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    शिक्षा में राजनीति का हस्तक्षेप अनुचित : बत्रा

    By Edited By:
    Updated: Tue, 24 Nov 2015 09:56 PM (IST)

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास के संस्थापक दीन

    राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास के संस्थापक दीनानाथ बत्रा का कहना है कि शिक्षा स्वायत्त होनी चाहिए। इसमें राजनीति का हस्तक्षेप उचित नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य अक्षर ज्ञान तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि इससे समाज का भी भला होना चाहिए। वे न्यास के तत्वावधान में संस्कृत विभाग की ओर से डीयू में 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2015 देश के रचनात्मक विकास हेतु आवश्यक एवं अनिवार्य अंग है' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय विचार संगोष्ठी में बोल रहे थे।

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    संगोष्ठी में बत्रा ने भारतीय शिक्षा सेवा के गठन का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि शिक्षा शिक्षाविदों के हाथ में ही रहनी चाहिए। विश्वविद्यालयों में शोध का प्रारूप कैसा हो? इस पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि क्षेत्र विशेष को ध्यान में रख कर शोध कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा को इस भौतिक जगत में अध्यात्म की ओर अग्रसर होना चाहिए। संगोष्ठी में हिन्दुत्व विचारक स्वर्गीय अशोक सिंहल को श्रदाजंलि भी दी गई।

    इस दौरान संस्कृत विभाग के प्रमुख प्रो. रमेशचन्द्र भारद्वाज ने कहा कि पूर्व में गठित आयोगों से देश की आवश्यकताओं के अनुसार कोई समग्र शिक्षा नीति अभी तक सामने नहीं आई है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सभी विश्वविद्यालयों में अनुवाद केंद्रों की स्थापना हो, जिससे कि विश्व में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान जनसाधरण तक आसानी से पहुंच सके।

    संगोष्ठी में नई शिक्षा नीति के लिए कुछ सुझाव भी प्राप्त हुए। इसमें कहा गया कि शिक्षा का उद्देश्य रोजगार व नैतिकता परक होना चाहिए। प्रो.भारद्वाज ने कहा कि पाठ्यक्रम में संशोधन जरूरी है। संगोष्ठी में छठी कक्षा से नैतिक शिक्षा के अध्ययन की वकालत की गई। इसके अलावा कौशल विकास के लिए शिक्षण संस्थानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने की भी बात कही गई। संगोष्ठी में चर्चा के दौरान छात्रों की योग्यता एवं क्षमता के अनुसार पाठ्यक्रमों का निर्माण और एम फिल व पीएचडी के कोर्स वर्क विभिन्न समस्याओं पर आधारित होने की बात भी कही गई।