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    कविताओं के जरिये सामाजिक समस्या पर किया वार

    By Edited By:
    Updated: Mon, 26 Jan 2015 10:44 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : 'अभिव्यक्ति के लिए अब ढ़ूंढने पड़ेंगे शब्द, पत्थरों पर पड़ चुकी हैं द

    जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : 'अभिव्यक्ति के लिए अब ढ़ूंढने पड़ेंगे शब्द, पत्थरों पर पड़ चुकी हैं दरारें, लावा बाहर आने को है।' दिल्ली विश्वविद्यालय के अंबेडकर कॉलेज में ¨हदी विभाग की प्राध्यापिका डॉ. चित्रा रानी ने जब इस कविता को सुनाया तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अपनी इस कविता के जरिए उन्होंने सामाजिक समस्याओं पर करारा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि समाज में यह स्थिति हर उस व्यक्ति की है, जो सच्चाई को अभिव्यक्त करना चाहता है, लेकिन ज्यादातर लोगों के अंदर ज्वालामुखी के लावा की तरह अभिव्यक्ति उबलती रहती है। यह स्थिति ज्वालामुखी से बाहर आते गर्म लावे के समान है, जो समाज को नई राह दिखाएगा।

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    वह कॉलेज में एलुमनी क्लब की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में बोल रही थीं। सम्मेलन में पूर्व छात्र-छात्राओं सहित शिक्षकों ने भी शिरकत की। स्नातकोत्तर की छात्रा रीवा ¨सह की कविता डरना मत न कभी झुकना, हिम्मत के साथ आगे बढ़ते जाना श्रोताओं के लिए उत्साहवर्धक साबित हुई। वहीं एलुमनी क्लब के अध्यक्ष गिरीश निशाना ने अपनी कविता बिक रही दुनियां तुम नहीं आए, कोई किसी की मजबूरी खरीदे, कोई किसी की हार .. के जरिये दम तोड़ रही मानवीय संवेदना पर प्रहार किया।

    डॉ. मंजू एहलावादी ने इस मौके पर अंग्रेजी की कविताएं सुनाईं। अन्य कवियों में तरुण वत्स, राखी, फरहीन अख्तर, राघव त्रिवेदी, अंकुर पांचाल, डॉ. अतुल प्रताप ¨सह मौजूद थे।