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    भाई को शहीद होता देख रणभूमि में दिखाया 'शौर्य', टैंक छोड़कर भाग गए थे पाकिस्तानी

    By Amit MishraEdited By:
    Updated: Tue, 31 Jul 2018 06:46 PM (IST)

    अल्हड़ रेलवे स्टेशन के पास पाकिस्तानी सेना के 72 टैंक खड़े थे। जब भारतीय सैनिकों ने हमला बोला तो पाकिस्तानी अपने टैंकों को छोड़कर भाग गए।

    भाई को शहीद होता देख रणभूमि में दिखाया 'शौर्य', टैंक छोड़कर भाग गए थे पाकिस्तानी

    बल्लभगढ़ [सुभाष डागर]। 1965 में भारत-पाक युद्ध में देश के कई वीरों ने सीने पर गोलियां खाईं। इसके योद्धा जब रणभूमि की गाथा सुनाते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गांव सागरपुर के रहने वाले श्रीचंद शर्मा ने अपने भाई के साथ सीमा पर लड़ाई लड़ी। उन्होंने भाई की कुर्बानी देखी। इसके बावजूद उनका हौसला कम नहीं हुआ और दुश्मनों को अपना रणकौशल दिखाया। श्रीचंद बताते हैं कि वह और उनके बड़े भाई चंदीराम 14 राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। उनकी एक ही कंपनी और एक प्लाटून थी।

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    टैंकों को छोड़कर भागे पाकिस्तानी 

    1965 का युद्ध 8 सितंबर को शुरू हुआ था। उनकी कंपनी को पाकिस्तान में अल्हड़ रेलवे स्टेशन के पास छोड़ दिया गया, जहां पाकिस्तानी सेना के 72 टैंक खड़े थे। जब उनकी प्लाटून ने हमला बोला, तो पाकिस्तानी अपने टैंकों को छोड़कर भाग गए। यहां उन्हें फिर आगे बढ़ने का आदेश मिला। लड़ाई लड़ते हुए सियालकोट के वजीरेवाला गांव में पहुंचे और एक कपास के खेत में छिपे।

    पाकिस्तान की जमीन पर भाई को किया दफन 

    श्रीचंद बताते हैं कि यहां 20 सितंबर तक लड़ाई लड़ते रहे। उनके साथ सैनिक शंभूशरण थे, 21 सितंबर की रात एक बजे उन्हें गोली लग गई। घायल शंभूशरण को देखने के लिए बड़े भाई हवलदार चंदीराम उनके पास पहुंचे तो पाकिस्तान के टैंकों से गोले बरसने लगे। वह और शंभूशरण वहीं पर रात 1.15 बजे शहीद हो गए। उन्हें वहीं पर दफना दिया गया, जिससे कि पाकिस्तानी सेना शव की दुर्गति न कर सके।

    सीने में लगी गोली 

    श्रीचंद के अनुसार उसी रात 2 बजे उनके सीने पर भी गोली लगी। 22 सितंबर की सुबह दोनों देशों की सरकारों ने युद्ध विराम की घोषणा की। उन्हें घायल अवस्था में पठानकोट ले जाया गया। पठानकोट अस्पताल में जगह खाली न होने के कारण दिल्ली रेफर किया गया। दिल्ली के भी किसी अस्पताल में जगह खाली नहीं थी, फिर उन्हें आगरा के लिए रेफर किया गया।

    एक महीने तक चला इलाज 

    ट्रेन आगरा पहुंची तो वहां बड़ी संख्या में घायल सैनिकों को अस्पतालों में ले जाने के लिए एंबुलेंस मौजूद थीं। आगरा के अस्पताल में एक महीने तक उनका इलाज चला। परिजनों को भाई के शहीद होने का तार मिल चुका था और उनके बारे में लापता की खबर मिली। उपचार के दौरान दीपावली आ गई, उन्हें एक महीने की छुट्टी पर घर भेज दिया गया।

    भाई की अस्थियों को किया विसर्जित

    छुट्टी के एक महीने बाद फिर गांव वजीरेवाला पाकिस्तान में भेज दिया गया, क्योंकि यह जमीन भारतीय सेना ने जीत कर अपने कब्जे में ले ली थी। चंदीराम और कुछ अन्य सैनिकों को यहीं पर दफनाया गया था इस बारे में अधिकारियों से बातचीत करके भाई के शव को बाहर निकाला और उनका अंतिम संस्कार वहीं पर किया। अस्थियां हरिद्वार में गंगा में विसर्जित कीं। 

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