मेरे साथ न्याय नहीं हुआ : यशपाल शर्मा
प्रियंका दुबे मेहता, नई दिल्ली हजारों ख्वाहिशें ऐसी, लगान, अब तक छप्पन, अपहरण, सिंह इस किंग जैसी फिल्मों में काम कर चुके यशपाल शर्मा कहते हैं कि मेरे साथ न्याय नहीं हुआ है।
प्रियंका दुबे मेहता, नई दिल्ली
हजारों ख्वाहिशें ऐसी, लगान, अब तक छप्पन, अपहरण, सिंह इस किंग, आरक्षण व गंगाजल जैसी फिल्मों में अपनी दमदार अभिनय प्रतिभा की छाप छोड़ने वाले यशपाल शर्मा फिल्मों की व्यस्तता के बावजूद अपने पहले प्यार थियेटर को नहीं भूले हैं। वह इसके साथ भी न्याय कर रहे हैं। रामलीला से लेकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) और फिर बॉलीवुड का सफर संघर्ष से भरा जरूर रहा, लेकिन यशपाल ने कभी हार नहीं मानी। फिल्मों व थियेटर के अलावा अंतरराष्ट्रीय निर्देशकों के साथ काम करने के बावजूद थियेटर व कला फिल्मों के प्रति उनका मोह कभी कम नहीं हुआ। जागरण फिल्म फेस्टिवल में अपनी फिल्म करीम मोहम्मद लेकर आए अभिनेता व निर्देशक यशपाल शर्मा का कहना है कि वह पैसों के लिए अभिनय नहीं करते।
मेनस्ट्रीम सिनेमा के साथ-साथ कला फिल्मों और अंतरराष्ट्रीय निर्देशकों की फिल्मों में एक साथ काम करने में किस तरह से संतुलन बना लेते हैं, इस सवाल पर यशपाल ने कहा कि जिस क्षेत्र में हैं वहा संतुलन बनाना ही पड़ता है। कला फिल्में व थियेटर उनका प्यार है और कमर्शियल फिल्में उनकी रोजी रोटी। ऐसे में वह सभी के साथ न्याय करते हैं। वह कहते हैं कि मैं जब थियेटर करता हूं तो दीन-दुनिया से कट जाता हूं, परिवार, दोस्तों व मोबाइल फोन से दूरी बना लेता हूं और तीन से चार महीने एकातवास में चला जाता हूं।
भले ही यशपाल ने बड़े बैनर की फिल्मों में अपने दमदार किरदारों के जरिये एक पहचान कायम कर ली है, लेकिन कहीं न कहीं उन्हें यह बात सालती है कि फिल्म इंडस्ट्री ने उनकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं किया है। हालाकि इसके लिए वह खुद को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं। बजरंगी भाईजान, दंगल, सरकार व दबंग जैसी फिल्मों का ऑफर वह इसलिए स्वीकार नहीं कर सके क्योंकि कुछ छोटे बजट के कमिटमेंट्स में व्यस्त थे। आज के दौर की फिल्मों की स्थिति पर यशपाल कहते हैं कि चुनिंदा फिल्मकारों को छोड़ दिया जाए तो आजकल की फिल्मों को देखकर संतुष्टि नहीं मिलती। खुशी इस बात की है कि महिला प्रधान फिल्मों को इंडस्ट्री में जगह मिल रही है।
यशपाल कहते हैं कि जागरण फिल्म फेस्टिवल को एक प्रेरक कदम के तौर पर देखता हूं। इससे प्रेरित होकर कई और फेस्टिवल भी शुरू हुए हैं। जागरण अपने दायित्व को निभा रहा है, जिससे सिनेमा और दर्शक एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। अच्छे सिनेमा तक लोग नहीं पहुंचते तो जागरण बेहतरीन सिनेमा उन तक पहुंचा रहा है।
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असली सुकून तो कला फिल्मों और थियेटर में है
यशपाल कहते हैं कि असली सुकून तो कला फिल्मों और थियेटर में ही मिलता है। मैं एक ढर्रे में बंधकर नहीं रह सकता। एक्टिंग के साथ अब निर्देशन में भी कदम रख रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि फिल्मों के साथ न्याय कर सकूं। अभी लंदन में मि. पानवाला फिल्म के अंतिम शेड्यूल के लिए शूटिंग हो रही है।
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