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    16 साल पुराने Air Quality स्टैंडर्ड्स से लड़ी जा रही आज के प्रदूषण से जंग, अब PM2.5 और ओजोन का खतरा भी बढ़ा

    Updated: Thu, 18 Dec 2025 08:06 PM (IST)

    दिल्ली में राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) को अपडेट करने की आवश्यकता है, क्योंकि वर्तमान मानक 2009 में अपडेट किए गए थे और प्रदूषण ...और पढ़ें

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    संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) ही देश में यह तय करते हैं कि लोगों की सेहत की सुरक्षा के लिए हवा कितनी साफ होनी चाहिए। किस प्रदूषक कितनी सीमा स्वीकार्य है।

    लेकिन मौजूदा मानकों को अपडेट हुए डेढ़ दशक से अधिक समय हो चुका है। इस दौरान प्रदूषण के स्रोत बदल चुके हैं, शहरों का तेजी से विस्तार हुआ है व वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान भी ज्यादा स्पष्ट हुए हैं। ऐसे में इनका पुनरीक्षण बहुत जरूरी हो गया है।

    जानकारी के मुताबिक वर्तमान मानक 2009 में अपडेट किए गए थे। इनमें 12 प्रदूषक शामिल हैं- पीएम 10, पीएम 2.5, एसओ 2, एनओ 2, ओ 3, सीओ, एनएच 3, लेड, बेंजीन, बेंजोपाइरीन, आर्सेनिक व निकल।

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    1981 में वायु अधिनियम बनने के बाद 1982 में पहले मानक आए। इसके बाद 1994, 1998 और फिर 2009 में अपडेट हुए। इनमें प्रदूषकों की सीमा घटाई गई और मानकों को सख्त किया गया। लेकिन इसके बाद फिर यह प्रक्रिया दोबारा हुई ही नहीं।

    मौजूदा मानकों में मुख्य खामियां

    • पीएम 2.5, पीएम 10, ओजोन (ओ 3) और एनओ 2 के मौजूदा मान अब नए वैज्ञानिक प्रमाणों के अनुसार पर्याप्त नहीं हैं।
    • केवल सालाना और 24-घंटे के औसत पर निर्भर रहने से अचानक बढ़ने वाले प्रदूषण को ठीक से नहीं पकड़ा जा सकता।
    • वायु गुणवत्ता मानकों और प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों को नियंत्रित करने के उपायों के बीच इनका सीधा संबंध साफ नहीं है।
    • वर्तमान निगरानी व्यवस्था में पीएम 2.5 के अंदर मौजूद रसायनों की नियमित जांच नहीं होती।
    • वालेटाइल आर्गेनिक कम्पाउंड और अमोनिया की निगरानी सीमित है।
    • ओजोन के मौसमी और क्षेत्रीय जोखिम को ठीक से नहीं मापा जाता।

    इसलिए अपडेट करना जरूरी

    पीएम 2.5 और ओजोन कम मात्रा में भी दिल, फेफड़े, कैंसर और तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। बच्चे, बुज़ुर्ग एवं बीमार लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। अब प्रदूषण केवल सीधे निकलने वाले धुएं तक सीमित नहीं रहा। हवा में गैसें आपस में मिलकर नए कण बनाती हैं, जिन्हें द्वितीयक प्रदूषण कहा जाता है। यह समस्या शहर की सीमाओं से बाहर तक फैलती है।

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2021 में और सख्त वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी किए जा चुके हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) भी बेहतर एवं अपडेट मानकों की जरूरत बताता है। पीएम 2.5 में और ओजोन के साथ सेकेंडरी एयरोसोल की बढ़ता संबंध भी वजह है।

    सुझाव

    • चुनिंदा शहरों और एयरशेड में पीएम 2.5 की रासायनिक निगरानी की जाए।
    • वालेटाइल आर्गेनिक कम्पाउंड और अमोनिया की लक्षित माप हो।
    • ओजोन के लिए आठ घंटे व मौसमी औसत का उपयोग किया जाए।
    • खेती और कचरे से निकलने वाली अमोनिया को कम करना जरूरी।
    • वाहनों और साल्वेंट से निकलने वाले वालेटाइल आर्गेनिक कम्पाउंड पर भी सख्ती जरूरी।
    • पीएम 2.5 और ओजोन के लिए संयुक्त नीति अपनाना अनिवार्य।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम व वायु गुणवत्ता मानकों में तालमेल सुनिश्चित करना।
    • प्रगति का मूल्यांकन केवल प्रतिशत कमी से नहीं, बल्कि मानकों के पालन से हो।
    • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक 2009

    प्रदूषक और उसका औसत सांद्रता मानक (माइकोग्राम प्रति घन मीटर)

    1. सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂)

    • वार्षिक औसत: 50

    • 24-घंटे का औसत: 80

    2. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂)

    • वार्षिक औसत: 40

    • 24-घंटे का औसत: 80

    3. पार्टिकुलेट मैटर PM₁₀

    • वार्षिक औसत: 60

    • 24-घंटे का औसत: 100

    4. पार्टिकुलेट मैटर PM₂.₅

    • वार्षिक औसत: 40

    • 24-घंटे का औसत: 60

    5. ओज़ोन (O₃)

    • 8-घंटे का औसत: 100

    • 1-घंटे का औसत: 180

    6. कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)

    • 8-घंटे का औसत: 2.0

    • 1-घंटे का औसत: 4.0

    7. सीसा (Lead – Pb)

    • वार्षिक औसत: 0.5

    • 24-घंटे का औसत: 1.0

    8. अमोनिया (NH₃)

    • वार्षिक औसत: 100

    • 24-घंटे का औसत: 400

    9. बेंजीन (C₆H₆)

    • वार्षिक औसत: 5

    10. बेंजो(ए)पाइरीन [BaP] – PAHs

    • वार्षिक औसत: 1

    यह भी पढ़ें- दिल्ली के स्कूल हैं कि मानते नहीं... हाइब्रिड मोड में पढ़ाई का सरकारी आदेश भी प्रदूषण में हांफ रहा

     

    राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक 2009 का पुनरीक्षण अब अनिवार्य हो चुका है। नए मानक स्वास्थ्य-केंद्रित, वैज्ञानिक और एयरशेड-आधारित होने चाहिए। इनसे प्रदूषण नियंत्रण भी बेहतर होगा, नियमों का पालन बढ़ेगा एवं लंबे समय में जनस्वास्थ्य की सेहत की रक्षा हो पाएगी।


    -

    -डाॅ. एस के त्यागी, पूर्व अपर निदेशक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी)

    राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक 2009 में संशोधन जरूरी है। पीएम एक एवं माइॅक्रोप्लास्टिक को भी इनमें लेना चाहिए। अगली बोर्ड बैठक में इस मुद्दे को रखा जाएगा।


    -

    -डाॅ. अनिल गुप्ता, सदस्य, सीपीसीबी