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    दिल्ली में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए एकजुटता जरूरी, जनता का सहयोग भी मिलेः डॉ जुगल किशोर

    By Mangal YadavEdited By:
    Updated: Wed, 01 Jul 2020 09:54 AM (IST)

    कोरोना की वैश्विक महामारी में आपात जैसी स्थिति भी है। ऐसी सूरत में सरकार सिविक एजेंसियों के अलावा जनता का सहयोग भी जरूरी हो जाता है।

    दिल्ली में कोरोना संक्रमण रोकने के लिए एकजुटता जरूरी, जनता का सहयोग भी मिलेः डॉ जुगल किशोर

    नई दिल्ली। दिल्ली में कोरोना का पहला मामला 2 मार्च को सामने आया था। उसके बाद निजामुद्दीन स्थित मरकज में तब्लीगी जमात का मामला सामने आने के बाद 13 अप्रैल को महज 24 घंटे में 356 नए मामलों की पुष्टि हुई थी। उस वक्त यह सबसे पहला दिल्ली का सबसे बड़ा उछाल था। उसके बाद से दिल्ली में मामले बढ़ते चले गए। और देखिए अब यह आंकड़ा 85 हजार के पार पहुंच गया।

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    दिल्ली में कोरोना के मामले किस तेजी से बढ़ रहे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जून के पहले सप्ताह तक जहां दिल्ली कोरोना के मामले में देश में तीसरे स्थान पर थी, आज यह मुंबई से भी आगे निकल चुकी है। आशंका जताई जा रही है कि अभी कुछ दिनों तक बड़ी संख्या में नए मामले आते रहेंगे। कोरोना संक्रमण को लेकर दिल्ली में बिगड़ रहे हालात के पीछे मुख्य वजह यहां कई एजेंसियों का होना है।

    अलग-अलग नेतृत्व वाली इन एजेंसियों में कहीं कोई तालमेल ही नहीं है। किसी भी निर्णय तक पहुंचने के लिए विभागों के बीच किस तरह मतभेद है इसे पिछले दिनों के घटनाक्रम से समझ सकते हैं। महामारी के प्रकोप को कम करने के लिए कोई ठोस नीति बनाने के बजाय तमाम विभाग आपस में ही लड़ते नजर आए। कुछ दिनों पहले ही उप राज्यपाल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के ही लोगों का इलाज, दिल्ली के अस्पतालों में करने की बात को खारिज कर दिया। इसे लेकर कई दिनों तक विवाद चलता रहा। उसके बाद कोरोना के मामूली लक्षण वाले मरीजों को घर पर ही आइसोलेट करने के बजाय अस्पताल में पांच दिन तक रखने को लेकर भी उपराज्यपाल और राज्य सरकार के बीच मतभेद चलता रहा। हालात में सुधार के लिए जरूरी है कि नेतृत्व किसी एक के हाथ हो और उसके निर्देश का पालन सभी एजेंसियां करें। वैसे भी आपात स्थिति में एकजुटता जरूरी है।

    कोरोना की वैश्विक महामारी में आपात जैसी स्थिति भी है। ऐसी सूरत में सरकार, सिविक एजेंसियों के अलावा जनता का सहयोग भी जरूरी हो जाता है। जहां तक दिल्ली में मुंबई की तुलना में कोरोना का संक्रमण अधिक होने की बात है तो दोनों ही जगहों की प्रशासनिक व्यवस्था व आबादी में अंतर है। दिल्ली की आबादी थोड़ी ज्यादा है, लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्था बेहतर है। हाल के दिनों में यहां कोरोना की जांच भी बढ़ी है। अब प्रतिदिन करीब 20 हजार जांच भी हो रही हैं।

    इस वजह से भी नए मामले निकलकर सामने आ रहे हैं। लेकिन दिल्ली ऐसा क्षेत्र है जहां किसी एक का नियंत्रण नहीं है। जब एक ही घर के कई लोग मालिक हो जाते हैं तो परिणाम बिगड़ने लगते हैं। बेहतर प्रबंधन का सिद्धांत यह है कि कमान किसी एक के हाथ में हो। यदि जंग भी जीतनी होती है तो नेतृत्व भी एक ही होना चाहिए। यह भी कोरोना के खिलाफ एक जंग है लेकिन यहां कई प्लेयर्स हैं जो एक दूसरे की नहीं सुन रहे हैं। इस वजह से हालत खराब हो गई। हालांकि काफी हद तक कोशिश हो रही है कि सभी एजेंसियों को संगठित कर एक के नेतृत्व में लाया जाए। इसलिए स्थिति थोड़ी सुधरती भी दिखाई दे रही है। सभी एजेंसियों के बीच तालमेल बेहतर हो तो स्थिति जल्दी सुधर जाएगी।

    मानव संसाधन का हो बेहतर उपयोग

    दिल्ली में अस्पतालों की कमी नहीं है। बहुत सारे सरकारी अस्पताल हैं। निजी क्षेत्र के अस्पताल भी अच्छे हैं। मानव संसाधन भी ठीक संख्या में उपलब्ध हैं, जिसमें डॉक्टर व पैरामेडिकल कर्मचारी शामिल हैं। लेकिन मुंबई की अगर बात करें तो वहां नेतृत्व एक के हाथ में है। एक ही जगह से आदेश निकलते हैं, जिसे सभी को पालन करना होता है। यहां परिस्थितियां अलग हैं। हर दिन इतने आदेश निकल रहे हैं कि कुछ समझ नहीं आता।

    एक आदेश पर जब तक अमल नहीं होता तब तक दूसरा आदेश आ जाता है और पहले वाला रद हो जाता है। ऐसी स्थिति में स्वास्थ्य कर्मचारी भी नहीं समझ पाते कि वे क्या करें। इस वजह से गफलत की स्थिति बन जाती है। अब भी समय है, जरूरी है कि एक के हाथ में नेतृत्व हो और उपलब्ध बुनियादी ढांचे व मानव संसाधन का बेहतर इस्तेमाल हो सके। बीमारी की रोकथाम के लिए र्सिवलांस अहम है।

    इसके लिए अकेले दिल्ली सरकार के पास इतना संसाधन नहीं है। इसलिए शुरुआत से ही केंद्र सरकार, रेलवे, आर्मी, कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआइसी), नगर निगम सहित सभी एजेंसियों को मिलाकर काम करना चाहिए था। राजधानी में दिल्ली सरकार के अलावा केंद्र सरकार, नगर निगम, ईएसआइसी के भी अस्पताल हैं। इसलिए सभी को मिलकर कोरोना के इलाज की इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि सभी एजेंसियों की बात भी सुनी जाए। क्योंकि इस मुश्किल घड़ी से सब मिलकर ही लड़ सकते हैं।

    (प्रिवेंटिव व कम्युनिटी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ जुगल किशोर से संवाददाता रणविजय सिंह से बातचीत पर आधारित)

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