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    जब बड़े आंदोलनों का गवाह बनी दिल्ली

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 30 Nov 2018 07:53 PM (IST)

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    जब बड़े आंदोलनों का गवाह बनी दिल्ली

    जब राजपथ पर किसानों ने डारा था डेला

    1988 में राजपथ के पास स्थित बोट क्लब पर भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने धरना दिया था। इस धरना-प्रदर्शन में देशभर से किसान आए थे। वे बोट क्लब और विजय चौक के आसपास की जगहों पर कई दिन तक रुके थे। वे अपने पशुओं को भी साथ लाए थे। उन्होंने राजपथ पर ही डेरा डाल दिया था और खाना भी वहीं बनाते थे। काफी मशक्कत के बाद उन्हें हटाया जा सका था।

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    विहिप का आंदोलन भी था जोरदार

    4 अप्रैल 1991 को राम जन्मभूमि आदोलन के दौरान विश्व ¨हदू परिषद (विहिप) ने बोट क्लब पर बड़ा आदोलन किया था। इस दौरान देश के दूरदराज के इलाकों से बड़ी संख्या में लोग जुटे थे। तत्कालीन सरकार के सामने कानून-व्यवस्था को लेकर बड़ी चुनौती थी। इसके मद्देनजर प्रदर्शन स्थल को लालकिला के सामने स्थानातरित किया गया था। इसके बाद लालकिला के पीछे प्रदर्शन की अनुमति दी गई।

    जब गोरक्षकों पर चली थी गोली

    जंतर-मंतर वर्ष 1993 से धरना-प्रदर्शनों का गवाह रहा है, लेकिन यहा वर्षो पहले एक ऐसी घटना हुई थी, जिसने पूरे देश को हिला दिया था। वर्ष 1966 में गोरक्षा आदोलन के दौरान संसद कूच के समय जंतर-मंतर से गुजरते हुए आदोलनकारियों पर गोली चलाई गई थी। इस घटना में आधिकारिक तौर पर नौ गोरक्षकों की मौत हुई थी।

    जब यूपी गेट पर फूटा गुस्सा

    इस साल हरिद्वार से दिल्ली के लिए किसान क्रांति यात्रा निकाली गई थी। सड़कों पर किसानों का सैलाब उमड़ पड़ा था। एनएच-9, जीटी रोड आदि पर जाम लगा। बैरिकेड लगाकर एनएच-9 को बंद कर दिया गया था। यूपी गेट पर किसान आक्रोशित हो गए थे। उन्हें रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों को काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। वाटर कैनन का भी प्रयोग करना पड़ा था। किसान भी ट्रैक्टर से आए थे। टै्रक्टर से बैरिकेड तोड़ने से भी वे पीछे नहीं हटे।

    इस आंदोलन को मिला हर वर्ग का साथ

    देश में जब हर तरफ से भ्रष्टाचार की खबरें उफान मार रही थीं, तभी रामलीला मैदान से ऐसा आंदोलन उठा जिसने सरकार का नहीं पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। वर्ष 2011 में हुआ यह आंदोलन अन्ना हजारे का था। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के इस आंदोलन को 'जन लोकपाल' नाम दिया गया था। उनका जोर संसद से जन लोकपाल विधेयक पारित कराने पर केंद्रित था, जिससे कि भ्रष्टाचार की जड़ें नष्ट हों। वे 16 अगस्त से आमरण अनशन पर बैठे थे। यह अनशन करीब दस दिन तक चला था। अन्ना के इस आंदोलन को हर वर्ग का साथ मिला।