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    पहलवान सुशील के खेल से प्रेरणा लेकर सफल हुए जतिन

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 29 Jun 2018 10:02 PM (IST)

    कुश्ती में सुशील के सफलता को देखकर महज 12 साल की उम्र में ही जतीन ने कुश्ती खेलना शुरु कर दिया। बेटे का कुश्ती के प्रति प्रेम को देखकर पिता सतीश कुमार उसे गांव के आर्य समाज अखाड़ा में ले गए। जहां पहलवान आनंद प्रकाश ने कम उम्र के जतीन के प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अपने अखाड़े में निरंतर कुश्ती के दांवपेंच की अभ्यास करवाने लगे। नियमित रूप से जीतोड़ मेहनत करते हुए जतीन ने ग्रामीण प्रतियोगिता सहित राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल करते हुए देश का नाम रोशन किया।

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    पहलवान सुशील के खेल से प्रेरणा लेकर सफल हुए जतिन

    संजय बर्मन, बाहरी दिल्ली

    वर्ष-2008 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय कुश्ती खिलाड़ी सुशील कुमार के बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए कांस्य पदक हासिल करने के बाद उन्हीं की तरह कुश्ती में अपना नाम रोशन करने की इच्छा लिए दिल्ली के ग्रामीण इलाकों से हजारों युवा इस खेल से जुड़े। उन्हीं युवाओं में से एक बांकनेर गांव के जतिन भी हैं, जिन्होंने कुश्ती में अपने आपको निखारा और सफलता हासिल करते हुए अपने और बांकनेर गांव का नाम भी रोशन किया।

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    कुश्ती में सुशील की सफलता को देखकर महज 12 साल की उम्र में ही जतिन ने कुश्ती खेलना शुरू कर दिया। बेटे के कुश्ती के प्रति प्रेम को देखकर पिता सतीश कुमार उसे गांव के आर्य समाज अखाड़ा में ले गए। यहां पहलवान आनंद प्रकाश ने कम उम्र के जतिन की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें अपने अखाड़े में निरंतर कुश्ती के दांवपेंच का अभ्यास करवाने लगे। नियमित रूप से जीतोड़ मेहनत करते हुए जतिन ने ग्रामीण प्रतियोगिता सहित राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक हासिल करते हुए देश का नाम रोशन किया।

    कुश्ती को लेकर अपने सफर के बारे में जतिन बताते हैं कि साल-2009 में आर्य समाज अखाड़ा में शामिल होने के छह माह बाद ही रूरल गेम्स के लिए छत्रसाल स्टेडियम में ट्रायल के बाद उनका चयन हुआ और उन्होंने प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त करते हुए कांस्य पदक हासिल किया। उसके बाद साल 2014 तक लगातार रूरल गेम्स में खेलते रहे और इस प्रतियोगिता में दो रजत और एक स्वर्ण पदक भी जीता। उसके बाद साल 2014 में कैडेट नेशनल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। साल 2015 में अभ्यास के दौरान घुटने में चोट लगने के बाद भी वे हाथों से प्रैक्टिस करते रहे और 2016 में गुवाहाटी में आयोजित कैडेट नेशनल प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता। इन्हें ¨जदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि साल 2016 में मिली। इस साल चीन के तेपई शहर में आयोजित एशिया चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल कर भारतीयों का नाम ऊंचा किया।

    निर्धारित दिनचर्या के तहत सुबह से शाम तक जतिन आर्य समाज अखाड़ा में अभ्यास करते रहते हैं। अखाड़े में कोच सहित सीनियर खिलाड़ी जतिन को अभ्यास कराने में काफी मेहनत करते हैं। गांव में जतिन की सफलता को देखकर और भी कई युवा इस खेल से जुड़े। उन्हें जतिन सुबह-शाम अभ्यास कराते हैं। जतिन के कुश्ती सफर में उनके माता-पिता हमेशा उन्हें प्रेरित करते हुए और खेल में सुधार के लिए हमेशा उनका हौसला बढ़ाते हैं।