'आज भी उस दिन को याद करता हूं तो सिहरन दौड़ जाती है', 1983 के क्रिकेट विश्वकप की कहानी कीर्ति आजाद की जुबानी
कप्तान कपिल देव ने कहा कि हमारी कोई गिनती ही नहीं है लेकिन खेलने आए हैं तो सभी लोग इसका लुत्फ उठाएं। प्रतिभा के अनुसार खेलें और अपना किरदार निभाएं। मैदान में अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो आनंद की अनुभूति होगी। बाकी जो होगा देखा जाएगा। हमारे पास वीडियो फुटेज नहीं थे लेकिन हमारा दिमाग ही कंप्यूटर की तरह काम करता था। एक साथ 14-15 दिमाग काम करते थे।

नई दिल्ली, ब्रजबिहारी। 25 जून, 1983 की तारीख देश के खेल इतिहास में अमर है। उस दिन इंग्लैंड के लार्ड्स मैदान पर वेस्टइंडीज को हराकर भारत ने पहली बार प्रूडेंशियल विश्व कप क्रिकेट का खिताब जीता था। भारतीय क्रिकेट टीम के हरेक सदस्य के हृदय में 40 साल बाद भी उस अविश्वसनीय जीत की यादें तरोताजा है।
वह जीत इसलिए भी अविस्मरणीय है क्योंकि उस टूर्नामेंट के शुरू होने से पहले भारतीय टीम की खिल्ली उड़ाई गई थी। उस महान विजय को लेकर दैनिक जागरण के वरिष्ठ समाचार संपादक ब्रजबिहारी ने तत्कालीन टीम के सदस्य रहे कीर्ति आजाद से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस साक्षात्कार के मुख्य अंशः
निश्चित रूप से वह अविश्वसनीय जीत थी। कुछ वैसा ही जैसे अगला विश्व कप बांग्लादेश या अफगानिस्तान जीत ले। यह कैसे संभव हुआ।
हमें भी विश्वास नहीं था, क्योंकि 1975 और 1979 में हुए पहले दो विश्व कप क्रिकेट में हमें सिर्फ एक जीत मिली थी और वह भी पूर्वी अफ्रीका के खिलाफ। यहां तक कि 1983 के टूर्नामेंट से पहले चार प्रैक्टिस मैचों में भी काउंटी और कंबाइंड यूनिवर्सिटी टीम ने हमें हरा दिया था। स्थिति ये थी कि वेस्टइंडीज, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में से किसी एक के जीतने की संभावना जताई जा रही थी। पाकिस्तान पर भी दाव लगाया जा रहा था, लेकिन आठ टीमों में हमें सातवें नंबर पर रखा गया था। कप्तान कपिल देव ने कहा कि हमारी कोई गिनती ही नहीं है, लेकिन खेलने आए हैं तो सभी लोग इसका लुत्फ उठाएं। प्रतिभा के अनुसार खेलें और अपना किरदार निभाएं। मैदान में अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो बाहर आकर आनंद की अनुभूति होगी। बाकी जो होगा देखा जाएगा। बहरहाल, 9 जून को पहले ही मैच में ठोस बल्लेबाजों और खतरनाक गेंदबाजों से सजी वनडे की तब की सर्वश्रेष्ठ टीम वेस्टइंडीज को पराजित करने के बाद एक अद्भुत अनुभूति हुई और हमें लगा कि क्या हम यह टूर्नामेंट जीत सकते हैं।
पहले मैच में जीत के बाद क्या हुआ?
हमने वेस्टइंडीज को हराया और उसके बाद जिंबाब्वे ने शक्तिशाली ऑस्ट्रेलिया को हराकर उलटफेर कर दिया। इससे हम अंक तालिका में शीर्ष पर आ गए। इससे आनंद और उत्साह का जो वातावरण बना उससे हमारे मन का विश्वास बढ़ता गया।
आपलोगों को कब लगा कि आप यह टूर्नामेंट जीत सकते हैं?
उस समय तक ऐसा लगने वाली कोई बात नहीं थी क्योंकि जिंबाब्वे के विरुद्ध मैच में हमारी हालत काफी खराब हो गई थी। क्रिकेटप्रेमियों को याद होगा कि उस मैच में 17 रन पर हमारे पांच विकेट गिर गए थे, लेकिन उसके बाद बल्लेबाजी करने उतरे कपिल देव ने वन डे क्रिकेट की सबसे महान पारी खेली और 175 रन बनाए। हमने वह मैच जीत लिया। हमारा अगला मैच ऑस्ट्रेलिया से था। सेमीफाइनल में जाने के लिए उसे हराना जरूरी थी लेकिन उस मैच को लेकर काफी गुणा-भाग हो रहा था। अगर हम पहले बल्लेबाजी करते हैं तो ऑस्ट्रेलिया को कितने रन पर आउट करना होगा या ऑस्ट्रेलिया पहले बल्लेबाजी करता है तो हमें कितने ओवर में वह लक्ष्य हासिल करना होगा। टीम मीटिंग में तय हुआ कि हमें गुणा-भाग के चक्कर में नहीं पड़ना है और विरोधी को सीधे हराना है। हुआ भी वही। हम ऑस्ट्रेलिया को हराकर सेमीफाइनल में पहुंच गए। यहां तक पहुंचने बाद हम सबके मन में यह ललक जगी कि अब तो फाइनल खेलना है। लेकिन तब भी हमें महत्व नहीं दिया जा रहा था। कहा जा रहा था कि फाइनल तो वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच ही होगा।
सेमीफाइनल में पहुंचने के बाद भी महत्व नहीं दिए जाने पर टीम की क्या प्रतिक्रिया थी?
इंग्लैंड के विरुद्ध सेमीफाइनल से पहले वहां के मीडिया में भारतीय टीम को तवज्जो नहीं दिए जाने से हमारे अंदर आग लगी हुई थी, लेकिन कपिल ने कहा कि आपा नहीं खोना है। मैनचेस्टर का विकेट स्लो था और उसमें कोई उछाल भी नहीं था। परिस्थितियां हमारे लायक थीं। ऐसे विकेट पर स्ट्रोक खेलना मुश्किल होता है। इंग्लैंड ने टास जीतकर बल्लेबाजी चुनी और उसने 25 ओवर में दो विकेट पर 96 रन बना लिए। हमारे मीडियम पेसरों को न तो पिच से कोई मदद मिल रही थी और न ही हवा में गेंद घूम रही थी। इसके बाद एक छोर से मोहिंदर अमरनाथ और दूसरे छोर से मैंने गेंदबाजी शुरू की और दोनों ने मिलकर लगातार 24 ओवर फेंके और सिर्फ 55 रन दिए। मैंने एक विकेट लिया और एलेन लैंब को रनआउट किया। मोहिंदर ने डेविड गावर और माइक गैटिंग का विकेट लेकर उनकी कमर तोड़ दी। इंग्लैंड को हमने 213 रन पर समेट दिया और फिर यशपाल शर्मा (61) और संदीप पाटिल (नाबाद 51) की दमदार पारी की बदौलत हमने मुकाबला 6 विकेट से जीत लिया।
आज 40 साल के बाद उस दिन को आप कैसे याद करते हैं?
आज भी जब मैं आंखें बंद करके उस दिन को याद करता हूं तो पूरे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है। हमलोग लार्ड्स की बालकनी में खड़े हैं। कपिल प्रूडेंशियल कप लेकर मुड़ते हैं। उनके चेहरे पर भारी मुस्कान है। नीचे मैदान पर जनसैलाब है। वह दिन कभी नहीं भूलता।
उस टीम के खिलाड़ी किसी न किसी रूप में क्रिकेट प्रशासन से जुड़े। रोजर बिन्नी तो बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद तक पहुंचे, लेकिन आपने ओर कदम क्यों नहीं बढ़ाया?
इसके लिए आपको बीसीसीआइ का पिट्ठू बनना पड़ता है और मैं वैसा बन नहीं सकता हूं।
1983 की जीत के बाद भारतीय क्रिकेट में सब कुछ बदल गया। भारत विश्व क्रिकेट का सबसे प्रमुख शक्ति केंद्र बनकर उभरा। आज खिलाड़ियों पर पैसा बरस रहा है। उनके पास कोच हैं, मेंटल ट्रेनर हैं। विरोधी टीम के वीडियो फुटेज और विश्लेषण उपलब्ध हैं। आज की सुविधा संपन्न टीम से तुलना की जाए तो आपलोगों की जीत और बड़ी लगती है। सुविधाओं के अभाव का मुकाबला कैसे किया?
मैं कहूंगा कि यह `आर्ट आफ सर्वाइवल' था जिसके दम पर हमने असंभव को संभव कर दिखाया। हमारे जमाने में हेलमेट न होते हुए भी किसी खिलाड़ी के सिर में चोट लगने से मरने की खबर नहीं आती थी क्योंकि हमें मालूम था कि अपने सिर और शरीर के दूसरे हिस्सों को चोट से कैसे बचाना है। आज के क्रिकेटरों को मालूम है कि गेंद छूट भी गई तो हेलमेट पर लगेगी और वह बच जाएगा। हमारे पास वीडियो फुटेज नहीं थे, लेकिन हमारा दिमाग ही कंप्यूटर की तरह काम करता था। एक साथ 14-15 दिमाग काम करते थे। टीम मीटिंग में विरोधी खिलाड़ियों के खेलने के तरीकों पर चर्चा होती थी और उनसे निपटने की रणनीति बनती थी। हेलमेट के अलावा थाइ पैड या ग्लव्स जैसे दूसरे इक्विपमेंट भी उतने उन्नत नहीं थे। इसलिए हमें चोट लगती थी और दर्द भी होता था, लेकिन उससे हमारी इच्छाशक्ति और दृढ़ होती जाती थी।
क्या आपको लगता है कि भारतीय क्रिकेट में खासकर आईपीएल के जरिए बहुत ज्यादा पैसा आने से खिलाड़ियों की प्रतिबद्धता और समर्पण में कमी आई है और वे ज्यादा बेफिक्र हो गए हैं? डब्ल्यूटीसी के फाइनल में हार के बाद तो वेस्टइंडीज के महान गेंदबाज एंडी राबर्ट्स ने यहां तक कह दिया कि भारतीय खिलाड़ियों के अंदर अहंकार आ गया है?
मैं इसे अहंकार नहीं अतिआत्मविश्वास कहूंगा। डब्ल्यूटीसी में हमारी हार की वजह हमारी लचर तैयारी है। आईपीएल से पहले आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में हमने ऐसे टर्निंग विकेट बनाए कि दो-तीन दिन में ही मैच खत्म हो गए। उसके बाद आपने आईपीएल खेला और सीधे चले गए डब्ल्यूटीसी का फाइनल खेलने। दूसरी बात ये कि आज के खिलाड़ी आईपीएल ही खेलना चाहते हैं। जैसे परिवार संस्कार और संस्कृति का पालना होता है, वैसे ही क्रिकेट का पालना टेस्ट मैच है। वन डे या टी-20 मैगी नूडल्स की तरह है। पेट भर जाता है लेकिन पोषण नहीं मिलता है। कहा जाए तो हम टेस्ट क्रिकेट के कुपोषण का शिकार हैं। डल्ब्यूटीसी के फाइनल को देखिए। हमारे बल्लेबाज बाहर जा रही गेंदों को छेड़ने के कारण आउट हुए जबकि हमारे गेंदबाजों की लाइन और लेंथ सही नहीं थी। विरोधी टीम को देखिए तो उनके गेंदबाजों ने `कारीडोर आफ अनसर्टेंटी' को कड़ाई से फालो किया।
आप टी-20 के बहुत बड़े आलोचक रहे हैं। आपकी नजर में इस फार्मेट के कारण खिलाड़ी खुद के लिए खेलने लगे हैं और देश कहीं पीछे छूट गया है?
मैंने ये कहा था कि टी-20 की वजह से टेस्ट क्रिकेट पर खतरा होगा और हम ऐसा होते हुए देख रहे हैं। टेस्ट क्रिकेट को घोर अनिश्चितताओं का खेल कहा जाता है, लेकिन अब वह रोमांच ही खत्म हो गया है। टेस्ट मैच की खूबसूरती यही है कि इसमें पांच दिन तक उतार-चढ़ाव होता है। जीतती हुई टीम हार जाती है या फिर ड्रा हो रहे मैच में परिणाम आ जाता है। ऐसे संघर्षपूर्ण मैचों को खेलप्रेमी लंबे समय तक याद रखते हैं, लेकिन आपको कल का देखा हुआ टी-20 मैच याद नहीं रहता है। टी-20 ने क्रिकेट की आत्मा पर आघात किया है। दूसरी बात ये कि शुरुआत में रेव पार्टियों और मैच फिक्सिंग के कारण आईपीएल में बहुत सारे विवाद हुए थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था।
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