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    इस शहर का हर शख्स परेशान सा क्यों है.. कोरोना के बाद कैसी होगी जिंदगी जानने के लिए पढ़ें दिलचस्‍प स्‍टोरी

    By Prateek KumarEdited By:
    Updated: Sat, 30 May 2020 03:01 PM (IST)

    दिल्ली की कॉलोनियों की जिंदगी अब पूरी तरह बदल चुकी है। आइसोलेशन क्वारंटाइन इम्यूनिटी सरीखे शब्दों से अभी भी दिल्ली जूझ रही है।

    इस शहर का हर शख्स परेशान सा क्यों है.. कोरोना के बाद कैसी होगी जिंदगी जानने के लिए पढ़ें दिलचस्‍प स्‍टोरी

    नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। चेहरे पर मास्क लगा है। हाथों में लोग दस्ताने पहने हैं। बावजूद इसके निगाहें मानो हर किसी को शंका भरी नजरों से देखती हैं। हां, कभी चौक चौराहे पर चलते-चलते दो चार यार मिल जाएं तो चंद क्षणों के लिए हंसी मजाक भले ही हो जाए। नहीं तो दिल्ली की कॉलोनियों की जिंदगी अब पूरी तरह बदल चुकी है। आइसोलेशन, क्वारंटाइन, इम्यूनिटी सरीखे शब्दों से अभी भी दिल्ली जूझ रही है। दिल्ली की कॉलोनियों में कोरोना संक्रमण के बाद की जिंदगी को कैनवास पर उकेरा है अंकुर आहूजा ने। इनकी कलाकृतियों की ऑनलाइन प्रदर्शनी इंडिया इंटरनेशनल सेंटर ने आयोजित की है।

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    दिल्ली निवासी कलाकार अंकुर कहते हैं कि कोविड-19 की वजह से दिल्ली की दिनचर्या पूरी तरह बदल चुकी है। लोगों को वॉच करना मानो मेरी भी दिनचर्या में शुमार हो चुका है। कभी खिड़कियों से देखता हूं तो कभी सीसीटीवी की नजरों से मानवीय भावनाओं को समझने की कोशिश करता हूं। मेरे मकान वाली गली में लोगों को गुजरते देखता हूं। पहले जैसी चाल भी अब नहीं दिखती। लोग सशंकित दिखते हैं। मैंने बुजुर्ग जोड़े को देखा जो ग्रॉसरी का सामान खरीदने के लिए निकला था।

    महिलाओं को जाते देखा, उनकी बातें सुनाई दी। इन सभी की गतिविधियों, बातचीत ने मुझे कलाकृति बनाने को प्रेरित किया। इन कलाकृतियों में एक तस्वीर मास्क लगाए व्यक्ति की है। जिसका शीर्षक कुछ ऐसा है कि मेरी मूंछे तो मेरी खासियत है। जबकि, आइसोलेशन इज नाट फॉर मी में एक अधेड़ शख्स कमर पर हाथ रखे चौक पर बातें करते दिखते हैं। वहीं, एक अन्य कलाकृति मेरी इम्यूनिटी शीर्षक से है। सभी कलाकृतियों का शीर्षक कुछ ऐसा है जो रोजमर्रा की जिंदगी को अभिव्यक्त करता है।

    इतना पर्याप्त है..

    एक अन्य कलाकृति जो खासा ध्यान आकर्षित करती है। इसमें महिला दुपट्टे से पूरा सिर ढंके है, चेहरे के नाम पर उसकी सिर्फ दो आंखे ही दिख रही हैं। बावजूद इसके वो पूछती है कि इतना पर्याप्त है या फिर और ढंकना पड़ेगा। एक कलाकृति समाज के ताने बाने पर तंज कसती है। कलाकृति में एक महिला और बच्ची दिखती है। महिला मानो कह रही है कि क्या मुझे भी मास्क लगाने की जरूरत है। मेरा चेहरा तो छह सालों से ढंका ही हुआ है। ग्रॉसरी का सामान खरीदने जाते एक बुजुर्ग दंपति की बातचीत दिल को छू लेती है। वो कहते हैं कि कल तक यहां भीड़ होती थी आज हर तरफ सन्नाटा है। यह ऑनलाइन प्रदर्शनी 31 मई तक देखी जा सकती है।