पेट संबंधी बीमारियों के इलाज के लिए सरकार व निजी क्षेत्र आएं आगे: डॉ मलय शर्मा
पेट संबंधी बीमारियां पूरी दुनिया में अपना पैर पसार रही हैं। हेपेटाइटिस, अल्सर, पथरी, पेट से जुड़े कैं
पेट संबंधी बीमारियां पूरी दुनिया में अपना पैर पसार रही हैं। हेपेटाइटिस, अल्सर, पथरी, पेट से जुड़े कैंसर जैसी बीमारियां अब आम होती जा रही हैं। संक्रमण व बदलती जीवनशैली इस समस्या को और गंभीर बना रही है। यदि लोग इन बीमारियों को लेकर जागरूक हों तो इसको काफी हद तक कम किया जा सकता है। यह जागरूकता जनता व चिकित्सक दोनों के स्तर पर होनी जरूरी है। एयरोसिटी में इंडियन सोसाइटी आफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने आए इंडोस्कॉपी बाइपास के सर्जन तथा इस विषय पर 82 शोधपत्र प्रस्तुत कर चुकेमेरठ के विशेषज्ञ डॉ मलय शर्मा से पेट संबंधी बीमारियों को लेकर दैनिक जागरण के संवाददाता गौतम कुमार मिश्रा ने बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत के अंश :
पेट संबंधी बीमारियों को लेकर देश में क्या स्थिति है?
भारत में पेट संबंधी बीमारियों को लेकर स्थिति चिंताजनक है। देश के हर सौ में पांच व्यक्ति हेपेटाइटिस सी संक्रमण से ग्रसित हैं। वहीं एक हजार में पांच व्यक्ति हेपेटाइटिस बी संक्रमण के शिकार हैं। हेपेटाइटिस सी का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। उत्तर प्रदेश के मेरठ के नजदीक कई गांव ऐसे हैं जहां की 70 फीसद आबादी हेपेटाइटिस सी से ग्रसित हैं।
इस संक्रमण को कैसे रोका जाए?
देश में कई इलाके ऐसे हैं जहां जागरुकता के अभाव में एक ही इंजेक्शन का इस्तेमाल कई लोगों पर किया जाता है। इसे अविलंब रोकना होगा। यदि एक ही गांव में 70 फीसद की आबादी हेपेटाइटिस सी की शिकार है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान एक इंजेक्शन का कई बार इस्तेमाल होना है। हमें अच्छी आदतों को अपनी जीवनशैली में आत्मसात करना होगा। खाने से पहले हाथ धोना, बाहरी खाने से परहेज करना, नाखून काटकर रखना जैसी आदतें अपनानी होंगी।
जागरूकता के स्तर पर क्या होना चाहिए
जनता व चिकित्सक दोनों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने दिशा निर्देश में साफ साफ कहा है कि पर्ची पर चिकित्सक कैपिटल लेटर में बीमारी व दवा का नाम लिखें। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। दूसरी ओर मरीज को भी चाहिए कि वह चिकित्सक से अपनी समस्या के बारे में साफ साफ पूछे। पता चलने पर अपने स्तर पर उस बीमारी के बारे में इंटरनेट या अन्य साधनों से पता करे। इस दौरान कई बातों का पता चलेगा। लोग बीमारी के बारे में जितना जानेंगे उससे उतना सुरक्षित रहेंगे। इससे किसी बीमारी को लेकर हमारी भ्रांति भी दूर होगी।
पेट की बीमारियों की रोकथाम के लिए क्या प्रयास चल रहे हैं?
अभी इस दिशा में हमारे प्रयास सीमित हैं। सबसे पहले इलाज में भारी भरकम खर्च को कम किया जाना चाहिए। खर्च तभी कम होगा जब इस दिशा में शोध को बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए सरकार व निजी क्षेत्र दोनों को एक साथ आना होगा। उदाहरण के लिए हेपेटाइटिस सी के इलाज में छह महीने का कोर्स की कीमत पांच लाख आती थी। नए अनुसंधान के बाद दवाओं की कीमत में कमी आई है। अब यह खर्च 45 हजार तक सिमट गया है। पीजीआइ चंडीगढ़ के चिकित्सक डॉ आरके धीमान ने अपने प्रयासों से सरकार व निजी क्षेत्र को इस मसले पर जिम्मेदारियों का अहसास कराया। जिसके बाद पंजाब में अब यह इलाज मुफ्त में हो रहा है। मेरठ में हम लोगों ने इस तरह का प्रयास किया है। इस तरह की कोशिश पूरे देश में होनी चाहिए। इसी तरह हेपेटाइटिस बी से ग्रसित व्यक्ति को रोजाना दवा पर सौ रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इसे कम करने की दिशा में प्रयास होना चाहिए।
आप पूरी दुनिया में इंडोस्कोपी बाइपास के विशेषज्ञ माने जाते हैं। यह किस प्रकार की तकनीक है?
पहले यदि आंत में संक्रमण की शिकायत होती थी तो इसके लिए प्रभावित हिस्से को काटकर दो सिरों को फिर से जोड़ना पड़ता था। यह पूरी प्रक्रिया ओपन सर्जरी से की जाती थी। लेकिन अब यह कार्य बिना चीरे के किया जाता है। आंत की नली में एक तार डाला जाता है जिस पर दूरबीन लगा होता है। अवरोध का पता चलते ही वहां से एक तार के जरिये वैकल्पिक रास्ता बना दिया जाता है।
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