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    यूपीः तत्कालीन एसओ समेत छह पुलिसकर्मियों को पांच-पांच साल कैद, जानें पूरा मामला

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Mon, 02 Apr 2018 09:13 AM (IST)

    सीबीआइ के लोक अभियोजक ने बताया कि इस मामले में अभियोजन की तरफ से कुल 25 गवाह पेश किए गए। ...और पढ़ें

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    यूपीः तत्कालीन एसओ समेत छह पुलिसकर्मियों को पांच-पांच साल कैद, जानें पूरा मामला

    गाजियाबाद (जेएनएन)। दो मुकदमों में फरार आरोपित को अवैध रूप से हिरासत में रखने और टॉर्चर कर आत्महत्या के मजबूर करने के मामले में सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश राजेंद्र प्रसाद की अदालत ने शनिवार को तत्कालीन एसओ समेत छह पुलिसकर्मियों को पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई। सभी आरोपितों पर 21-21 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया गया है।

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    सीबीआइ के लोक अभियोजक कुलदीप पुष्कर ने बताया कि मामला आगरा के मदन मोहन गेट थाने का है। 10 अक्टूबर 1986 को स्थानीय पुलिस ने लूट व जानलेवा हमला और मारपीट के दो मामलों में फरार आरोपित संजय उर्फ छोटू निवासी फुलट्टी चौराहा को सिंधी बाजार चौराहे से हिरासत में लिया।

    आरोप है कि लिखत-पढ़त किए बगैर पुलिस ने उसे अवैध रूप से हिरासत में रखा और टॉर्चर किया। इसके चलते हिरासत में लेने के अगले दिन 11 अक्टूबर को संजय ने थाने में बोतल से खुद पर हमला कर सुसाइड कर लिया। संजय वर्ष 1985 के दो मुकदमों में फरार चल रहा था।

    दो स्तर पर जांच में पुलिसकर्मियों मिली थी क्लीन चिट

    सीबीआइ के लोक अभियोजक कुलदीप पुष्कर के मुताबिक संजय को हिरासत में लेने के तुरंत बाद उसके बहनोई सुभाष ने तत्कालीन एसएसपी आगरा को टेलीग्राम माध्यम से सूचना दे दी थी। ऐसे में 11 अक्टूबर को उसकी मौत होने के बाद पुलिस ने फर्जी तरीके से लिखत-पढ़त कर उसी दिन गिरफ्तारी दिखाई। संजय की मौत के बाद उसके पिता मोहन लाल शर्मा की शिकायत पर स्थानीय थाने में पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगाते हुए मामले की फाइल बंद कर दी। इसके बाद मजिस्ट्रेटी जांच हुई। इसमे भी पुलिसवालों को क्लीन चिट दी गई।

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआइ ने शुरू की जांच

    मजिस्ट्रेटी जांच के बाद मामला सीबीसीआइडी में गया, अभी सीबीसीआइडी जांच चल ही रही थी कि मृतक संजय के पिता मोहन लाल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में टेलीग्राम के जरिए अर्जी दी, सुप्रीम कोर्ट ने उसी अर्जी का संज्ञान लेते हुए 11 अगस्त 1988 को मामले की सीबीआइ जांच के आदेश दिए।

    सीबीआइ ने जांच के दौरान तत्कालीन एसओ मदन मोहन गेट राम किशोर शुक्ला, सिपाही राजेंद्र, सुंदरलाल, हेमराज, गिरीश कुमार, राजाराम, नेपाल सिंह व कमल को अवैध हिरासत में रखने और टॉर्चर कर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आरोपित किया। ट्रायल के दौरान सिपाही नेपाल सिंह व कमल की मौत हो गई। उपरोक्त दोषी गिरीश कुमार को छोड़कर बाकी सभी दोषी वर्तमान में सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

    अभियोजन की तरफ से पेश हुए 25 गवाह

    सीबीआइ के लोक अभियोजक ने बताया कि इस मामले में अभियोजन की तरफ से कुल 25 गवाह पेश किए गए। वहीं बचाव पक्ष की तरफ से नौ गवाह पेश किए गए। शनिवार को सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश राजेंद्र प्रसाद की अदालत ने तत्कालीन एसओ मदन मोहन गेट राम किशोर शुक्ला, सिपाही राजेंद्र, सुंदरलाल, हेमराज, गिरीश कुमार, राजाराम को पांच-पांच साल अधिकतम कारावास की सजा सुनाते हुए प्रत्येक पर 21 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया।