लोकसभा चुनाव से तय होगी राजधानी की सियासत
लोकसभा चुनाव दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आम आदमी पार्टी (आप) व कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह इनकी भविष्य की राह तय करने वाला है। इस चुनाव परिणाम का सीधा असर दस माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। इस चुनाव में जो पार्टी जीतेगी उसके लिए दिल्ली की सत्ता हासिल करने का मार्ग सुगम होगा। वहीं हारने वाली पार्टी की सियासी मुश्किल बढ़ेगी।

नोट:- मनोज तिवारी, अरविद केजरीवाल व शीला दीक्षित की फोटो भी लगाएं
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चुनावी समीकरण
-विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा असर, भाजपा पर सभी सीटें जीतने का दबाव
-कांग्रेस के लिए खोई जमीन वापस पाने का मौका
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आम आदमी पार्टी (आप) व कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस चुनाव परिणाम का सीधा असर दस माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। इस चुनाव में जो पार्टी जीतेगी उसके लिए दिल्ली की सत्ता हासिल करने का मार्ग सुगम होगा। वहीं, हारने वाली पार्टी की सियासी मुश्किल बढ़ेगी।
आम आदमी पार्टी के उदय के बाद दिल्ली का सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गया है। सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। जिस वोट बैंक के सहारे कांग्रेस ने दिल्ली पर 15 वर्षो तक राज किया वो उससे दूर हटकर आप के साथ खड़े हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, कांग्रेस को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। भाजपा भी मात्र तीन सीटों पर सिमट गई थी। विधानसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस अपनी खोई हुई जमीन को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है। इस कोशिश में उसने पहले अरविदर सिंह लवली को हटाकर अजय माकन के हाथ में दिल्ली की कमान दी। उनके कार्यकाल में हुए विधानसभा उपचुनावों व नगर निगम चुनावों में भी कांग्रेस के मत फीसद में तो सुधार हुआ, लेकिन पार्टी को पुराना गौरव नहीं दिला सके। अब लोकसभा चुनाव के पहले माकन की जगह पार्टी ने एक बार फिर से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भरोसा जताया है। नेतृत्व परिवर्तन से कार्यकर्ताओं में उत्साह भी है। यदि उनके नेतृत्व में पार्टी लोकसभा की कुछ सीटें जीतने में सफल रहती है तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद बढ़ जाएगी।
वहीं, विधानसभा चुनाव में आप के हाथों मात खाने वाली भाजपा नगर निगम चुनावों में शानदार जीत हासिल कर लोकसभा की सातों सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखने की कोशिश में है। यदि इसमें वह सफल रहती है तो दिल्ली की सत्ता तक का उसका सफर कुछ आसान हो सकता है, क्योंकि इससे कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा। इसे ध्यान में रखकर भाजपा नेता पसीना बहा रहे हैं। उन्हें मालूम है कि एक भी सीट का नुकसान उनके लिए भारी पड़ेगा।
दूसरी ओर विधानसभा में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली आप के लिए यह चुनाव अपने आप को एक बार फिर से साबित करने का मौका है। लोकसभा में जीत से आप की सियासी हैसियत बढ़ेगी और दूसरे राज्यों में इसके विस्तार की संभावनाएं बढ़ेगी। यदि इसका प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तो न सिर्फ इसके सियासी विस्तार को झटका लगेगा बल्कि समर्थकों के दूर जाने का भी खतरा बढ़ जाएगा। इस स्थिति में विधानसभा चुनाव में 2015 जैसी जीत दोहराना मुश्किल हो जाएगा।
भाजपा की राह रोकने के लिए आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के बीच गठबंधन की भी कवायद चल रही है। यदि दोनों ही पार्टियों के बीच चुनावी गठजोड़ होता है तो इसका भी असर अगले विधानसभा चुनाव में पड़ेगा। यदि भाजपा इस संभावित गठजोड़ को मात देते हुए लोकसभा चुनाव में बढ़त बनाती है तो विधानसभा चुनाव में उसके पक्ष में माहौल बन सकता है। दूसरी ओर आप व कांग्रेस के लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ने के बाद विधानसभा में एक दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरकर मतदाताओं का सामना करना आसान नहीं होगा। वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव:-
पार्टी- वोट फीसद- सीट
भाजपा-46.39 -सात
आप-33.1-शून्य
कांग्रेस-15.2 -शून्य वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव:-
पार्टी- वोट फीसद-सीट
आप-54.59 -67
भाजपा-32.78 -तीन
कांग्रेस-9.70-शून्य वर्ष 2017 नगर निगम चुनाव
पार्टी-वोट फीसद-सीट
भाजपा-36.08 -183
आप-26.33 -48
कांग्रेस-21.09 -30
अन्य-16.5 -11

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