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    अंतिम सांस तक लड़ा यह योद्धा, चार आतंकियों को उतारा मौत के घाट

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    Updated: Tue, 31 Jul 2018 01:44 PM (IST)

    देवेंद्र बचपन से ही खिलौना पिस्तौल से खेला करते थे। बड़े हुए तो पिता से सेना में जाने की इच्छा जताई। मां भारती के प्रति श्रद्धा और सेवाभाव देख पिता रामकिशन ने भी बेटे को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया।

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    अंतिम सांस तक लड़ा यह योद्धा, चार आतंकियों को उतारा मौत के घाट

    गुरुग्राम (आरके वर्मा)। आतंकियों के हथगोले से बुरी तरह जख्मी हो चुके थे, रायफल भी क्षतिग्रस्त हो गई थी। इसके बाद भी देशप्रेम का जज्बा कम नहीं हुआ। हमला करने के लिए घर से बाहर निकले एक आतंकी की राइफल छीनकर उसके सीने में गोली दाग कर उसे मौत की नींद सुला दिया। बदला लेने के लिए ठिकाने से बाहर निकले तीन आतंकियों ने मां भारती के लाल पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं।

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    पेट में कई गोलियां लगने पर जांबाज गिर तो पड़ा, लेकिन इसके बाद भी उसने तीनों आतंकियों को (इनमें से बाद में एक पाक सैनिक निकला) को मार गिराया। अदम्य साहस और वीरता की यह कहानी है गुरुग्राम के गांव शेखूपुर माजरी में पैदा हुए देवेंद्र सिंह की।

    देवेंद्र बचपन से ही खिलौना पिस्तौल से खेला करते थे। बड़े हुए तो पिता से सेना में जाने की इच्छा जताई। मां भारती के प्रति श्रद्धा और सेवाभाव देख पिता रामकिशन ने भी बेटे को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया। इच्छा को पंख लगे और देवेंद्र 26 जून 1997 को सेना में भर्ती हो गए। राष्ट्रीय राइफल में उन्हें नियुक्ति मिली।

    ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में हुई। कई ऑपरेशन में उन्होंने वीरता दिखाते हुए आतंकियों को मार गिराया। उनके साहस को देखकर अफसर हर बड़े ऑपरेशन में देवेंद्र को नेतृत्व करने का मौका देते थे। 26 जून 2003 को शाम सात बजे सेना को सूचना मिली कि कुपवाड़ा में एक घर में चार आतंकी घुसे हुए हैं। वे बड़ा हमला करने की फिराक में हैं। जानकारी मिलने के आधे घंटे के अंदर ही सेना की एक टुकड़ी ने घर को घेर लिया। ललकारने पर आतंकी अंदर से हथगोले फेंकने लगे। वे घर के पिछले हिस्से से फरार होने के लिए दीवार से कूदे तो वहां तैनात देवेंद्र ने एक आतंकी को दबोच लिया। इस पर दूसरे आतंकी ने उनके ऊपर हथगोला फेंक दिया।

    देवेंद्र घायल हो गए और उनकी राइफल भी क्षतिग्रस्त हो गई। इसके बाद भी पकड़े गए आतंकी को उन्होंने नहीं छोड़ा और उसकी राइफल छीनकर उसकी ही गोली से उसे मौत दे दी। इस पर तीनों आतंकियों ने उन पर गोलियां बरसा दी। पेट व सीने में गोलियां लगने से वे गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन अंतिम सांस तक लडे़ इस रणबांकुरे ने तीनों को गोलियों से मार गिराया था।

    चारों को ढेर करने के बाद वे अचेत हो गए। साथी सैनिक उन्हें तुरंत श्रीनगर अस्पताल लेकर पहुंचे, जहा पर इस वीर जवान ने अंतिम सास ली। मरणोपरांत शौर्य चक्र प्रदान किया गया देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीद देवेंद्र सिंह को मरणोपरात शौर्य चक्र से अलंकृत किया गया।

    जून 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने शहीद की पत्नी उषा देवी को यह सम्मान भेंट किया। गांव शेखूमाजरी में शहीद देवेंद्र की प्रतिमा लगाई गई। गाव के कई जवान सेना में हैं। वे अवकाश पर आने के बाद जब ड्यूटी पर जाते हैं तो शहीद की प्रतिमा को सैल्यूट करने के बाद ही गांव छोड़ते हैं।