परिवार का घरेलू कलह से इन्कार, जांच की मांग
पुलिस मुख्यालय में एसीपी प्रेम बल्लभ शर्मा द्वारा खुदकशी किए जाने की घटना ने सभी को हैरान कर दिया है। परिजन इसे खुदकशी मानने को तैयार नहीं हैं। उनका क ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : पुलिस मुख्यालय में एसीपी प्रेम बल्लभ शर्मा के खुदकशी करने की घटना ने सभी को हैरान कर दिया है। परिजन इसे खुदकशी मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि घर में किसी तरह की कोई कलह नहीं थी। वे बृहस्पतिवार सुबह दफ्तर निकले तो भी उनके चेहरे पर कोई ऐसे भाव नहीं थे, जिससे उनके तनाव में होने का पता चले। उन्होंने पूरे मामले की जांच की मांग की है। प्रेम बल्लभ की मौत के बाद मौजपुर स्थित उनके आवास पर परिजनों के साथ रिश्तेदार और आस पड़ोस के लोग जमा हो गए। हर कोई गमगीन था। लोगों के बीच खुदकशी के साथ उनकी सादगी को लेकर भी चर्चा चल रही थी।
प्रेम बल्लभ अपने दो भाइयों, मां, पत्नी और तीन बेटों के साथ गली नंबर-दो, विजय पार्क, मौजपुर में दो मंजिला मकान में रहते थे। उनका बड़ा बेटा राहुल नोएडा में एक निजी कंपनी में नौकरी करता है, जबकि दो बेटे कपिल और रोहित अभी पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी मौत की खबर पाकर तीनों बेटे अपने दोनों चाचा के साथ एलएनजेपी अस्पताल निकल गए। घर में मौजूद परिजनों ने बताया कि पिछले महीने बीमारी के कारण प्रेम करीब 28 दिन छुट्टी पर रहे थे। उनके हाथ-पैरों में कंपन होता था। कुछ दिन वह जीटीबी अस्पताल में भर्ती रहे। उनका कहना है कि हमेशा खुश मिजाज रहने वाले प्रेम बल्लभ कभी खुदकशी नहीं कर सकते।
पिता के साथ आए थे दिल्ली
प्रेम बल्लभ का परिवार करीब 50 साल से दिल्ली में है। मूल रूप से अल्मोड़ा, उत्तराखंड निवासी उनके पिता भोलादत्त सबसे पहले दिल्ली आए थे। वे एक सरकारी विभाग में चालक के तौर पर तैनात थे। बाद में प्रेम बल्लभ की दिल्ली पुलिस में नौकरी लग गई, वहीं उनके एक भाई कमलापति प्रदूषण नियंत्रण विभाग में हैं और सबसे छोटे भाई हरीश का कैट¨रग का काम करते हैं। पिता की मौत के बाद प्रेम ने पूरे परिवार को संयुक्त रखा हुआ था। इसके चलते इलाके के लोग उन्हें सम्मान देते थे।
वर्दी में नहीं आते थे घर
पड़ोसियों ने बताया कि एसीपी बनने के बाद प्रेम बल्लभ को वाहन मिल गया था, लेकिन वे कभी सरकारी वाहन से घर तक नहीं जाते थे। घर से करीब 800 मीटर दूर मुख्य मार्ग पर ही सरकारी वाहन और चालक को छोड़ कर वे पैदल या रिक्शे से घर आते थे। उनकी सादगी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वे कभी वर्दी में न तो घर आते थे और न ही घर से दफ्तर जाते थे। वे वर्दी को कार्यालय में ही रखते थे, सिर्फ धुलने के लिए वे कभी-कभार घर लेकर आते थे। उन्होंने न तो अपने घर पर दिल्ली पुलिस का कोई बोर्ड या चिन्ह लगाया और न ही अपने बच्चों को अपने वाहनों पर पुलिस का लोगो लगाने दिया। उनकी मौत के बाद कुछ लोगों को पता चला कि यहां दिल्ली पुलिस का कोई अधिकारी रहता था।

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