धान के अलावा अन्य फसलों के विकल्प
खेत खलिहान-
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : बारिश नहीं होने की स्थिति में किसान इन दिनों अपने खेत में ऐसी फसल लगा सकते हैं, जिनकी खेती कम पानी में भी अच्छी तरह से हो सकती है। ऐसी फसलों में सब्जियों के अलावा ज्वार, बाजरा, ग्वार जैसी फसलें शामिल हैं। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि जिन खेतों में पर्याप्त सिंचाई की सुविधा नहीं है या जहां सूत्र कृमि की समस्या है, वहां धान की ख्ेाती करने से किसानों को परहेज करना चाहिए।
उजवा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ राकेश कुमार बताते हैं कि किसान अभी अपने खेतों में सब्जियों की उन किस्मों को लगा सकते हैं, जो 70 से 80 दिनों की अवधि में तैयार हो जाएं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह फसल रबी मौसम शुरू होने से पहले तैयार हो जाती है। इस तरह की सब्जियों में मूली, धनिया, पालक, चौलाई शामिल है। इसके अलावा मूंग, अरहर, ग्वार, ज्वार, मक्के की बुवाई कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है ये ऐसी फसले हैं जो कम पानी व कम समय में तैयार होती हैं तथा आर्थिक रूप से फायदेमंद हैं।
वर्षा आधारित क्षेत्रों में भूमि में नमी संचयन के लिए पलवार का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही जैविक खाद जैसे गोबर की गली सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। खरीफ की सभी फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करके खरपतवार पर नियंत्रण करें। इससे फसलों को कम हानि होती है तथा जल की बचत होती है। इसके अलावा जड़ों का विकास भी अच्छी तरह से होता है। जिन किसानों की धान की नर्सरी लगाई हुई है यदि वहां नर्सरी लगाए 20 से 25 दिन बीत चुके हों तो इस समय धान की रोपाई का कार्य शुरू कर देना चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी दस सेंटीमीटर रखें। उर्वरकों में सौ किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर की दर से डालें। तथा नील हरित शैवाल का प्रयोग उन्हीं खेतों में करें, जहां पानी खड़ा रहता है, ताकि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई जा सके। एक एकड़ खेत में नील हरित शैवाल के पैकेट का प्रयोग करें। बारिश के मद्देनजर खेतों में मेड़ बनाने का कार्य शीघ्र करें। मेड़ चौड़ी और ऊंची होनी चाहिए। वर्षा होने पर बह रहे पानी का तालाबों या छोटे गढ्डों में संचय किया जाए। इस पानी को आवश्यकता पड़ने पर सिंचाई में इस्तेमाल करें, जिन किसान भाइयों के पास सिंचाई की सुविधा है तो इस सप्ताह मक्का की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के लिए उपयुक्त संकर किस्मों में एएच 421, एएच 58 तथा उन्नत किस्मों में पूसा कम्पोजिट 3, पूसा कम्पोजिट 4 किस्म हैं। बीज की मात्रा प्रति हैक्टेयर 20 किलोग्राम रखें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से 75 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 18 से 25 सेंटीमीटर रखें। मक्का में खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजिन की एक से डेढ़ किलोग्राम मात्रा को 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। यह समय चारे के लिए ज्वार की बुवाई के लिए उपयुक्त है। इसके लिए पूसा चरी 9 पूसा चरी 6 या संकर किस्में उपयुक्त हैं। बुवाई के लिए बीज की मात्रा 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें। चारे के लिए लोबिया की भी बुवाई की जा सकती है। कद्दू वर्गीय सब्जियों की वर्षाकालीन फसल की बुवाई करें। लौकी की उन्नत किस्में पूसा नवीन, पूसा समृद्धि, पूसा संतुष्टि हैं। करेला की पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी, सीताफल की पूसा विश्वास, पूसा विकास, तोरई की पूसा चिकनी, पूसा स्नेह, धारीदार तोरई की पूसा नसदार किस्मों की बुवाई इस मौसम में की जा सकती है।
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