'प्रदूषण हटाओ, उम्र बढ़ाओ', दिल्ली की जहरीली हवा चुरा रही 12 साल जिंदगी; पढ़ें रिपोर्ट
शिकागो विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण कम होने पर भारतीयों की औसत आयु 5.5 वर्ष और दिल्ली वालों की 12 वर्ष तक बढ़ सकती है। पीएम 2.5 जैसे कण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, जो फेफड़ों और हृदय को प्रभावित करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण से बच्चों में फेफड़ों का विकास रुक रहा है और सांस की बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं। स्वच्छ हवा से बेहतर स्वास्थ्य और लंबी उम्र मिल सकती है।
-1762213143659.webp)
वायु प्रदूषण कम होने पर भारतीयों की औसत आयु 5.5 वर्ष और दिल्ली वालों की 12 वर्ष तक बढ़ सकती है।
अनूप कुमार सिंह, नई दिल्ली। अगर वायु गुणवत्ता में सुधार होता है, तो आम भारतीयों की औसत जीवन प्रत्याशा साढ़े पांच साल और दिल्लीवासियों की लगभग 12 साल बढ़ सकती है। यह शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (ईपीआईसी) की 2023 की एक अध्ययन रिपोर्ट का निष्कर्ष है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत में वायु प्रदूषण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (पीएम 2.5) तक कम कर दिया जाए, तो प्रत्येक नागरिक की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 5.3 वर्ष बढ़ जाएगी, जबकि अत्यधिक प्रदूषित राष्ट्रीय राजधानी में रहने वालों को 11.9 वर्ष का लाभ हो सकता है। प्रदूषण यहां बच्चों, वयस्कों और बुजुर्गों सहित लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा को कम कर रहा है।
बताया गया है कि उत्तर भारत में 48 करोड़ से अधिक लोग पीएम 2.5 के उच्चतम स्तर वाले क्षेत्रों में रहते हैं। 67 प्रतिशत से अधिक भारतीय ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां प्रदूषण का स्तर वैश्विक सीमा से तीन गुना अधिक है। ईपीआईसी की रिपोर्ट के अनुसार, पीएम 2.5 जैसे महीन कण प्रदूषण के सबसे खतरनाक तत्व हैं, जो हवा के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं और फेफड़ों, हृदय, मस्तिष्क और परिसंचरण तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
इन कणों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से लोगों की औसत आयु कई वर्षों तक कम हो रही है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है, जहाँ प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ की सीमा से 15 से 20 गुना अधिक है। पहले, देश में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के अधिकांश मामले धूम्रपान से जुड़े थे, लेकिन अब ये घर के अंदर और बाहर के प्रदूषण के कारण होते हैं।
ईपीआईसी की रिपोर्ट का समर्थन करते हुए, पीएसआरआई संस्थान के अध्यक्ष और एम्स, नई दिल्ली में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ. गोपीचंद खिलनानी ने कहा कि यह अध्ययन इस बारे में एक गंभीर चेतावनी है कि बढ़ता वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य को कैसे और किस हद तक नुकसान पहुंचा रहा है ये हृदय, मस्तिष्क, गुर्दे, आँतों और प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं।
पहले, सीओपीडी (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के ज़्यादातर मामलों को धूम्रपान से जुड़ा माना जाता था, लेकिन अब आधे से ज़्यादा मामले घर के अंदर और बाहर के प्रदूषण से जुड़े हैं। कैलाश अस्पताल, नोएडा की वरिष्ठ फुफ्फुसीय रोग विशेषज्ञ डॉ. ए.एस. संध्या कहती हैं कि बच्चों में फेफड़ों का विकास रुक रहा है और अस्थमा व फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। यह उन लोगों के लिए एक नाज़ुक समय है जिन्हें श्वसन या हृदय संबंधी समस्या है या जो ऑक्सीजन पर हैं।
फोर्टिस अस्पताल, नोएडा में पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर के अतिरिक्त निदेशक और इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. राहुल शर्मा कहते हैं कि हवा में मौजूद बेहद सूक्ष्म धूल के कण, पीएम 2.5, साँस के ज़रिए शरीर में प्रवेश करते हैं और हृदय, मस्तिष्क, गुर्दे, आँतों और प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुँचाते हैं।
शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण से भारतीयों की औसत आयु कम होने की आशंका है। ज़ाहिर है, अगर प्रदूषण कम हो और हवा साफ़ हो, तो आयु बढ़ेगी। यह अध्ययन बढ़ते प्रदूषण से हमारे स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान की एक गंभीर चेतावनी है। इसके विपरीत, स्वच्छ हवा बेहतर स्वास्थ्य और दीर्घायु प्रदान करेगी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।