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    नवजात के रक्त संक्रमण की जांच दो घंटे में संभव

    By Edited By:
    Updated: Fri, 26 Jul 2013 02:57 AM (IST)

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    जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : नवजात शिशुओं में सेप्सिस के तत्काल निदान की दिशा में सर गंगाराम अस्पताल के चिकित्सकों की एक टीम ने एक अहम शोध किया गया है। शोध से प्राप्त नतीजों के बाद डॉक्टरों ने सेप्सिस का निदान महज दो घंटे के भीतर करने का दावा किया है, जबकि वर्तमान में इसमें लगभग 24 से 72 घंटे लगते हैं। शोध के नतीजे को गत माह इंटरनेशनल जर्नल ऑफ लैबोरेटरी हिमेटोलॉजी में भी जगह मिली।

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    नवजात शिशुओं के रक्त में बैक्टीरियल संक्रमण यानी नियोनेटल सेप्सिस एक गंभीर समस्या है। विशेषकर ग्रामीण इलाकों में संक्रमण का अधिक खतरा बना रहता है। क्योंकि वहां ज्यादातर शिशुओं का जन्म अस्पतालों में नहीं, बल्कि घरों में ही होता है। 52 प्रतिशत मामलों में नियोनेटल सेप्सिस ही शिशुओं की मौत का कारण बनता है। वर्तमान में इसके निदान के जो तरीके हैं उनमें एक से तीन दिन लेते हैं।

    अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मनोरमा भार्गव एवं डॉ. सतीश सलूजा ने संक्रमण के निदान के समय को घटाने के लिए वीसीएस (वॉल्यूम, कंडक्टिविटी एंड स्कैटर) डाटा का उपयोग किया, ताकि तत्काल और जांच के नतीजे प्राप्त हों।

    कैसे किया गया शोध

    शोध के दौरान 0 से 28 दिन के लगभग 94 ऐसे बच्चों के रक्त के नमूने लिए गए, जिनमें सेप्सिस की आशंका थी। साथ में 36 स्वस्थ शिशुओं के खून का सैंपल भी लिया गया। जांच के दौरान बच्चों के स्वास्थ्य पर लगातार डॉक्टरों ने नजर रखी थी।

    शोध के नतीजे

    शोध के नतीजे बताते हैं कि जल्दी निदान की दिशा में मीन न्यूरोफिल वॉल्यूम (एमएनवी) एवं सी रिएक्टिव प्रोटीन फॉर्मूला 'प्रूवन' और 'सस्पेक्टेड' सेप्सिस दोनों काफी कारगर हो सकते हैं। इसके अलावा वीसीएस पैरामीटर से लगभग दो घंटे के भीतर गंभीर संक्रमण की जांच की जा सकती है।

    'इस फॉर्मूला से दो घंटे के भीतर ही संक्रमण है या नहीं और किस हद तक है, इसकी जांच की जा सकती है। इससे शिशुओं को समय रहते उपचार मिल सकता है, साथ ही जांच के नतीजे का इंतजार करते हुए शिशुओं को एंटीबायटिक की जो अतिरिक्त खुराक दी जाती रही है।'

    - डॉ.मनोरमा भार्गव, हेमेटोलॉजी विभाग की चेयरपर्सन

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    क्या है नियोनेटल सेप्सिस

    90 दिन से कम उम्र के शिशुओं के रक्त में संक्रमण को नियोनेटल सेप्सिस कहा जाता है। यह बैक्टीरिया जनित संक्रमण है, जिसकी शुरुआत प्राय: शिशु के जन्म के 24 घंटों के भीतर हो जाती है। इसके लक्षणों में शामिल हैं, शरीर का तापमान बदलना, सांस लेने में परेशानी, डायरिया, स्तनपान न करना, उल्टियां आना आदि। समय रहते निदान एवं इलाज से शिशु को मौत व स्वास्थ्य संबंधी गंभीर खतरे से बचाया जा सकता है।

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