एक या दो दवा से संभव है सिजोफ्रेनिया का इलाज
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : यदि बच्चा डरा सहमा रहे, अकेले में खुद से बातचीत करते दिखे तो इसे हल्के में
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : यदि बच्चा डरा सहमा रहे, अकेले में खुद से बातचीत करते दिखे तो इसे हल्के में नहीं ले। व्यवहार में इस तरह का बदलाव मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया हो सकती है। मति भ्रांति की इस बीमारी में पीड़ित को ऐसी चीजें दिखने व आवाज सुनाई देने लगती हैं जो हकीकत में नहीं होतीं। एम्स के मनोचिकित्सकों का कहना है कि यदि शुरुआत में ही बीमारी की पहचान कर इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे ठीक किया जा सकता है। दिक्कत यह है कि लोग अब भी इस बीमारी को लेकर जागरूक नहीं हैं और झाड़ फूंक का सहारा लेते हैं।
लोगों को जागरूक करने के मकसद से ही एम्स में जन व्याख्यान का आयोजन किया। जिसमें विशेषज्ञों ने इस बीमारी और इसके इलाज के बारे में चर्चा की। एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एसके खंडेलवाल ने कहा कि कई विख्यात लोगों को यह बीमारी रही है। नोबेल पुरस्कार विजेता जॉन फोर्ब्स नैश को भी यह बीमारी थी, लेकिन वे बीमारी से ठीक होकर नोबल पुरस्कार जितने में कामयाब रहे। इसलिए लोग इस बीमारी को अंधविश्वास से जोड़कर नहीं देखें। इस बीमारी की समय पर पहचान जरूरी है। ऐसे में पीड़ित परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है कि वे व्यवहार में बदलाव होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
बिहार के गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह को भी यह बीमारी हुई थी। उनका इलाज काफी देर से शुरू हुआ। यह एक बड़ा कारण था जिसके चलते वह ठीक नहीं हो पाए। वरना इस बीमारी से पीड़ित होने के बाद भी कामयाबी हासिल की जा सकती है। डॉक्टरों के अनुसार बीते दो दशक में बेहतर दवायें भी आ गई हैं। डॉ. प्रताप शरण ने कहा कि देश में करीब एक फीसद आबादी को यह बीमारी है। दिमाग में डेकोमिन केमिकल के बढ़ने से यह बीमारी होती है। यदि किसी को यह बीमारी हो तो उसके संतान में यह बीमारी होने की आशंका 10 फीसद बढ़ जाती है। कारगर दवायें होने के बावजूद 80 फीसद लोगों को इलाज नहीं मिलता। एम्स में इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों पर यह देखा गया है कि परिवार के लोग पहले पूजा-पाठ व झाड़ फूंक कराने के बाद इलाज के लिए पहुंचते हैं। जबकि इलाज जल्द शुरू होने पर तीन महीने में मरीज में काफी सुधार हो जाता है।
बेवजह डॉक्टर लिखते हैं 10 से 15 दवायें
एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि यह भी देखने में आ रहा है कि दूर दराज के डॉक्टर मरीज को दस से 15 दवायें लिख रहे हैं। इससे मरीज की सेहत पर विपरित प्रभाव पड़ता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और मुंह से लार आने लगता है। जबकि सिर्फ एक या दो दवा से मरीज का इलाज किया जा सकता है। ऐसे में डॉक्टरों का जागरूक होना भी जरूरी है। बेवजह दवायें लिखने से परहेज करना चाहिए।
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