गुजराती वाघरी समाज को भरोसे की दरकार
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली आप एक तरह से इस जगह को मिनी गुजरात कह सकते हैं। चाहे पहनावा हो य
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली
आप एक तरह से इस जगह को मिनी गुजरात कह सकते हैं। चाहे पहनावा हो या खानपान या फिर बोली हर मामले में यहां गुजरात की छाप नजर आती है। नरेंद्र मोदी का जिक्र करते ही यहां के लोगों के चेहरे पर मुस्कान छा जाती है। 'मोदी तो हमारो मोटो भाई से..' (मोदी तो हमारे बड़े भाई हैं।) गुजराती वाघरी समाज के चेयरमैन श्याम भाई ठेठ गुजराती भाषा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में बड़े फक्र के साथ कहते हैं 'हमने मोदी पर नाज हवे' (हमें मोदी पर नाज है।) खुशनुमा माहौल के बीच जैसे ही चुनाव का जिक्र छेड़ा जाता है श्याम भाई के चेहरे पर निराशा का भाव छाते देर नहीं लगती। 'हमने कोई पर भरोसो नथी..' (हमें किसी भी पार्टी पर भरोसा नहीं है।)
मादीपुर विधानसभा क्षेत्र के रघुवीर नगर घोड़े वाला मंदिर के पास बड़ी संख्या में वाघरी समाज के लोग रहते हैं। चुनाव में हर प्रत्याशी की चाहत इस समाज को अपने साथ लेने की होती है। इस समाज के सात हजार वोट हैं, जो किसी भी प्रत्याशी के हार जीत के फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मादीपुर विधानसभा के अलावा वाघरी समाज की अच्छी खासी तादाद पश्चिमपुरी, गीता कॉलोनी, जहांगीरपुरी, राजेंद्र नगर और बक्करवाला है।
वाघरी समाज की महिलाएं घरों में जाकर पुराने कपड़ों के एवज में नए बर्तन देती हैं। विकास व पर्याप्त शिक्षा से वंचित इस समुदाय के लोग महिलाओं पर पूरा भरोसा करते हैं। जीवनयापन से जुड़े इस कारोबार पर वाघरी समाज की महिलाओं का पूरा नियंत्रण है। पुरुष इस कारोबार में सहायक की भूमिका निभाते हैं। ये लोग मूल रूप से गुजरात के कच्छ क्षेत्र के रहने वाले हैं। कच्छ की सीमा पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र से मिलती है। रोजी-रोटी की तलाश में वाघरी समाज की काफी आबादी विभाजन के समय दिल्ली में आकर बस गई। तब ये करोलबाग में आकर बसे थे। पांच दशक पूर्व इन्हें रघुवीर नगर में बसाया गया।
क्या है समस्या
पर्याप्त शिक्षा का अभाव व पुरुषों को रोजगार नहीं मिलना इस समाज की सबसे बड़ी समस्या है। गुजराती वाघरी समाज सोसायटी के विकास भाई बताते हैं कि गुजरात में वाघरी समुदाय को अनुसूचित जाति का दर्जा हासिल है, लेकिन दिल्ली में हमें यह दर्जा नहीं मिला है। इस बारे में हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियों से हमें आश्वासन ही मिलता रहा है, लेकिन किसी ने हमारी इस जायज मांग को पूरा नहीं किया है। वाघरी समाज के चेयरमैन श्याम भाई बताते हैं कि इस मुद्दे पर हम लोगों ने चुनाव का बहिष्कार तक किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। राजनीतिक दल हर बार हमें आश्वासन का झुनझुना थमा जाते हैं। यदि आरक्षण मिले तो समाज के युवाओं को सरकारी नौकरी पाने में सहूलियत होगी। 46 वर्षीय गीता बेन बताती हैं कि वाघरी समाज की महिलाओं को बसों में अक्सर अपमान का सामना करना पड़ता है। बस वाले उनकी कपड़ों की गठरियों को देखकर उन्हें बसों में नहीं चढ़ाते हैं। यदि किसी तरह बस में चढ़ भी गए तो कंडक्टर उन्हें अपमानित करता है। सरकार को चाहिए कि वह वाघरी समाज की महिलाओं को बस पास मुहैया कराए, ताकि वे बसों का सफर आसानी से और सम्मान के साथ कर सकें।
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