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    1989 का लोकसभा व यूपी विधानसभा का चुनाव

    By Edited By:
    Updated: Wed, 19 Mar 2014 08:16 PM (IST)

    अतीत से..

    -इधर सिंबल पेश हुआ, उधर वापसी का पत्र

    -चार घंटे बहस चली थी निर्वाचन अधिकारी के सामने

    -जमकर नारेबाजी की थी जनता दल के एक धड़े और भाजपाइयों ने

    राज कौशिक, गाजियाबाद :

    बोफोर्स तोप की दलाली के मुद्दे को लेकर चली वीपी सिंह की जबरदस्त लहर के बीच हुआ लोकसभा चुनाव गाजियाबाद विधानसभा में जनता दल(जद) और भाजपा के बिगड़े तालमेल के कारण खासा रोचक रहा था। असल में, तालमेल में यह सीट भाजपा को मिली थी मगर जनता दल ने भी भारत भूषण को सिंबल जारी कर दिया था। जद के लोकसभा प्रत्याशी केसी त्यागी को यहां तक कहना पड़ा था कि अगर तालमेल बिगाड़ा गया तो वह भी चुनाव नहीं लड़ेंगे।

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    गाजियाबाद के चुनाव इतिहास में पहली बार ऐसा देखा गया जब निर्वाचन अधिकारी के सामने जनता दल के लोग सिंबल लेकर पहुंचे तो भाजपा के लोग उस सिंबल की वापसी का पत्र। दोनों कागज जद के यशवंत सिन्हा के हस्ताक्षर से ही जारी किए गए थे। दोनों पक्षों ने जमकर हंगामा किया। अंतत: भाजपा के लोग जीते। भारत भूषण को जनता दल के चुनाव चिन्ह चक्र की जगह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मोर आवंटित हुआ। वो उस पर भी जमकर चुनाव लड़े और भाजपा प्रत्याशी बालेश्वर त्यागी के पहले चुनाव में हार का कारण बने।

    1989 में लोकसभा चुनाव और यूपी विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। कांग्रेस के खिलाफ जनता दल ने भी भाजपा के साथ तालमेल किया था। गाजियाबाद जिले की पांच विधानसभा सीटों में से चार, मुरादनगर, मोदीनगर, हापुड़ व गढ़ जनता दल के पास थीं। सिर्फ गाजियाबाद विधानसभा सीट भाजपा को मिली। भाजपा ने बालेश्वर त्यागी को टिकट दिया, मगर कविनगर से सभासद रहे भारत भूषण को नामांकन भरने की अंतिम तिथि से ठीक एक दिन पहले ही शाम के समय दिल्ली ले जाकर तत्कालीन जद जिला संयोजक पृथ्वी सिंह जनता दल का चुनाव चिन्ह आवंटित करा लाए।

    अगले दिन सुबह दिल्ली की राजनीति भी गरमा गई थी। भाजपा के लोग इकट्ठा होकर जनता दल के लोकसभा प्रत्याशी केसी त्यागी के पास पहुंचे और विरोध दर्ज कराया। केसी उन्हें लेकर हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवीलाल के पास गए और कहा कि अगर गाजियाबाद जैसी सीट पर भी भाजपा नहीं लड़ेगी तो इस तालमेल का मकसद क्या रहा? उन्होंने कहा कि अगर भारत भूषण को जारी सिंबल वापस नहीं हुआ तो वह भी चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी वीपी सिंह, देवीलाल और सिंबल जारी करने वाले यशवंत सिन्हा से बात की। तब सिन्हा ने सुबह-सुबह सिंबल वापसी का पत्र उन्हें दिया।

    गाजियाबाद कलक्ट्रेट में निर्वाचन अधिकारी के सामने भारत भूषण सिंबल जमा कराने पहुंचे तो भाजपा के लोग एडवोकेट सत्यकेतु के साथ सिंबल वापसी का पत्र। यहां भी एक तकनीकी कारण से घंटों विवाद रहा। सिंबल पर सिर्फ भारत भूषण लिखा था जबकि वापसी वाले पत्र पर भारत भूषण अग्रवाल। दोनों तरफ से करीब चार घंटे गहमा-गहमी रही। हालांकि भारत भूषण चुनाव लड़े। मोर चुनाव चिन्ह मिलने के बावजूद उन्होंने स्वयं को जनता दल के प्रत्याशी के रूप में ही प्रचारित किया। झंडे, बैनर, होर्डिग्स, पंफलेट्स सब में वह जद प्रत्याशी के रूप में छाए रहे। कहा गया कि तकनीकी कारणों से जनता दल का चुनाव चिन्ह नहीं मिल पाया है। भाजपा की पूरी ऊर्जा इसी पर खर्च होती रही कि भारत भूषण जनता दल के नहीं बल्कि निर्दलीय प्रत्याशी हैं। जनता दल के केसी त्यागी तो लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद में पहुंच गए थे मगर बालेश्वर त्यागी विधानसभा में नहीं पहुंच पाए। भारत भूषण को करीब 14 हजार वोट मिले जिन्होंने बालेश्वर की हार में अहम भूमिका निभाई और कांग्रेस के सुरेंद्र कुमार मुन्नी सीट को निकाल कर ले गए।

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    चुप रहे थे वीपी सिंह

    घंटाघर बाजार में जनता दल व भाजपा की संयुक्त चुनाव सभा को संबोधित करने वीपी सिंह भी आए थे। दोनों पक्षों की निगाहें उन पर थीं कि गाजियाबाद सीट को लेकर वह क्या कहते हैं, लेकिन वीपी सिंह इस विवाद पर एक शब्द नहीं बोले थे। पत्रकारों के पूछने पर भी वह चुप रहे थे। इसका अप्रत्यक्ष लाभ भारत भूषण को मिला और वह स्वयं को जद प्रत्याशी ही बताते रहे।

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