घाव ठीक करने में बेटाडीन से चार गुना असरदार शहद
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :
घावों को ठीक करने के लिए मशहूर दवा बेटाडीन पर भारतीय चिकित्सा शास्त्र में अचूक माना जाने वाला शहद चार गुना भारी पड़ रहा है। देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टरों ने प्रयोग के आधार पर यह बात साबित कर दी है। 42 मरीजों पर छह सप्ताह तक किया गया इसका प्रयोग सफल रहा। जल्द ही इसके प्रयोग की अनुमति पूरे अस्पताल में मिलने की उम्मीद है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेना ने जवानों के घाव भरने में शहद का प्रयोग किया था। इसी को आधार बनाते हुए एम्स में प्रो. अनुराग श्रीवास्तव की अगुआई में किए गए इस अध्ययन को 'इंडियन जनरल ऑफ सर्जरी' ने भी प्रकाशित किया है। डॉक्टर अनुराग का कहना है अब तक हजारों मरीजों पर इसका प्रयोग किया जा चुका है। लेकिन सुचारू रूप से 42 मरीजों पर किया गया यह अध्ययन काफी सफल रहा।
एम्स की सर्जरी ओपीडी में आए 45 में से 23 मरीजों को शहद से इलाज के लिए चुना गया और 22 को बेटाडीन मरहम से इलाज के लिए। बाद में शहद से इलाज करा रहा एक मरीज और बेटाडीन से इलाज करा रहे दो मरीज इस अध्ययन से हट गए। इसके बाद 42 मरीजों पर छह सप्ताह तक अध्ययन किया गया। अध्ययन के दौरान हर दूसरे दिन सभी मरीजों की पट्टी बदली गई। दो सप्ताह में पता चला कि शहद से इलाज करा रहे लोगों के घाव तेजी से भर रहे हैं। छह सप्ताह के बाद पता चला कि घाव भरने में बेटाडीन की तुलना में शहद चार गुना ज्यादा असरदार साबित हुआ है। यही नहीं मरीजों को पट्टी बदलने के दौरान दर्द भी कम हुआ।
उन्होंने बताया कि यह शहद नीम के पेड़ पर लगे मधुमक्खियों के छत्ते से लिया गया था। शहद में हाइड्रोजन पराक्साइड पाया जाता है, जो जीवाणु को धीरे-धीरे मारता है और शहद खुद एंटीबायोटिक्स का बहुत बड़ा स्रोत है। इसमें विटामिन सी, एमीनो एसिड व फ्रक्टोज शुगर के तत्व भी होते हैं। इससे संक्रमण का भी खतरा नहीं होता। अध्ययन में शामिल मरीजों में गामा किरणों की मदद से कीटाणु मुक्त किए गए शहद का प्रयोग किया गया था।
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- शल्य क्रिया के जनक सुश्रत चिकित्सा शास्त्र के महान ज्ञाता थे। वे घाव को जल्दी भरने के लिए शहद और गाय के घी का प्रयोग करते थे। हम लोग तो भारत की डूबती आयुर्वेदिक परंपरा को फिर से लोगों तक पहुंचाने के लिए एक छोटा सा प्रयास कर रहे हैं। शहद घाव को भरता है, हम भारतवासी प्राचीन काल से इसका ज्ञान रखते हैं।
- डॉक्टर अनुराग श्रीवास्तव
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