शहर में फैलाई गांव जैसी हरियाली
सचिन त्रिवेदी, पूर्वी दिल्ली गांव से शहर आए तो हरियाली न देखकर घुटन महसूस की। वापस जा नहीं सकते थे
सचिन त्रिवेदी, पूर्वी दिल्ली
गांव से शहर आए तो हरियाली न देखकर घुटन महसूस की। वापस जा नहीं सकते थे, इसलिए शहर में ही गांव जैसी हरियाली फैलाने में जुट गए। इस तरह पर्यावरण को सुधारने में योगदान दे रहे हैं दिलशाद गार्डन आर-ब्लॉक निवासी 78 वर्षीय कंवल सिंह वर्मा। हरियाली से इस कदर प्रेम है कि इन्होंने अपने घर के सामने ही बगीचा बनवा रखा है। इसमें औषधीय पौधे ज्यादा हैं। एक हिस्से में सिर्फ तुलसी के पौधे हैं जिसे तुलसा वाटिका नाम दिया है। ये लोगों को औषधीय फल, फूल और पौधे निश्शुल्क देते हैं। इनका कहना है कि पेड़-पौधों में बहुत शक्ति है, इसके बिना जीवन नहीं है। यह बात पिता ने बताई और अब हम अपने बच्चों सहित नाती-पोतों को भी यही संदेश देकर इस दुनिया से जाना चाहते हैं।
कंवल सिंह वर्मा कहते हैं कि मैं किसान का बेटा हूं और बचपन से ही पिताजी मुझे खेती - बाड़ी के काम में सहयोग के लिए अपने साथ ले जाते थे। वहा रबी, खरीफ और जायद अलग अलग मौसम में होने वाली फसल की उपज के बारे में सीखा। वही समय था जब से मेरे भीतर प्रकृति के प्रति प्रेम जागृत हुआ, जो अब तक मेरे भीतर बरकरार है। आज माता - पिता तो हमारे साथ नहीं हैं मगर उनकी दी हुई सीख को याद रखते हुए दिल्ली जैसे शहर में अपने घर के बाहर ही नन्हा बगीचा सींच दिया। आज जब इन पेड़ पौधों के बीच पहुंचता हूं, तो अपने माता- पिता को भी अपने साथ महसूस करता हूं। कुछ इसी तरह से अपने प्रकृति के प्रति प्रेम के पीछे छुपे कारणों को परिभाषित करते हैं।
शहर में हुई घुटन :
कंवल सिंह वर्मा बताते हैं कि पिता सावल सिंह वर्मा मुझे पेड़- पौधों का महत्व समझाते थे और उन्हीं से मैंने हर मौसम में होने वाली खेती के बारे में जाना। बचपन से कृषि पर निर्भर घर परिवार और ग्रामीण परिवेश में हरियालीयुक्त वातावरण देखा। ऐसे में अपनी वकालत की पढ़ाई के लिए बहुत समय मेरठ में गुजारा, तो वहा भी अपने आसपास खाली भूमि पर पेड़ पौधे लगाए। बाद में जब देश की राजधानी में आकर पाव जमाने का प्रयास किया, तो यहा पेड़ -पौधों के अभाव में बहुत खालीपन का अहसास हुआ। शहरीकरण की चादर ओढ़े देश की राजधानी में हरियाली नाम मात्र की थी, जिसमें उन्हें घुटन महसूस होने लगी। उन्होंने पाकरें व आसपास के खाली मैदानों में भी पौधे लगाने का प्रयास किया। उन पेड़ पौधों की वह देखभाल नहीं कर पा रहे थे, तो उन्होंने कुछ लोगों से उनकी देखभाल करने के लिए अनुरोध भी किया, मगर असफलता मिली।
घर के बनाया बगीचा :
वह बताते हैं कि पेड़- पौधों से प्रेम था, इसलिए अपनी पत्नी ऊषा वर्मा के साथ मिलकर घर में ही पेड़ पौधे लगाने का मन बनाया और धीरे-धीरे कई पौधे घर की छत और आगन में एकत्रित कर लिए। जगह के अभाव में जब उन्हें पर्याप्त हरियालीयुक्त माहौल नहीं मिला, तो उन्होंने अपने घर के आगे कुछ और निर्माण कराने के बजाय एक ट्रक मिट्टी डलवाकर पौधे लगाने शुरू कर दिए। देखते ही देखते वहा सैकड़ों पौधों से सजा नन्हा बगीचा बन गया। वह बताते हैं कि पिताजी से उन्हें गेहूं, चना, गन्ना, ज्वार, बाजरा, तोरी, घिया, टिंडा आदि सभी तरह की खेती के गुर मिले, मगर आज मुश्किल यह है कि शहरों में खेती के लिए जमीन नहीं और ग्रामीण परिवेश खत्म होता जा रहा है, जो चिंता का विषय है।
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