दिविज ने जीत लिया सबका दिल
लोकेश चौहान, दक्षिणी दिल्ली शीर्ष वरीयता प्राप्त भारत के रोहन बोपन्ना और दिविज शरण की
लोकेश चौहान, दक्षिणी दिल्ली
शीर्ष वरीयता प्राप्त भारत के रोहन बोपन्ना और दिविज शरण की जोड़ी ने पुरुष डबल्स का स्वर्ण पदक जीतकर एशियाई खेलों में आठ वर्ष बाद देश को टेनिस में स्वर्ण पदक दिलाया है। दिविज के परिवार की खुशी बुधवार को उस समय दोगुनी हो गई, जब उन्हें पता चला कि डेविस कप के लिए भी उनके लाडले का चयन हो गया है।
दिल्ली के ग्रीन पार्क एक्सटेंशन में रहने वाले दिविज के परिजन ने बताया कि एशियाड में स्वर्ण जीतने के बाद घर आने के बजाय दिविज यूएस ओपन में भाग लेने चले गए हैं। दिविज की मां अंजू शरण ने कहा, वह क्षण सबसे भावुक था जब बेटे के गले में सोने का तमगा था, राष्ट्रध्वज लहरा रहा था और राष्ट्रगान की धुन सुनाई दे रही थी। इसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस बात का गर्व है कि जिस खेल को उसने बचपन में चुना था, उस खेल में उसने न सिर्फ पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाई, बल्कि आठ वर्ष बाद एशियाई खेलों में टेनिस में देश को स्वर्ण पदक भी दिलाया। उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहतीं कि बेटे का ध्यान खेल से हटे, इसलिए उसे बार-बार फोन करके परेशानी नहीं करती, लेकिन उसका हाल-चाल जानने और हौसला बढ़ाने के लिए दिन में एक बार उससे फोन पर जरूर बात करती हूं। दिविज के चाचा नकुल शरण ने कहा कि बचपन से ही दिविज को गेंद से खेलने का शौक था। उसकी शुरुआती शिक्षा वसंत विहार के मॉडर्न स्कूल से हुई। यहां उसने फुटबॉल और टेनिस दोनों में बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि जब दिविज को पढ़ाई और खेल में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया तो उसने टेनिस को चुना। दिविज के दादा बीबी शरण ने कहा, पोते की जीत पर सबसे अधिक गर्व उस समय हुआ, जब उनके पास पूर्व आर्मी चीफ का फोन आया। आर्मी से सेवानिवृत्त बीबी शरण पूर्व आर्मी चीफ के कमांडर रह चुके हैं। उन्होंने कहा, कोई भी खिलाड़ी जब देश के लिए कुछ करता है तो अच्छा लगता है। अनुशासन पसंद बीबी शरण ने कहा, दिविज दाढ़ी नहीं रखता है, लेकिन एशियाई खेलों के दौरान उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी। मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने ऐसा क्यों किया। फिर मुस्कराते हुए कुछ नेताओं का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, शायद अब दाढ़ी भी सफलता के लिए जरूरी हो गई है।
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