होनी चाहिए। तब उनमें सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड सरीखे रसायन डाले जाते हैं। इससे पानी की बूंदें या बर्फ के टुकड़े बनते हैं और फिर वर्षा होती है।