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    बदलता परिवेश: शहरी बच्चों का खोया बचपन लौटा रहे विशेषज्ञ- जानें, क्यों आई ऐसी नौबत

    By JP YadavEdited By:
    Updated: Mon, 02 Apr 2018 09:12 AM (IST)

    चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट विचित्रा दर्गन का कहना है कि बच्चों के व्यवहार में आ रही समस्याएं अब काफी आम हो रही हैं। ...और पढ़ें

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    बदलता परिवेश: शहरी बच्चों का खोया बचपन लौटा रहे विशेषज्ञ- जानें, क्यों आई ऐसी नौबत

    गुरुग्राम (प्रियंका दुबे मेहता)। ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो... मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी।। सुदर्शन फाकिर की यह मशहूर गजल आजकल के महानगरी बच्चों पर सटीक बैठती है। घरों में बच्चों के हंसी ठहाके, उनकी मीठी बातें और उनके उनके मासूम सवाल किसी को भी प्रफुल्लित कर दें। मेहमानों के आने पर बच्चों का उनके आगे पीछे लगे रहना, माहौल को हल्का बनाए रखना व माता पिता का उन्हें इशारों से डांटना.., अब न तो बच्चों में वह मासूमियत रह गई है और न ही माता पिता के पास उन्हें प्यार भरी डांट लगाने का समय।

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    ऐसे में बच्चों का बचपन प्रतिस्पर्धा व डिजिटलाइजेशन के तले कहीं खो गया है। इसी खोए बचपन को फिर से पाने के लिए अब माता पिता को विशेषज्ञों का सहारा लेना पड़ रहा है। ऐसे में अभिभावक अब बच्चों को व्यवहार प्रबंधन में दक्ष करने के लिए बाकायदा कक्षाएं दिलवा रहे हैं।

    क्यों पड़ी जरूरत

    मनोवैज्ञानिक समीर पारेख के मुताबिक बच्चों का बचपन भागदौड़, सुख-सुविधाओं, डिजिटलाइजेशन और अकेलेपन के नीचे कहीं दबकर रह गया है। बच्चा इन सभी कारकों के प्रभाव में वक्त से पहले ही अपनी उम्र से अधिक गंभीरता दिखाने लगा है। इनडोर गेम्स, सोशल मीडिया, मोबाइल फोन उसे वास्तविक समाज से दूर कर रहे हैं। ऐसे में उसके व्यवहार में अब वयस्कों का पुट आ रहा है। उसे न तो अभिभावक पसंद आते हैं और न ही मेहमान। चाइल्ड काउंसलर कैरल डिसूजा के मुताबिक बच्चों के इस बिहेवियर पर काम करने की जरूरत है, ताकि उनका बचपन वापस लौटाया जा सके।

    कैसे होता है बिहेवियर मैनेजमेंट

    विशेषज्ञ बाकायदा बच्चों के बिहेवियर को सुधारने के लिए कई चरणों में काम कर रहे हैं। सेक्टर 56 निवासी ऋतु साहनी के मुताबिक उनका आठ वर्ष का बेटा बड़ों की तरह व्यवहार करता है, उसमें बच्चों वाली मासूमियत कभी नजर ही नहीं आई। ऐसे में अब उन्होंने सुझावों को मानते हुए विशेषज्ञ से परामर्श लिया और बाकायदा उसे बिहेवियर मैनेजमेंट की कक्षाएं दिलवा रही हैं।

    काउंसलर कैरल का कहना है कि बच्चों को डिजिटल डी-टॉक्सीफिकेशन के अलावा अकेलेपन, तनाव व अवसाद से बचाने के लिए विभिन्न उपचार दिए जाते हैं। बड़े शहरों के बच्चों में बिहेवियर संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं। इससे निजात पाने के लिए माता पिता धीरे धीरे बच्चों को सुधार सकते हैं। इसके लिए बच्चों को फोन व सोशल मीडिया से दूर रखें, इसके लिए पहले खुद ऐसा करें। बच्चों को समय दें। उनके साथ आउटडोर गतिविधियों व क्राफ्ट वर्क में हिस्सा लें। उन्हें किताबों से जोड़ें। उनपर पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ न डालें। यह सब तरीके अपनाकर माता-पिता बच्चों का वह खिलखिलाता बचपन वापस पा सकते हैं।

    वहीं, चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट विचित्रा दर्गन का कहना है कि बच्चों के व्यवहार में आ रही समस्याएं अब काफी आम हो रही हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है उनका अकेलापन। इस अकेलेपन की खाई को पाटने के लिए वे फोन व गेम्स आदि का सहारा लेते हैं जोकि उनके बचपन को उनसे छीन रहा है। माता पिता शुरू से बच्चों पर ध्यान नहीं देंगे तो बच्चों का बचपन नहीं बचा सकेंगे।