अंतरराष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन में आचार्य प्रसन्न सागर का संदेश, योग और उपवास भारतीय संस्कृति की अमूल्य देन
अंतरराष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन में आचार्य प्रसन्न सागर ने योग और उपवास को भारतीय संस्कृति की अमूल्य देन बताया। उन्होंने कहा कि ये प्राचीन पद्धतियाँ शारी ...और पढ़ें

भारत मंडपम में अंतरराष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन को संबोधित करते अंतर्मना आचार्य प्रसन्नसागर जी महाराज। जागरण
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। अंतर्मना आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज ने कहा कि योग और उपवास, दोनों भारतीय संस्कृति की अमूल्य देन हैं। योग शरीर और उपवास आत्मा की शुद्धि का माध्यम है। योग, ध्यान और उपवास भारतीय संस्कृति के ऐसे आधार हैं जो जीवन में निरोगता, संयम और आत्मशक्ति का संचार करते हैं।
वह भारत मंडपम में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय जनमंगल सम्मेलन के अंतिम दिन “हर मास-एक उपवास” अभियान के शंखनाद अवसर को संबोधित कर रहे थे। उनके प्रेरक आह्वान पर पूरे देशभर से बड़ी संख्या में लोगों ने एक साथ उपवास का संकल्प लिया और मिस काल अभियान के माध्यम से इस जनजागरण से जुड़कर नई वैश्विक चेतना का आह्वान किया।
शनिवार को एक साथ उपवास के लिए चार लाख 38 हजार से अधिक लोगों ने मिस्ड काल किया था।
“विश्व उपवास दिवस” मनाने का आग्रह
इस मौके पर दिल्ली के मंत्री कपिल मिश्रा ने भी हर मास एक उपवास का संकल्प लेते हुए कहा कि तपस्वी साधक ही हमारे जीवन के सच्चे मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने तप, योग और उपवास की साधना को जनकल्याण का माध्यम बनाया है। उनका आशीर्वाद राष्ट्र को नई दिशा और शक्ति प्रदान करता है।
सम्मेलन में मौजूद भक्तों के सामूहिक उपवास के बीच आचार्य प्रसन्न सागर ने 13 दिसंबर को “विश्व उपवास दिवस” के रूप में मनाने का आग्रह करते हुए केंद्र सरकार से प्रस्ताव को स्वीकार करने का आग्रह किया।

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